बस चाय बनने तक
Chapter 1
शाम के वक्त अपनी कुर्सी पर बैठे कुछ चुस्कियां ले रहा अमित किनारे पर आके उससे हालचाल पूछती लहरों को देख रहा था। पूरा आसमान लाल पड़ गया था। सारे पंछी आफ़ताब को अलविदा कह अपने घोसलें कि और बढ़े जा रहे थे। मछुआरे भी अपनी कश्तियों का रुख किनारे की और किए बढ़े जा रहे थे। वैसे ये सब तो रोज़ होता है पर हर रोज़ इस नज़ारे को देख कर अमित बनानेवाले की कारीगरी को अपनी आंखे कुछ देर बंध कर मन ही मन उसके वजूद को नमन कर रहा था।
के तभी निशा आई और अमित को किसी ध्यान में देख कर उसे ध्यानभंग करने के इरादे से बोली " अब चलोगे अंदर, वहां तुम्हारा लाल तुम्हारी राह देख रहा है"
" कब से बैठे हो, उसके साथ कुछ देर खेलो में तब तक खाना बना देती हूं।"
"हां , आ रहा हूं।"
"क्या आ रहा हूं! एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ना उसे, चलो अंदर।"
"अरे बाबा , आ रहा हूं, चलो"
अमित खड़ा हुआ, उसने चाय का प्याला रखा और अंदर अपने डेढ़ साल के बेटे शुभ को खिलाने अंदर चला गया।
Chapter 2
कमरे में अमित शुभ को गोद में लेकर झुनझुने से उसको बहला रहा था। रोज़ की तरह बेटा अपने पिता के इस लाड को निहाल रहा था। अपने बेटे पर प्रेम की वर्षा करता पिता अपने बेटे को संसार की सारी ख़ुशीयां देने का वादा मन ही मन करता है। बेटा बड़ा होता है तो शायद पिता अपना प्यार जता नहीं सकता जैसे उसकी मां जता सकती है। परंतु पिता के प्रेम का कटोरा कभी ख़ाली नहीं होता बस वह अपने बेटे को महेसूस कराने में असमर्थ हो जाता है।
निशा वहीं चूल्हे पर चावल चढ़ा कर अमित के पास आकर कहती है;
"कल से थोड़ी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी।"
"दूध भी सही से नहीं पिया"
"डाक्टर को बुला लेता हूं , कुछ दवा दे देगा"
" मैने बुला लिया है बस रास्ते में होंगी वह"
इतने में दरवाज़ा खटखटा ने की आवाज़ आती है।
"में खोलती हूं।" कह कर निशा दरवाज़ा खोलने जाती है।
अमित फिर बेटे को झुनझुना दिखा कर ख़ुश करने लगता है।
" आईए आईए , में आपका ही इंतज़ार कर रही थी, आने में कुछ दिक्कत तो नहीं हुई?"
