इंसान जिन्दा रहते हुए भी मुर्दे के समान रहता है
जो चाहिए अगर वो न हो बाकि कुछ भी हो उससे क्या फर्क पड़ता है,
इंसा जिन्दा रहकर भी तो मुर्दे के समान रहता है,
वक्त इंशा को तोड़ देता है, और फिर न जुड़ने की हालत में छोड़ देता है,
फिर उसी हालात में जिंदगी गुजारनी पड़ती है
ख़ुशी के पलों में भी रोने को...
इंसा जिन्दा रहकर भी तो मुर्दे के समान रहता है,
वक्त इंशा को तोड़ देता है, और फिर न जुड़ने की हालत में छोड़ देता है,
फिर उसी हालात में जिंदगी गुजारनी पड़ती है
ख़ुशी के पलों में भी रोने को...