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विदाई पार्टी
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शीर्षक-विदाई पार्टी
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तारीख- 14 मार्च
विद्यालय- विकास मॉडल स्कूल रावतसर
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12 वीं का अंतिम दिन था, आज सभी थोड़े जल्दी आए थे क्योंकि विदाई समारोह होना था, मैं कक्षा मे हंसमुख प्रवृति का इंसान था, मुझे लिखने का शौंक तो बचपन से ही था, टूटा-फूटा शब्दों को जोड़-तोड़ के कुछ लिख देता था और सबके चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी, आज सभी समारोह की तैयारियों में लगे थे, मैं भी अपने स्तर पर व्यवस्था में लगा था लड़कियों को साज- सजावट का कार्य और हमें कुर्सियों को कतार में लगाने का कार्य मिला था , आज ड्रेस की छुट्टी थी तो सभी नए-नए परिधान पहन कर आए थे, मेरी नजरें तो उसे ही तलाश कर रही थी, पैरो में जूती,पांव में पायल और सफेद सूट में उसके माथे पर लगी छोटी सी बिंदी..............
वो स्वर्ग की अप्सरा लग रही थी,
वो सजावट के कार्य में मसरूफ थी अचानक उसने मुझे आवाज लगाई की स्टेज पर कुछ गुब्बारे भी लगाने है तो मैं मार्केट गया और अपनी पसंद के गुब्बारे उसे लाकर दिए , वैसे तो मैं बहुत निर्भीक इंसान था लेकिन उसके आगे सांसे रुक जाती थी और एक शब्द भी नही बोल पाता था, मैने हार्ट शेप के गुब्बारे उसे लाकर दिए वो गुब्बारे फूला रही थी मैं उसे देखने में मग्न था वो अपने अधरों से गुब्बारों में हवा भर रही थी हालाकि मुझे उस वक्त इतना पता नही था की प्यार मोहब्बत क्या होती है लेकिन उसका साथ, उसे देखना अच्छा लगता था, कार्यक्रम की शुरूआत हुई लड़कियों ने लडको के लिए टाइटल लिखे थे उसने भी मेरे लिए टाइटल लिखा और मुझे दिया, एक इतेफाक और भी था उसी दिन उसका जन्मदिन था जो सिर्फ मुझे पता था इसलिए मैंने उसे विश किया और उसने भी सिर्फ मुझे चॉकलेट दी कुछ समय बाद कार्यक्रम का समापन हुआ तो लड़कियां उन गुब्बारों को फोड़ना चाह रही थी लेकिन उन सब से बचाकर मैं उन गुब्बारों को अपने साथ घर ले आया क्योंकि मैं गुब्बारों में भरी उसकी सांसों को महसूस करना चाहता था मुझे उसकी इतनी पहचान थी गुब्बारों में भरी सांसों से मैने ये पहचान लिया था की कौनसा गुब्बारा उसने नही फुलाया मैंने बहुत सी निशानियों के बीच उसके फुलाए गुब्बारों को भी महफूज रखने की कोशिश की लेकिन समय के साथ साथ वो भी गायब हो गई और गुब्बारे में भरी उसकी सांसे भी..............
लेकिन आज भी महफूज है बहुत सी निशानियां क्योंकि ,जब भी वो सामने आती थी अक्सर सांसे थम जाती थी, बस उसका नाम सुनकर धड़कने बढ़ जाती थी, पूरी क्लास की भीड़ में ये नज़रे उसे तलाश करती थी, उसके हाथ की तर्जनी का वो स्पर्श आज भी जिंदा है जो कॉपी देते वक़्त हुआ था उसके रुमाल में आज भी वो खुशब है जो वो क्लास में भूल गई थी मेरे पास आज भी वो पेंसिल महफूज है जिसके नुकीले सिरे को वो दोनों होठों में दबाया करती थी, आज भी वो कार्ड महफूज है जो उसने विदाई पार्टी पर लिखा था, मुझे आज भी उसके रोल नबर तक याद है, और तो और वो चॉकलेट भी मैंने अभी तक नहीं खाई जो उसने अपने जन्मदिन पर मुझे दी थी, सब कुछ है मोहब्ब्त की दर्जनों निशानियां मौजूद है पर अफसोस
वो नहीं है! .......
शायद उस दिन 12 वीं के विदाई समारोह के साथ हो गई थी उसकी भी विदाई क्योंकि ठीक 10 बरस पहले आज ही के दिन मेरे पापा का ट्रांसफर शहर के बड़े स्कूल में हो गया और हम वहां चले गए थे
उसके बाद आज तक वो दिखाई नही दी.....