...

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अधूरी ख्वाहिश.....
तारों सितारों से भरी शाम थी,
दोनों के बीच कुछ अनकही बात थी
मैं सज-धज कर महफ़िल में आई थी
हाथो में मेहंदी मैंने भी लगवाई थी
ठंडी हवा का झोका जुलफे सुलझा रहा था
और गानों का शोर दिल में हल चल सी मचा रहा था|
वो भी महफ़िल में दोस्त बनकर आया था
फर्श पर बिछा गलीचा और उसपर बैठे हम
नजरें चुराने लगे
पर ये शुरूआत थी या अंत दोनों इस बात से अनजान थे|

हम दोनों ही निकाह में आए थे
और दोनों ने ही घर कहीं दूर बसाए थे,
निकाह के बाद मैं बेचैन परेशान
नजरें घुमाने लगी उसकी एक झलक पाने को दुआ मांगने लगी|
कयोंकि अब समय कम था वापस जाना था और मन में कुछ गम सा था|

सच्चे दिल की दुआ कुबूल हो गई थी
और वो घर दुल्हे से मिलने आया था,
मेरे चेहरे पर अलग ही मुसकुराहट थी
उसे छुप छुपकर देखने की चाहत थी और इतने शोर में भी,
सामने बेठे हम एक दूसरे के बारे में सोच रहे थे|
उसकी चाहत और पसंद से मैं वाकिफ़ न थी|और इस बात से खुद ही से शिकवे बढ़ गए थी|
अब समय हो गया था वापस अपने घर जाने का ;
मन में एक दुआ रह गई थी|
और रब्बा ये मेरे दिल की बात उसे बता दे मैं यही कह रही थी|


महफ़िल में मुझे चाहने वाला कोई और भी था पर मेरा दिल तो आकाश में हवा बन उडने का था|
फिर मै चल दी यह सोच कर की जब, वापस आउ तब वो भी यही मिले|

जाने के बाद सोशल मीडिया पर ढूंढने की नाकाम कोशिश खत्म न हुई ;
दोनों बस एक नाम के सहारे थे|
और 2 महिने बाद में वापस लौटी
बहुत कुछ बदला मगर जो वैसा ही था वो थी चाहत|
मगर इस बार दुआ लबों से निकली थी ,
वरना खुदा इतना भी खुदगर्ज नहीं है|

मेरी चाहत आकाश से थी,
मेरे दोस्त की मुझसे ,
और मैने जसे चाहा वो आया ही नहीं |

खवाहिशे खत्म हो गयी थी
और उम्मीदें अधूरी छोड़ मैं वापस लौट गई||
© Poorva