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शहर
'शहर बहुत खूबसूरत होता है, वहाँ बडी-बडी सडकें होतीं हैं।लोग साफ-सुथरे रहते हैं।' बहुत सी तारीफें सुनने के बाद शाँताबाई ने बच्चों के साथ शहर आने का निर्णय लिया।अपने तीन बेटियों और दो बेटों के साथ वह शहर आ गई। पति को साफ कह दिया तुम यहाँ खेती संभालना, मैं बच्चों को वहाँ काम पर लगाऊँगी, साल भर में बालिका(बडी बेटी) के शादी लायक पैसे हो जाएँगे।फिर उसकी शादी कर देंगे।
जैसा उसने सोचा वैसा ही हुआ, आते ही दोनों होलसेल मार्किट में दुकानों पर लग गए। बडी लडकी एक मारवाड़ी रईस परिवार में लग गई। छोटी दोनों को सरकारी स्कूल में दाखिला मिल गया, शाँताबाई भी घरों में झाडू-पोंछा करके पैसे कमाने लगी।दो महीने बाद ही पति ने आकर बालिका के लिए आए रिश्ते की बात बताई।
जैसे-तैसे करके उसने शादी करवा दी। सिर पर कर्ज हो गया, तो दूसरी बेटी को भी बालिका की जगह लगा दिया, वह छोटी थी तो मालिक उसे पैसे कम देने लगा। अनिता बहुत होशियार थी उसने मालकिन को मना लिया और स्कूल भी जाने लगी। वह माँ के पास कम ही आती थी। छुट्टी वाले खुद के और मालकिन के ज्यादा से ज्यादा काम कर लेती। लक्ष्मीबाई जब भी मन करता बेटी से चली जाती।
दीपावली का त्यौहार आया, बालिका को ससुराल से लाने के लिये बडा भाई गया तोअ उसके पति ने माँग रखी 'तुम लोगों ने शादी में केवल एक तोला सोना दिया था, मैं कुछ नही बोला, पर वहाँ तुम सारे के सारे कमाते हो, शहर में कमाई अच्छी होती है इसलिए अब दीपावली पर एक तोला सोना दिये बगैर बहन को मत लाना'।
बालिका माँ से लिपट कर खूब रोने लगी, माँ वहाँ काम बहुत होता है, कोई भी काम अगर बिगड जाए तो ताने मारते हैं, शहर की नाजुक लडकी है क्या करेगी। जिठानी तो बहुत तंग करती है। मैं वापस नही जाऊँगी। अनिता भी आई हुई थी। माँ बोली देख बेटा तेरे कारण मैं इस बेटी से भी दूर हो गई हूँ, तुझे वहीं अपनी जिंदगी बितानी है।
दीपावली पर पति ने आकर एक लाख थमाए और कहा 'पीक सही नही हुई न बारिश ने बहुत नुकसान किया बस इतने ही आए हैं, इसमें से मुझे बीज के पैसे दे देना, लक्ष्मीबाई अपने सारे बच्चों की तरफ देखकर सोचने लगी,' यह कैसा जीवन हो गया है जिस विश्वास और लालच से शहर आए थे वह सब टूट गया, जहाँ रोटी कमाना ही मुश्किल है वहाँ इतने खर्च कैसे उठा सकते हैं हे भगवान, गाँव की ही जिंदगी अच्छी थी कम से कम थोडे में सुकून से गहरी नींद तो सोते थे'।