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मेरे विचार : पुराण क्या है, क्यों है और इनका क्या महत्व है?
भारतीय संस्कृति की गुरुकुल विद्यापद्धति सांस्कृतिक विद्याभ्यास के पड़ावों को मूलतः चार भाग में विभाजित करती है
1. वेदाभ्यास-जिसमें मुख्य चार वेदों का अभ्यास किया जाता है ।
2. उपनिषदों का अभ्यास-जिसमें उपनिषदों का अभ्यास किया जाता है।
3. पुराणों का अभ्यास - जिसमें 18 पुराणों का अभ्यास किया जाता है।
4. इतिहास- जिसमें मुख्य दो ऐतिहासिक महाकाव्य महाभारत और रामायण का अभ्यास आता है।

उपरोक्त सभी भागों में पुराण और इतिहास जनसामान्य के बीच हमेशा विवाद में रहते है।
खैर इतिहास विषय के विवादों पर किसी दिन चर्चा करेंगे, आज पुराण को ले कर मेरे विचार प्रगट करना चाहता हूं और आपका अपना विचार भी कॉमेंट में ज़रूर सुनना चाहूंगा।

*पुराण क्या है?*

जहां तक मेरी समझ है ऐसा माना गया है कि वेदों के ज्ञान को वर्गीकृत करने वाले महर्षि वेदव्यास ने जनसामान्य को और जो वेदों के ज्ञान को अच्छे से समझ नहीं पाए उनके लिए 18 पुराणों का निर्माण किया। यह इसलिए किया गया क्यों की वेदों में जो ज्ञान है उसको समझ पाना हर किसी के लिए संभव नहीं और उसका यथार्थ विवरण भी हर किसी के लिए संभव नहीं है क्योंकि कोई सामान्य व्यक्ति इस के गूढ़ ज्ञान को आसानी से समझ नहीं पाएगा और जो भी उसको अपने मन से अच्छा लगे वो मतलब निकाल कर उसका उल्टा आचरण करेगा। कहानियों के माध्यम से वेदों में छुपा गूढ़ रहस्य जन सामान्य को देना ही एक उचित मार्ग था क्यों कि उससे उसका एक तौर पर मनोरंजन भी हो जाएगा और वह इस ज्ञान को अपने एक दृष्टिकोण से विचार कर एक सही मर्म निकलेगा और वह वेदों के उस ज्ञान का ही मार्ग साधेगा। क्यों? क्योंकि पुराणों में जो कहानियां और प्रसंग बताए गए है उसका व्यक्ति वही मर्म निकालेगा जो वेदव्यास जी चाहते है क्योंकि उन कहानियों और प्रसंगों को उसी तरह बनाया और पेश किया गया है।

मूलतः वेदों को ना जानने वाले लोग भी उस ज्ञान को इन छोटी छोटी कहानियों से समझ सकें और उसका यथोचित उपयोग अपने जीवन में कर सकें। क्योंकि मैं अगर आपसे कोई भारी ज्ञान वाली बात सीधा सीधा कहूं तो आप कंटाल जाओगे क्योंकि आप एक सामान्य जन हो जो पूरे दिन की थकान से थके हारे शरीर व दिमाग़ के साथ घर लौटा है परंतु अगर मैं आपको वही ज्ञान कहानी के माध्यम से आपको सुनाऊं तो आप अपने मनोरंजन के लिए मात्र कहानी सुनोगे परंतु आपका दिमाग समय समय पर उस कहानी से अलग अलग मर्मों को निकालता रहेगा और जाने अंजाने में आप उस ज्ञान का उपयोग जीवन में करते रहेंगे।

*पुराण वेदों से इतने भिन्न क्यों?*

जैसे मैंने आगे बताया कि पुराण वेदों का ज्ञान ही जनसामान्य को सरल भाषा में पेश करते है तो इसका अर्थ यह हुआ कि पुराण वेदों पर आधारित कृतियां है परंतु यह जानना अत्यावश्यक है कि पुराण वेद नहीं है भिन्न है।
अर्थात वेद सत्यता और ज्ञान का ठोस सबूत कहे जा सकते है कि जिनमें हर एक चीज़ को वैज्ञानिक और तात्वित दृष्टिकोण से समझाने की क्षमता है। परंतु पुराण वैज्ञानिक तौर पर कोई दावा करते है और न ही उनमें लिखी बातों को सत्य संगत करार करते है। मतलब कि वह मात्र तात्विक एवं बौद्धिक प्रमाणों का ही समर्थन है न की वैज्ञानिक।

*पुराण पुराण का विरोधी क्यों?*

विष्णुपुराण, भगवतपुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण और बाक़ी के कई पुराण एक ही विषय के अलग अलग जवाबों का प्रगटी करण करते है। जिसकी वजह ही लोगों में अक्सर उनके वजूद और उनमें लिखी बातों को लेकर विवाद देखने को मिलता है। जैसे कि एक मुख्य प्रश्न जो हर किसी के दिमाग़ में है कि भई विष्णु पुराण कहता है कि विष्णु परब्रह्म है और ब्रह्मा शिव सभी उनसे प्रगट है, शिव पुराण कहता है कि शिव परब्रह्म है और विष्णु उनसे उत्पन्न है, देवी भागवत देवी को सर्वोपरि तो भागवत पुराण श्री कृष्ण को। यह तो ख़ुद ही एक दूसरे के विरोधी है सत्य तो कोई कह ही नहीं रहा।

