यादों की पाठशाला
मारवाड़ी पाठशाला , कटिहार - "यादों की पाठशाला"
अनकही बातों का दौर और कभी न खत्म होने वाली बातों के शोर से पूरे का पूरा स्कूल हमेशा की तरह चिर - परिचित काय - काय की शोर से गुंजायमान था कि अचानक एक कड़क और दमदार आवाज के भारीपन ने उस कोलाहल को जैसे अपने वजनी वजन से दबाकर चित सा कर दिया था । चारों तरफ अब निः शब्द शांति फैल चुकी थी । वह दमदार और सब को हिला देने वाली आवाज दसवीं कक्षा के सेक्शन बी के कमरे से निकलकर पूरे स्कूल में फैल गई थी । यह जानी पहचानी कड़क आवाज स्कूल की दरो - दीवार तक छेद देने का सामर्थ्य रखती थी । स्कूल से सटे आसपास के घरवालों तक को समझते देर न लगती कि यह चिल्ल - पौं अचानक शांति का चोगा ओढ़कर कैसे बैठ गई । लगभग 6 सवा 6 फूट के आसपास अधेड़ उम्र वाली हल्की सफेदी बालों में लिए मगर गठीले और सधे हुए जिस्म पर खादी का सफेद कुर्ता और घोती बिना सिलवट लिए उस रौबदार वजनी आवाज वाले शख्स पर पूरी तरह फब रहा था । चेहरे पर तीखा तेज और आंखों में सिहरन पैदा करने वाली अनजानी चमक के साथ शब्दों की गर्जना से पूरे की स्कूल की काय काय को दबा देने का अद्भुत बल लिए वह शालीन व कड़क व्यक्तित्व कोई और नहीं सी. पी. सिंह सर थे । हां , वो सिंह ही तो थे हम बारे में बंद लगभग 600 के आसपास मेमनाओं के लिए , जिनकी गर्जना से आधी जान तो पहले ही निकल जाती थी । सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल तो कतई नहीं दिखते थे । सरकारी स्कूल के सरकारीपन ने भी उन्हें अपनी आगोश में लेने की हिमाकत अब तब तक नहीं की थी । उनका व्यक्तित्व और डील डौल प्रिंसिपल से भी भारी था । यूं कहा जाए तो किसी रौबदार मंत्री की शख्सियत रखने वाले थे। नया टोला जैसे मोहल्ले के हिम्मतवर और खूंखार छात्रों ने भी उस शख्सियत के सामने झुककर नील डाउन होकर दो - चार हाथ खाकर अपने- अपने सुनहरे भाग्य को सराहा था । उनकी आवाज और शख्सियत की मार ही काफी थी । 5 सालों की पढ़ाई में दो - चार बार से ज्यादा रूबरू होने का सौभाग्य हमें नहीं मिला था ।
बड़ा बाजार, चूड़ी पट्टी, नया टोला, अरगड़ा चौक , हरिगंज चौक , गामी टोला ,दुर्गा स्थान ,एक और दो नंबर कॉलोनी, गांधी नगर ,बनिया टोला , मंगल बाजार और कटिहार की हर गली मोहल्ले के छात्रों को अपने में समेटे यह स्कूल कटिहार के बीचो- बीच अपना सिक्का जमाए हुए गर्व से इठलाया करता था ।
जगह की कमी और छात्रों की भीड़ का दबाव कहा जाए या नियति की मार , लड़कों और लड़कियों का एक साथ पढ़ना मयस्सर नहीं हुआ । सुबह के 6:00 बजे से 11:00 बजे तक का समय लड़कियों का और 11:00 से 4:00 बजे का समय लड़कों का था । केवल छठी कक्षा के लिए लड़कों का समय 6:00 से 11:00 का था, मगर उसमें भी लड़कों का सेक्शन अलग ही था । छठी कक्षा पर इतनी मेहरबानी और आरक्षण क्यूं थी, इसका कारण भूतकाल के गर्त में ही रहे तो उचित है । हर एक क्लास के दो सेक्शन थे - सेक्शन - ए और सेक्शन - बी । सेक्शन - ए के लड़के अपने को ए - ग्रेड समझते और सेक्शन - बी के लड़के को बी - ग्रेड । ए से अच्छे और बी से बुरे होने की लड़ाई आम बात थी । यह महज एक इत्तफाक था या सोची समझी योजना थी कि लड़कों के डील - डौल और हाव-भाव से भी यही लगता था या फिर सेक्शन- बी के अधिकांश लड़कों ने अपनी यदि नियति मानकर खुद से समझौता कर लिया था ।
