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शगुन - १५२ दानों का
नदी के किनारे पहुँचते ही मंगल और श्री को देख चिटियों का सपरिवार बेहद ख़ुश और दोनो का आभार व्यक्त कर रहा था....

रात हो रही थी और मंगल और श्री को अपने निवास स्थान पहुंचने का डर सता रहा था, परंतु गंतव्य स्थान दूर और राह भटक जाने की वजह से दोनों चिंतित मन लिए उसी वन में किसी सुरक्षित जगह पर रात बिताने की बात करते हैं।

और उस चींटी परिवार के स्थान से चंद कदम की दूरी पर एक पर्वत के ओट में ठहरने का प्रबंध करते हैं। मंगल और श्री दोनों ही भूखे होते हैं,

मंगल श्री को लताओं की सेज बनाकर उस पर बैठता है और श्री के लिए कुछ सुंदर स्वादिष्ट फल लाने की व्यवस्था कर ले जंगल में चला जाता है।

जैसे तैसे करके मंगल चाँदनी रात के सहारे श्री के लिए एक भोज्य फल का व्यवस्था कर पाने में सक्षम हो जाता है।

मंगल श्री को सुंदर स्वादिष्ट भोज्य फल अपने हाथों से खिलाता है और श्री को नदी का स्वच्छ अमृत जल अपने हाथों से खिलाने के बाद स्वयं नदी का जल पीकर श्री के साथ विश्राम करने लगता है...

अत्यधिक भूख के कारण मंगल को नींद नहीं आ रही थी तो मंगल के बारे बार करवट बदलने को श्री ने महसूस किया और मंगल से पुनः पूछा आपने कुछ खाया या नहीं ।

मंगल ने बोला हाँ श्री मैंने जंगल में ही स्वादिष्ट फल खा लिया था , मुझे ज्यादा भूख लगी...