...

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कौन जाने।
होते होते एक वक्त आता है जब मैं दुनिया से बिलकुल मुंह मोड़ लेना चाहता हूं। वो चीज बिलकुल बंद कर देना चाहता हूं जो मुझे नीरस होने से बचाती हैं।
अपने बेमतलब अस्तित्व को मतलब देने के लिए सब कुछ त्याग देना चाहता हूं। और आगे की राह बिलकुल सुलगते रेगिस्तान जैसी दिखती है।...