छठी कक्षा के क्लास टीचर नरेश सर थे । गोरे रंग का सामान्य कद काठी के नरेश सर हिंदी और संस्कृत की क्लास लेते थे । सधी हुई टनकदार आवाज के साथ हिंदी और संस्कृत के काव्य- उच्चारण की ध्वनि कोई नहीं भूल सकता । पढ़ाने के अलावा हमने हमेशा उन्हें रजिस्टर लेकर कुछ ना कुछ करते ही देखा था । वह दो ही जगह पर पाए जाते या तो स्कूल के भीतर या फिर रबिया होटल के भीतर चाय की टेबल पर । इसका दुष्परिणाम हमारे लिए यह होता कि हम रबिया होटल की चौक पर ना तो चौका - विहार कर पाते और ना ही मटरगश्ती ही ।उनकी लेखन शैली और आलेख की छवि हमारे जेहन में आज भी तरोताजी है । साधारण होकर भी वह असाधारण थे । शायद ही ऐसा कोई था जिसका कान मचोड़कर उन्होंने लाल नहीं कर डाला होगा ।
बात अगर जब छठी कक्षा की हो तो झरना मैडम, दुर्गा मैडम, रत्ना मैडम और शिप्रा मैडम की बात ना हो तो बेमानी होगी।
झरना मैडम की आवाज से पूरे का पूरा क्लास शांत रहा करता था ।उनकी कड़क आवाज ही हमारे अनुशासन के लिए पर्याप्त थी । झरना मैडम हमें अंग्रेजी पढ़ाया करतीं...
अनकही बातों का दौर और कभी न खत्म होने वाली बातों के शोर से पूरे का पूरा स्कूल हमेशा की तरह चिर - परिचित काय - काय की शोर से गुंजायमान था कि अचानक एक कड़क और दमदार आवाज के भारीपन ने उस कोलाहल को जैसे अपने वजनी वजन से दबाकर चित सा कर दिया था । चारों तरफ अब निः शब्द शांति फैल चुकी थी । वह दमदार और सब को हिला देने वाली आवाज दसवीं कक्षा के सेक्शन बी के कमरे से निकलकर पूरे स्कूल में फैल गई थी । यह जानी पहचानी कड़क आवाज स्कूल की दरो - दीवार तक छेद देने का सामर्थ्य रखती थी । स्कूल से सटे आसपास के घरवालों तक को समझते देर न लगती कि यह चिल्ल - पौं अचानक शांति का चोगा ओढ़कर कैसे बैठ गई । लगभग 6 सवा 6 फूट के आसपास अधेड़ उम्र वाली हल्की सफेदी बालों में लिए मगर गठीले और सधे हुए जिस्म पर खादी का सफेद कुर्ता और घोती बिना सिलवट लिए उस रौबदार वजनी आवाज वाले शख्स पर पूरी तरह फब रहा था । चेहरे पर तीखा तेज और आंखों में सिहरन पैदा करने वाली अनजानी चमक के साथ शब्दों की गर्जना से पूरे की स्कूल की काय काय को दबा देने का अद्भुत बल लिए वह शालीन व कड़क व्यक्तित्व कोई और नहीं सी. पी. सिंह सर थे । हां , वो सिंह ही तो थे हम बारे में बंद लगभग 600 के आसपास मेमनाओं के लिए , जिनकी गर्जना से आधी जान तो पहले ही निकल जाती थी । सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल तो कतई नहीं दिखते थे । सरकारी स्कूल के सरकारीपन ने भी उन्हें अपनी आगोश में लेने की हिमाकत अब तब तक नहीं की थी । उनका व्यक्तित्व और डील डौल प्रिंसिपल से भी भारी था । यूं कहा जाए तो किसी रौबदार मंत्री की शख्सियत रखने वाले थे। नया टोला जैसे मोहल्ले के हिम्मतवर और खूंखार छात्रों ने भी उस शख्सियत के सामने झुककर नील डाउन होकर दो - चार हाथ खाकर अपने- अपने सुनहरे भाग्य को सराहा था । उनकी आवाज और शख्सियत की मार ही काफी थी । 5 सालों की पढ़ाई में दो - चार बार से ज्यादा रूबरू होने का सौभाग्य हमें नहीं मिला था ।
बड़ा बाजार, चूड़ी पट्टी, नया टोला, अरगड़ा चौक , हरिगंज चौक , गामी टोला ,दुर्गा स्थान ,एक और दो नंबर कॉलोनी, गांधी नगर ,बनिया टोला , मंगल बाजार और कटिहार की हर गली मोहल्ले के छात्रों को अपने में समेटे यह स्कूल कटिहार के बीचो- बीच अपना सिक्का जमाए हुए गर्व से इठलाया करता था ।
जगह की कमी और छात्रों की भीड़ का दबाव कहा जाए या नियति की मार , लड़कों और लड़कियों का एक साथ पढ़ना मयस्सर नहीं हुआ । सुबह के 6:00 बजे से 11:00 बजे तक का समय लड़कियों का और 11:00 से 4:00 बजे का समय लड़कों का था । केवल छठी कक्षा के लिए लड़कों का समय 6:00 से 11:00 का था, मगर उसमें भी लड़कों का सेक्शन अलग ही था । छठी कक्षा पर इतनी मेहरबानी और आरक्षण क्यूं थी, इसका कारण भूतकाल के गर्त में ही रहे तो उचित है । हर एक क्लास के दो सेक्शन थे - सेक्शन - ए और सेक्शन - बी । सेक्शन - ए के लड़के अपने को ए - ग्रेड समझते और सेक्शन - बी के लड़के को बी - ग्रेड । ए से अच्छे और बी से बुरे होने की लड़ाई आम बात थी । यह महज एक इत्तफाक था या सोची समझी योजना थी कि लड़कों के डील - डौल और हाव-भाव से भी यही लगता था या फिर सेक्शन- बी के अधिकांश लड़कों ने अपनी यदि नियति मानकर खुद से समझौता कर लिया था ।
छठी कक्षा के क्लास टीचर नरेश सर थे । गोरे रंग का सामान्य कद काठी के नरेश सर हिंदी और संस्कृत की क्लास लेते थे । सधी हुई टनकदार आवाज के साथ हिंदी और संस्कृत के काव्य- उच्चारण की ध्वनि कोई नहीं भूल सकता । पढ़ाने के अलावा हमने हमेशा उन्हें रजिस्टर लेकर कुछ ना कुछ करते ही देखा था । वह दो ही जगह पर पाए जाते या तो स्कूल के भीतर या फिर रबिया होटल के भीतर चाय की टेबल पर । इसका दुष्परिणाम हमारे लिए यह होता कि हम रबिया होटल की चौक पर ना तो चौका - विहार कर पाते और ना ही मटरगश्ती ही ।उनकी लेखन शैली और आलेख की छवि हमारे जेहन में आज भी तरोताजी है । साधारण होकर भी वह असाधारण थे । शायद ही ऐसा कोई था जिसका कान मचोड़कर उन्होंने लाल नहीं कर डाला होगा ।
बात अगर जब छठी कक्षा की हो तो झरना मैडम, दुर्गा मैडम, रत्ना मैडम और शिप्रा मैडम की बात ना हो तो बेमानी होगी।
झरना मैडम की आवाज से पूरे का पूरा क्लास शांत रहा करता था ।उनकी कड़क आवाज ही हमारे अनुशासन के लिए पर्याप्त थी । झरना मैडम हमें अंग्रेजी पढ़ाया करतीं...