निशा डाक्टर साहिबा की आओ भगत करते हुए उनको कमरे की तरफ़ लेकर आती है।
गोद में बेटे को लिए बिस्तर थोड़ा दरवाज़े की और रुख करता अमित स्तब्ध हो जाता है।
नीली साड़ी में, केशों के झरने कंधो तक आके रुके ढले हुए, साफ़ चहेरे पर बस एक छोटी सी काली बिंदी और कंधों पर काले रंग का बस्ता कमर तक लटका हुआ, डाक्टर साहिबा रिया भी अमित को देख कर दो पल के लिए कदमों को रोक खड़ी थी पर तभी निशा की आवाज़ दोनों के कानों में जाते ही दोनों की स्तब्धता विराम ले लेती है।
" मैने कहा था ना डाक्टर साहिबा के बारे में"
" ये है रिया मैडम"
Chapter 3
अमित शब्दहीन बैठा रहा , वह कहीं खोया सा प्रतीत हो रहा था , अपने वजूद को भूला कर शम्मा की और बढ़ते परवाने की तरह रिया को देख उसको कुछ ख़याल ही नहीं था।
" देखिए ना मैडम , शुभ की तबीयत मुझे कुछ ठीक नहीं लग रही है कल से..." निशा रिया से कह रही है
अमित अपनी नज़र रिया से हटा कर इधर उधर देख कर फिर शुभ की और देखने लगता है।
रिया भी अमित से नज़रे हटा कर निशा की बात पर ध्यान केंद्रित करती है।
" हां , में देख लेती हूं " रिया कहती है।
अमित के पास जा कर वह शुभ की और देखती है , फिर अमित की और देख कर एक अनचाही मुस्कान से हाथ बढ़ा कर शुभ को मांगती है।
" लाइए , बच्चे को मुझे दीजिए "
" हं , हां " अमित नियंत्रण में आकर शुभ को रिया के हाथ में देता है।
अमित खड़ा हो जाता है और निशा के बगल में जा कर खड़ा हो जाता है।
निशा का ध्यान रिया के इलाज पर था परंतु अमित कुछ सोच रहा था , उसकी नजरें बिस्तर के बगल में शुभ के पालने की और लगी रही।
रिया ने शुभ को देखा और कहा ,
" कुछ बहोत बड़ी बात नहीं है , अक्सर होता है "
" ये दवा बच्चे को दूध पिलाने के बाद दे दीजिएगा"
निशा ने दवा ली और कहा ,
"शुक्रिया , मुझे तो लगा था के कुछ बीमारी ना हो । "
" आप बैठिए ना , में चाय बना के लाती हूं ।"
" अरे ! नहीं नहीं , इसकी कोई ज़रूरत नहीं है "
" अरे , कैसे नहीं ! आप बैठिए में अभी चाय बना के लाती हूं "
निशा अमित की और देख कर कहती है ,
" अमित , आप डाक्टर साहिबा को समंदर दिखाईए में तब तक चाय बना लेती हूं "
" हं , हां " अमित अपने ख़यालो से बाहर आता है ।
" दो मिनट , बस चाय बनने तक " निशा इतना कह कर रसोई में चली जाती है।
अमित रिया की और देख कर कहता है ,
" आईए "
रिया और अमित दोनों झरोखे की तरफ़ जाते है।
Chapter 4
दोनों मौन झरोखे से समंदर की और देख रहे है , इंतजार करते हुए की कौन पहले मौन तोड़े , कुछ बात करे ।
रिया पहल करते हुए कहती है ,
" बहोत दिनों के बाद "
" अह , हां बहोत सालो के बाद "
"हां , सालो के बाद , हमम " आह के साथ एक मौन फिर छा गया ।
रिया ने फिर पहल की ,
"शादी भी कर ली..."
" हां बस , ज़िम्मेदारी से भाग न सका "
"तुम्हारी शादी हो गई ? "
" हां , में भी कहां तक भागती "
