परेतकाल बिशाचकाल डायनकाल सुवरीकाल।।225
परेतकाल बिशाचकाल डायनकाल सुवरीकाल वह यह काल हैं जिनकी विभक्तियां गृहसत होकर बहुएकानि होने की जगह वे इच्छा व स्वार्थ में खंड खंड होकर ध्वस्त हो गई है ,
इसलिए मैं प्रशनवाचक कहता हूं कि बाटी विभक्तियां मगर स्त्री मत बांटो ।। क्योंकि वो महाबोटि कर्म, स्वभाव, मूल्य, समर्पण, त्याग बलिदान, मूल्य , सत्व, गुण, स्वभाव से समर्पण संग्रह निकल कर बनता है, मगर कलि के इस कलियुग के कलियौता में कोई नपुंसकीय आहुतिका कहलाकर कर्मपोशित...
इसलिए मैं प्रशनवाचक कहता हूं कि बाटी विभक्तियां मगर स्त्री मत बांटो ।। क्योंकि वो महाबोटि कर्म, स्वभाव, मूल्य, समर्पण, त्याग बलिदान, मूल्य , सत्व, गुण, स्वभाव से समर्पण संग्रह निकल कर बनता है, मगर कलि के इस कलियुग के कलियौता में कोई नपुंसकीय आहुतिका कहलाकर कर्मपोशित...