...

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फ़ुर्सत का आत्ममंथन 🎇💫
मैंने हर दिन
अपने लिए
फ़ुर्सत के लम्हें
ढूँढने की कोशिश की...
और
हर दिन मेरा
ख़त्म होने लगा
ठीक उसी तरह
जैसे हाथ से रेत फिसलकर
अपना ऐसा अस्तित्व छोड़ती है
जिसे जबरदस्ती झाड़कर दूर करना ही उचित लगता है...
फिर मन अशांत हो उधेड़बुन करता हुआ सोचने लगता है . ..
अपने लिए तुम ज़रा सा समय भी नहीं निकाल पा रहे ....
क्या फायदा इतनी मेहनत का ?
बहुत दिनों से अपने आप को परेशान रखने के बाद अचानक इन्हीं भारी - भारकम कागज़ों से उलझते हुए एक ख़्याल आया....
किस काम को
कितना समय देना है
ये तो हमारा अपने आप का लिया फैसला होता है
मैं और आप स्वयं तय करते हैं अपनी प्राथमिकताओं को... वरना खानापूर्ति करने वाले लोगों का काम भी तो चल ही रहा है जैसे-तैसे ...तो फिर उन कार्यों को पूरी तन्मयता , सूझबूझ और नियमों के अनुसार करने के लिए लगाया समय वास्तव में अपने आप को दिया गया समय है ....
इसलिए अत्ममंथन कर- कर के ज़्यादा व्यथित होने की क्या ज़रूरत है 🤕😂🤷🏻‍♀️


© संवेदना