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डर ......................
किसी को हैवान का डर है!
किसी को भगवान का।
किसी को अंधेर का डर है,
किसी को उजालों का।
हम सब भले ही कितने भी निडर क्यों न बनलें लेकिन डर से भला बचता कौन है सबको थोड़ा थोड़ा लगता तो है डर।
ऊंचाइयों का डर, फ़िर उसी ऊंचाई से धड़ाम से गिरने का डर, समंदर में गहराई का डर, पहाड़ो में खाई का डर।
बचपन में , खेल खेल में चोट का डर, अंधेरो में भूत का डर, माँ की डांट का डर। वही जवानी में आते आते किताबों से भरी उस भारी सा बस्ता जो कंधे पर चढ़ा उस बोझ का डर, ख़्वाबों से सजे आसमान को टूटते देखने का डर, नौकरी न मिलने का डर, अपनों को खोने का डर, किसी खास इंसान से दूर जाने का डर, सीढ़ियों से फिसलने का डर, खुद को खोने का डर।
देखा जाए तो हज़ार शिकायतें होंगी हमें, वो भी किसी और से नहीं बल्कि खुद से, क्योंकि हमें सब आता है पर इतनी हिम्मत कहा की अपने डर से सामना कर सके!
हर दूसरी या तीसरी चीज़ से हम डरते ही तो है, चाहे ज़िम्मेदारियां हो या चाहे क्यों न ऊंचाइयां। हां ऊंचाइयां यानी सफलता, वो सफलता जो मेहनत से मिली वो सीढ़ि उससे भले ही आपको पैसा, इज़्ज़त, मिल जाए लेकिन फ़िर भी है तो वो तो कुछ वक़्त के लिए ही आपका हक़ का हिस्सा है फ़िर कोई न कोई तो आता ही है उसी स्टेटस, या पोस्ट का हिस्सा बनने, अब हमें ये तो पता है की बदलाव ही इस जग का सबसे बड़ा ठहराव है जिसे ना कोई लाँघ सकता है नाही कोई अस्वीकार कर सकता है।
तो डर का मुकाबला तो तभी होगा जब आप वही करोगे जिससे आपको डर लगता है, जैसे जो रात बचपन में डराती थी आज वही रातें हमें सुकून देती है, या जिन लोगों का डर हुआ करता था उन से ही ऊँची आवाज़ में अपने लिए कुछ कहकर डर को मात देना भी कबिल-ए-तरिफ की बात होती है। तो अगर खाई से डर है तो पैराग्लाइडिंग कर सकते है, अगर गहराई से डर है तो ग़ोताख़ोरी कर सकते है, और गर ऊंचाई से डर है तो ट्रेक्किंग कर सकते है, शायद जितना इनसे डर है न उतनी ही एक बार खुदको आज़माने से सारा डर गायब हो जाएगा। अब रही बात ख्वाबों की तो एक ख़्वाब टूटने से खुदको टूटने मत देना इरादा बुलंद कर देना और मंज़िल पाने की तैयारी रखना जितने भी तूफ़ान आए या चाहे हो क्यों न अंधेरा, चाहे हो मूसलाधार बारिश पर तुम ये जानना के तूफ़ान है जहा कही तो है साफ़ आसमान, जहा है अंधेरा वहा उसको मिटाने सवेरा भी होगा, जहा है बारिश वही कही तो सूरज भी चमकेगा। बस डर ही तो है उभरना भी पड़ेगा, डर से जितना डरोगे वो उतना ही डराएगा, इसलिए ही तो डर को भी डर की ज़रूरत होती है, तभी तो डर के बाद ही जीत होती है।
© KalamKiDiwani