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एक दफ्तर का धार्मिक भेड़िया
कोरोना के दुसरे दौर का प्रकोप कम हो चला था । दिल्ली सरकार ने थोड़ी और ढील दे दी थी । डिस्ट्रिक्ट कोर्ट थोड़े थोड़े करके खोले जा रहे थे । मित्तल साहब का एक मैटर तीस हजारी कोर्ट में लगा हुआ था ।

जज साहब छुट्टी पे थे । उनके कोर्ट मास्टर को कोरोना हो गया था । लिहाजा कोर्ट से तारीख लेकर टी कैंटीन में चले गए । सोचा चाय के साथ साथ मित्रों से भी मुलाकात हो जाएगी ।

वहाँ पे उनके मित्र चावला साहब भी मिल गए । दोनों मित्र चाय की चुस्की लेने लगे । बातों बातों में बातों बातों का सिलसिला शुरु हो गया ।

चावला साहब ने कहा , अब तो ऐसा महसूस हो रहा है , जैसे कि वो जीभ हैं और चारों तरफ दातों से घिरे हुए हैं । बड़ा संभल के रहना पड़ रहा है । थोड़ा सा बेफिक्र हुए कि नहीं कि दांतों से कुचल दिए जाओगे ।

मित्तल साहब को बड़ा आश्चर्य हुआ । इतने मजबूत और दृढ निश्चयी व्यक्ति के मुख से ऐसी निराशाजनक बातें । उम्मीद के बिल्कुल प्रतिकूल । कम से कम चावला साहब के मुख से ऐसी बातों की उम्मीद तो बिल्कुल नहीं थी ।

मित्तल साहब ने थोड़ा आश्चर्य चकित होकर पूछा ; क्या हो गया चावला साहब , ऐसी नाउम्मीदी की बातें क्यों ? बुरे वक्त का दौर चल रहा है। बुरे वक्त की एक अच्छी बात ये है कि इसको भी एक दिन गुजर जाना होता है । बस थोड़े से वक्त की बात है ।

चावला साहब ने बताया : ये जो डॉक्टर की कौम होती है ना , जिसे हम भगवान का दूसरा रूप कहते हैं , दरअसल इन्सान की शक्ल में भेड़िये होते हैं । उन्होंने आगे कहा , उन्हें कोरोना हो गया था । उनका ओक्सिजन लेवल 70 चला गया था । फेफड़े की भी कंडीशन 16/25 थी जो की काफी खराब थी ।

हॉस्पिटल को रोगी से कोई मतलब नहीं था...