कुछ तो था जो एक दूसरे से कहना था , शायद कुछ पूछना था , मगर ज़बान पर अदृश्य बेड़ियां थी ।
" याद तो थी या फिर आज देखा तो यादें ताज़ा हो गई " रिया ने फिर एक बार पहल की।
"भूला ही नहीं " अमित ने मरहम कहो या दर्द बस एक जवाब में रिया की आंखें दो पल के लिए बंध कर दी ।
" हमम " रिया ने एक आह भरी
कुछ बोलती उसके पहले निशा चाय ले कर आ गई।
फिर दोनों के शब्द वहीं मर्यादाओं की कच्ची डोरी से बंध गए।
"कैसा लगा हमारा घर ? "
" बहोत अच्छा है , बड़े ही ख़ुश - किस्मत है आप "
चाय का प्याला खत्म कर रिया ने विदा होने की अनुमति ली।
अमित के सामने देख कर आंखों ही आंखों फिर कभी मिलना हो ऐसी चाहत के साथ इजाज़त मांगी।
रिया चली गई । अमित फिर समंदर को देखने लगा।
शाम के वक्त अपनी कुर्सी पर बैठे कुछ चुस्कियां ले रहा अमित किनारे पर आके उससे हालचाल पूछती लहरों को देख रहा था। पूरा आसमान लाल पड़ गया था। सारे पंछी आफ़ताब को अलविदा कह अपने घोसलें कि और बढ़े जा रहे थे। मछुआरे भी अपनी कश्तियों का रुख किनारे की और किए बढ़े जा रहे थे। वैसे ये सब तो रोज़ होता है पर हर रोज़ इस नज़ारे को देख कर अमित बनानेवाले की कारीगरी को अपनी आंखे कुछ देर बंध कर मन ही मन उसके वजूद को नमन कर रहा था।
के तभी निशा आई और अमित को किसी ध्यान में देख कर उसे ध्यानभंग करने के इरादे से बोली " अब चलोगे अंदर, वहां तुम्हारा लाल तुम्हारी राह देख रहा है"
" कब से बैठे हो, उसके साथ कुछ देर खेलो में तब तक खाना बना देती हूं।"
"हां , आ रहा हूं।"
"क्या आ रहा हूं! एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ना उसे, चलो अंदर।"
"अरे बाबा , आ रहा हूं, चलो"
अमित खड़ा हुआ, उसने चाय का प्याला रखा और अंदर अपने डेढ़ साल के बेटे शुभ को खिलाने अंदर चला गया।
Chapter 2
कमरे में अमित शुभ को गोद में लेकर झुनझुने से उसको बहला रहा था। रोज़ की तरह बेटा अपने पिता के इस लाड को निहाल रहा था। अपने बेटे पर प्रेम की वर्षा करता पिता अपने बेटे को संसार की सारी ख़ुशीयां देने का वादा मन ही मन करता है। बेटा बड़ा होता है तो शायद पिता अपना प्यार जता नहीं सकता जैसे उसकी मां जता सकती है। परंतु पिता के प्रेम का कटोरा कभी ख़ाली नहीं होता बस वह अपने बेटे को महेसूस कराने में असमर्थ हो जाता है।
निशा वहीं चूल्हे पर चावल चढ़ा कर अमित के पास आकर कहती है;
"कल से थोड़ी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी।"
"दूध भी सही से नहीं पिया"
"डाक्टर को बुला लेता हूं , कुछ दवा दे देगा"
" मैने बुला लिया है बस रास्ते में होंगी वह"
इतने में दरवाज़ा खटखटा ने की आवाज़ आती है।
"में खोलती हूं।" कह कर निशा दरवाज़ा खोलने जाती है।
अमित फिर बेटे को झुनझुना दिखा कर ख़ुश करने लगता है।
" आईए आईए , में आपका ही इंतज़ार कर रही थी, आने में कुछ दिक्कत तो नहीं हुई?"