अब इस प्रश्न के मेरे पास तीन उत्तर है। प्रथम कि पुराण आगे बताए विवरण के अनुसार पूर्ण सत्यता प्रदर्शन नहीं करते है वह केवल धर्म की दीक्षा सामान्य नागरिक को कहानियों के माध्यम से दें रहे है। अब वेदों के अनुसार सभी व्यक्ति के अपने अपने इष्ट होते है, तो वहीं अलग अलग पुराण मूलतः एक ही बात कह रहे है और कई कहानियां ऐसी मिलेगी कि वैसी ही या थोड़ी सी भिन्न हो कर दूसरे पुराण में मिलेगी। मतलब इसका अर्थ साफ़ है कि आप अपने एक इष्ट का ध्यान धरें और एक पुराण पढ़ें जिनमें कहानियों के मुख्य किरदार आपके ही इष्ट होंगे जिसकी वजह से आप कहानी अच्छे से समझ पाओगे। जैसे की शिव भक्त शिव पुराण को पढ़कर या सुन कर शिव के प्रति अपनी भक्ति को और दृढ़ करेगा और धर्म की दीक्षा को अपने प्रभु के जीवन से जोड़ कर खुद अपने प्रभु के आचरणों का अनुसरण करेगा।

सीधे शब्दों में हर पुराण को पढ़ने या न पढ़ने से कोई अर्थ नहीं बनता किसी एक पुराण को भी पढ़ेंगे तो वही मिलेगा जो दूसरे पुराणों में दूसरे माध्यम से कहा गया है।

इस प्रश्न का दूसरा उत्तर यह है कि अगर मल्टीवर्स के विचार को समझे तो पुराण उसका सीधा समर्थन करते है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अलग अलग पुराण अलग अलग काल और आयामों की झांकी करवाते है। जैसे कि एक या कई आयाम ऐसे है जिसमें शिव ही सर्वस्व है जहां कई आयाम प्रभु विष्णु में तो कई में ब्रह्मा जी तो कई देवी में सर्वस्व है। तो वह पुराण उस आयाम को और उसकी घटनाओं को दर्शाते होंगे। परंतु एक बात तो सभी पुराणों में एक है कि ब्रह्मा हर पुराण में रचयिता है विष्णु हर पुराण में पोषक, शिव हर पुराण में विनाशक तो देवी हर पुराण में शक्ति या ऊर्जा है। मतलब कि सबका महत्व चाहे अलग अलग दर्शाया गया है परंतु उल्लेख और कार्य सभी के हर पुराण में समान है।

तीसरा उत्तर यह है कि पुराण और इतिहास और विज्ञान तीन अलग चीज़ें है मतलब कि ऐसा नहीं है पुराण में जो है वह ऐतिहासिक या वैज्ञानिक नहीं हो सकता, कहीं कहीं पर वह ऐतिहासिक और वैज्ञानिक भी है परंतु वह इतिहास या विज्ञान की किताबें नहीं है वह केवल समझने की चीज़ है और जो हर तरह के तत्वज्ञान के जनेता है। गीता में श्री कृष्ण कहते है कि जो मुझे जिस रूप में भजेगा मैं उसे उस रूप में प्राप्त हूं मतलब कि पुराण में आप प्रभु को जिस रूप में स्वीकार करोगे वह ज्ञान आप तक उसी रूप में आएगा जैसे प्रभु सनातन है और अलग अलग रूपों में भी एक ही है वैसे ही पौराणिक ज्ञान एक सनातन ज्ञान है केवल अलग अलग रूपों में वर्णित है।

मेरे तीनों उत्तरों में जैसे एक बात समान है कि पुराण केवल समझने के लिए है न कि किसी चीज़ का प्रमाण या इतिहास या विवाद का विषय, केवल समझने और अनुसरित करने के लिए ही निर्मित किए गए है।

*पुराणों का क्या महत्व है?*

पुराण महत्वपूर्ण कृतियां है क्योंकि यह कृतियां न ही सिर्फ़ ज्ञान और भक्ति से परिपूर्ण है परंतु समाज व्यवस्था और ज्ञान के आदान प्रदान के तौर पर भारत वर्षो से कितना आधुनिक रहा है यह बात उनके माध्यम से जानी जा सकती है। हर किसी को अपना एक सत्य रखने, समझने और जी ने की छूट होती थी और फिर भी दूसरे के सत्य से कोई बैर या कोई आपत्ति नहीं थी फिर भी हर सत्य का एक ही धर्म कायम रहता है और यह स्थिर रहने वाला धर्म ही सनातन है और इसीलिए उसे धर्म कहा जाता है क्योंकि "धारयति इति धर्मः" मतलब जो हमेशा स्थिर है वही धर्म है।

मेरे विचारों पर आप भी कुछ टिप्पणियां दीजिए और स्वयं के भी विचार कॉमेंट करें। एवं पुराणों पर उठे प्रश्नों को यह समझाने का प्रयत्न अवश्य करें कि वेद और पुराण अलग चीज़ें है और दोनों का एक उद्देश्य और अलग अलग मार्ग है।



© Pavan