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वो मिशनरी
वो मिशनरी, तुम्हारे लिए उस संघर्ष को कर रहा है,
जिस कठिन संघर्ष को तुमने करना था।
वो मिशनरी, तुम्हारे लिए उन रास्तों से गुज़र रहा है,
जिन संकरे रास्तों से तुमने गुज़रना था।
वो मिशनरी, तुम्हारे लिए उन सभी से लड़ रहा है,
जिन ज़ालिम लोगों से तुमने लड़ना था।
क्या तुम्हें पता है?
जब तुम पर ज़ुल्म होता है तो वो मिशनरी पूरी रात नहीं सो पाता। करवटें बदलते हुए तुम्हारी फ़िक्र करता है। तुम्हारा और उसका कोई रिश्ता नहीं लहू का। इसके बावजूद भी वो मिशनरी अपने परिवार की ख़ुशियों को दांव पे लगाकर, तुम्हें ख़ुश देखना चाहता है। वो मिशनरी तुम्हारे साथ हो रहे ज़ुल्म के विरुद्ध निरंतर ही लड़ता रहेगा… किसी के कहने से वो नहीं रुकेगा। तुम्हारे कहने से भी नहीं रुकेगा। क्योंकि वो मिशनरी है एक क़बीलाई मुसाफ़िर… जोकि प्रबल योद्धा के तौर पर संविधान निर्माता बाबा साहेब की लिखी किताब में पढ़ चुका है, ”ज़ुल्म करने वाले से ज़ुल्म सहने वाला ज़्यादा गुनहगार होता है।“
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सम्मानित साथियों, हरियाणा प्रदेश स्थित ज़िला जेल, करनाल में लगभग 16 महीने बंदी के तौर पर क़ैद रहने के दौरान, ज़िंदगी के कड़वे अनुभवों की बदौलत ही मैंने इस लघुकथा को लिखा था। भ्रष्ट प्रशासनिक आला अधिकारियों द्वारा जातीय द्वेष के आधार पर रचे गए षड्यंत्र में फंसने उपरांत अब मैं माननीय कोर्ट से बरी हो चुका हूं।
© मानव दास 'मद' ✍️
Manav Dass MD