निशा डाक्टर साहिबा की आओ भगत करते हुए उनको कमरे की तरफ़ लेकर आती है।
गोद में बेटे को लिए बिस्तर थोड़ा दरवाज़े की और रुख करता अमित स्तब्ध हो जाता है।
नीली साड़ी में, केशों के झरने कंधो तक आके रुके ढले हुए, साफ़ चहेरे पर बस एक छोटी सी काली बिंदी और कंधों पर काले रंग का बस्ता कमर तक लटका हुआ, डाक्टर साहिबा रिया भी अमित को देख कर दो पल के लिए कदमों को रोक खड़ी थी पर तभी निशा की आवाज़ दोनों के कानों में जाते ही दोनों की स्तब्धता विराम ले लेती है।
" मैने कहा था ना डाक्टर साहिबा के बारे में"
" ये है रिया मैडम"
Chapter 3
अमित शब्दहीन बैठा रहा , वह कहीं खोया सा प्रतीत हो रहा था , अपने वजूद को भूला कर शम्मा की और बढ़ते परवाने की तरह रिया को देख उसको कुछ ख़याल ही नहीं था।
" देखिए ना मैडम , शुभ की तबीयत मुझे कुछ ठीक नहीं लग रही है कल से..." निशा रिया से कह रही है
अमित अपनी नज़र रिया से हटा कर इधर उधर देख कर फिर शुभ की और देखने लगता है।
रिया भी अमित से नज़रे हटा कर निशा की बात पर ध्यान केंद्रित करती है।
" हां , में देख लेती हूं " रिया कहती है।
अमित के पास जा कर वह शुभ की और देखती है , फिर अमित की और देख कर एक अनचाही मुस्कान से हाथ बढ़ा कर शुभ को मांगती है।
" लाइए , बच्चे को मुझे दीजिए "
" हं , हां " अमित नियंत्रण में आकर शुभ को रिया के हाथ में देता है।
अमित खड़ा हो जाता है और निशा के बगल में जा कर खड़ा हो जाता है।
निशा का ध्यान रिया के इलाज पर था परंतु अमित कुछ सोच रहा था , उसकी नजरें बिस्तर के बगल में शुभ के पालने की और लगी रही।
रिया ने शुभ को देखा और कहा ,
" कुछ बहोत बड़ी बात नहीं है , अक्सर होता है "
" ये दवा बच्चे को दूध पिलाने के बाद दे दीजिएगा"
निशा ने दवा ली और कहा ,
"शुक्रिया , मुझे तो लगा था के कुछ बीमारी ना हो । "
" आप बैठिए ना , में चाय बना के लाती हूं ।"
" अरे ! नहीं नहीं , इसकी कोई ज़रूरत नहीं है "
" अरे , कैसे नहीं ! आप बैठिए में अभी चाय बना के लाती हूं "
निशा अमित की और देख कर कहती है ,
" अमित , आप डाक्टर साहिबा को समंदर दिखाईए में तब तक चाय बना लेती हूं "
" हं , हां " अमित अपने ख़यालो से बाहर आता है ।
" दो मिनट , बस चाय बनने तक " निशा इतना कह कर रसोई में चली जाती है।
अमित रिया की और देख कर कहता है ,
" आईए "
रिया और अमित दोनों झरोखे की तरफ़ जाते है।
Chapter 4
दोनों मौन झरोखे से समंदर की और देख रहे है , इंतजार करते हुए की कौन पहले मौन तोड़े , कुछ बात करे ।
रिया पहल करते हुए कहती है ,
" बहोत दिनों के बाद "
" अह , हां बहोत सालो के बाद "
"हां , सालो के बाद , हमम " आह के साथ एक मौन फिर छा गया ।
रिया ने फिर पहल की ,
"शादी भी कर ली..."
" हां बस , ज़िम्मेदारी से भाग न सका "
"तुम्हारी शादी हो गई ? "
" हां , में भी कहां तक भागती "
कुछ तो था जो एक दूसरे से कहना था , शायद कुछ पूछना था , मगर ज़बान पर अदृश्य बेड़ियां थी ।
" याद तो थी या फिर आज देखा तो यादें ताज़ा हो गई " रिया ने फिर एक बार पहल की।
"भूला ही नहीं " अमित ने मरहम कहो या दर्द बस एक जवाब में रिया की आंखें दो पल के लिए बंध कर दी ।
" हमम " रिया ने एक आह भरी
कुछ बोलती उसके पहले निशा चाय ले कर आ गई।
फिर दोनों के शब्द वहीं मर्यादाओं की कच्ची डोरी से बंध गए।
"कैसा लगा हमारा घर ? "
" बहोत अच्छा है , बड़े ही ख़ुश - किस्मत है आप "
चाय का प्याला खत्म कर रिया ने विदा होने की अनुमति ली।
अमित के सामने देख कर आंखों ही आंखों फिर कभी मिलना हो ऐसी चाहत के साथ इजाज़त मांगी।
रिया चली गई । अमित फिर समंदर को देखने लगा।