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एक मुलाकात (भाग 2)
उसने यहांँ-वहाँ देखा पर कोई नहीं दिखा। उसने धीमी आवाज में पूछा -"कोई है यहांँ?" उत्तर में केवल एक सन्नाटा ही आया। आत्माओं में वो विश्वास नहीं रखता था, इसलिए वो वापस अपनी किताब पढ़ने बैठ गया।थोड़ी देर बाद विपिन वापस अपने कमरे में सोने चला गया।

विपिन रोज़ रात को लाइब्रेरी में जाता, और रोज ही उसे किसी में होने की आहट आती, पर कोई दिखाई नहीं देता। ये बात उसे अब परेशान करने लगी। एक दिन उसने तय किया कि आज तो पता लगाकर ही रहेगा कि वहाँ है क्या?

रात हुई तो विपिन फिर लाइब्रेरी में गया और इस बार वो किसी बैंच पर बैठकर नहीं बल्कि घूम घूम कर किताब पढ़ने लगा, ताकि हर तरफ अपनी नज़र रख सके। थोड़ी देर बाद उसे फिर से किताबों के हिलने की आवाज आने लगी, वो तुरंत दबे पाव वहांँ गया और बोला -" पकड़ लिया।"

वहाँ एक लड़की नीले सूट पहने हाथों मेे किताब लिए खड़ी थी। लड़की उसको एक टक देखती रही, विपिन भी उसे देखकर कुछ सोचने लगा। विपिन ने अपने मस्तिष्क पर जरा जोर दिया तो उसको याद आया कि ये लड़की तो प्रधानाचार्य की बेटी है। वो झट से दो कदम पीछे हुआ और माफ़ी मांगने लगा।

"मुझसे बात कर रहे हो?" लड़की ने प्रश्न किया।

"जी मैम।" विपिन सर झुकाकर बोला।

"आधी रात को लाइब्रेरी के अंदर अकेले क्या कर रहे हो, तुम्हे पता नहीं यहांँ रात को आना मना है। किसी को पता चला तो स्कूल से निकाल दिए जाओगे।" लड़की अपनी आवाज को सख़्त करते हुए बोली।

"नींद नहीं आ रही थी तो किताबें पढ़ने आ गया। वैसे भी मैं अब लाइब्रेरी का इनचार्ज हूंँ, तो जब चाहे तब आ जा सकता हूंँ यहांँ।" विपिन भी उसी अंदाज़ में बोला।

"और रही बात किसी को पता चलने कि तो मैं खुद किसी से कहूंँगा नहीं, अपने आप किसी को पता चलेगा नहीं।" विपिन आत्मनिर्भरता से मुस्कुराते हुए बोला।

"वैसे आप इतनी रात गए इस लाइब्रेरी में क्या कर रहीं हैं, मिस....?" विपिन डरते हुए बोला। प्रधानाचार्य की बेटी है, कहीं भड़क ना जाए, मन ही मन में सोचने लगा।

" 'मिस सुरुचि', ये स्कूल मेरे बाबा का है इसलिए मेरा भी हुआ, तो मैं कहीं भी कभी भी आ जा सकती हूंँ।" लड़की ने उत्तर दिया। फिर बुक शेल्फ से एक किताब को लेकर वहाँ से चली गई।


© pooja gaur