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अवचेतन मन का महत्व
मन दो प्रकार के होते हैं चेतन ओर अचेतन। मनुष्य चेतन मन से संसार को देखता और समझता है तथा अवचेतन मन उसकी सोच का पूरा लेखा जोखा कंप्यूटर की मेमोरी की तरह एकत्रित करता है। अवचेतन मन के द्वारा ही मनुष्य का व्यक्तित्व और उसका मानसिक स्वास्थ नियंत्रित होता है। आज के भौतिक युग में मनुष्य की कामनाएं बहुत बढ गयी हैं,जिनकी प्राप्ति हेतु दिन रात प्रयत्नशील रहता है। कभी-कभी अपनी कामनाओं को पूर्ण करने के लिए वह अनैतिक कर्म कर डालता है,जिसके द्वारा उसके चेतन मन में अनजाना भय और अपराधबोध की भावना जाग्रत होती है। हांलाकि कुछ समय पश्चात चेतन मन इनको भूल जाता है,परन्तु ये सब उसके अवचेतन मन में अवस्थित हो जाती हैं।
संतुष्ट और संयमित मनुष्य का व्यक्तित्व सकारात्मक होता है,वहीं मोह र कामनाओं से ग्रस्त मनुष्य विचलित नजर आता है। यही विचलन उसके मानसिक अवसाद का कारण बनता है। बहुत से लोगों को बुरे सपने दिखाई देते हैं। इन सपनों का भी मूल कारण यही अवचेतन मन होता हैं। इससे ज्ञात होता है कि मनुष्य के सारे मानसिक विकरों का कारण उसकी सोंच और उसके द्वारा निर्मित अवचेतन मन ही है। इसलिए यदि मनुष्य को मानसिक बीमारियों से बचना है तो सर्वप्रथम उसको अपनी सोंच को सकारात्मक बनाना होगा। इसके लिए मनुष्य को नैतिकता का मार्ग अपनाते हुए संतुष्टि की भावन को जाग्रत करना होगा।
एक जीव जब मृत्यु के समय अपना शरीर छोडता है तब उसका सूक्ष्म शरीर दूसरे जन्म में उसके साथ जाता है।
इस सूक्ष्म शरीर में उस व्यक्ति की आत्मा और अवचेतन मन दोनों ही जाते हैं।
इस प्रकार अवचेतन मन के द्वारा जीव का अगला जन्म भी प्रभावित होता है।
इसको देखते हुए मनुष्य को अपनी सोंच को सकारात्मक बनाना चाहिए।