जीवन का चलचित्र।
ये उन दिनों की बात है जब मैं दिल्ली किसी नौकरी के लिए साक्षात्कार देने गया था और सुबह ग्यारह बजे मुझे वहाँ पर पहुँचना था और मैं दस बजे ही पहुँच गया था। मुझे वहाँ पर बैठे हुए दो घंटे हो गए थे पर मेरा साक्षात्कार शुरू नहीं हुआ था और ये कंपनियाँ बेरोज़गार युवाओं का कितना फ़ायदा उठाया करते हैं और साक्षात्कार से लेकर सैलरी देने तक हर चीज में फ़ायदा उठाते हैं। इसी कंपनी वालों ने मुझे पहले भी हरियाणा में पचकूला बुलाया था और वहाँ पर भी उस दिन सुबह नौ बजे पहुँच गया था।
मेरे पहुँचने के बाद भी सुबह से लेकर शाम सात बजे और फ़िर रात के दस बजे तक बैठाया गया था और दो बार सिर्फ़ चाय पिलाई गई थी और एक बार सुबह जाते ही और एक बार रात को आठ बजे के लगभग पिलाई गई थी। पूरा दिन बीत जाने के बाद भी साक्षात्कार शुरू नहीं हुआ था और दिल्ली आने के लिए कहा गया था। ख़ैर मैं दिल्ली आ गया था और यहाँ भी वहीं कहानी फिर से दोहराई जा रही थी और दोपहर को तीन चार बजे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और सबसे पहले एक फार्म भरवाया गया था।
कंपनी के बेरोज़गारों के शोषण करने का पहला चरण शुरू हुआ और सब सवालों के जवाब अच्छे से देने के...