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हमें भी बैठने दो
जोया :- खाना खाने रसोई में आई।
उसकी ममी रसोई में ही बैठी थी, फोन चला रही थी। आग कम कम जली हुई थी, बुझने को ही थी।
ममी के शोल पूरा फेला हुआ।
जोया:- यार एक तो मैं आती भी लेट हूं। इसीलिए की थोड़ा ठंड में आग तो सेक हूं। तबसे तुम्ही तो बैठे हो। हमें भी सेंक लेने दो थोड़ा। आग भी बुझ गई है। ( लकड़ी जलाते हुए)
मम्मी:- तेरे से तो बात भी नहीं करते। फिर भी भोंकती रहती है। जब देखो लडती रहती है। हमेशा सर पर टाय टाय डालती है।
तू चाहती की हम चले जाएं। साइड को भी खिसक गई फिर भी टाय टाय करती रहती है।
पता नहीं कैसी ओलाद है।
इतनी लंबी लंबी टांगों बाली, इतनी उम्र हो गई है। फिर भी जरा शर्म नहीं है।
इसका तो खुद फ़र्ज़ है कि मा बाप की देखभाल करे। मगर इसे तो हम बर्दाश्त ही नहीं।

जोया:- तो आपको कोनसा ओलाद बर्दाश्त ही है।

मम्मी:- हा रे तेरी वजह से हम बीमार रहते। सब तेरा ही परिणाम है। तू लोगो से हमारी बुराई करती है। सब जानते है हम।

जोया: ठीक है तो फिर में भी पूछ लू जरा उसे जो कह रही है। मैं जानती हूं कोन है वो।

मम्मी:- जब तेरी ओलाद होगी तब देखेंगे। तेरी तो पता नहीं ओलाद होगी भी नहीं।
जब ससुराल वाले निकाल दे तो मेरे पास मत आना मुंह उठा कर।
जोया:- नहीं आउंगी , मर भी जाऊं तब भी नहीं।

जोया कमरे में आंसू लिए जाते हुई।



© jyoti