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मेरी ज़िंदगी....✍️
मेरी ज़िंदगी की किताब है
किताब सी मेरी ज़िंदगी
न कल हुआ मेरा कभी
न कल मेरा कभी हुआ
मेरी ज़िंदगी की किताब है.........

न ख़्वाब पूरा हो सका
न बन सका नया कोई
कोई मिला कभी मिला
न मिल सका मुझे कोई
मेरी ज़िंदगी........

जवानी चली है उम्र से
यूँ उम्र न...हमराह बनी
कुछ मोड़ से मुड़ी हूँ मैं
कुछ मोड़ से मैं रह गई
मेरी ज़िंदगी.....

इश्क़ सुना कभी बहुत
मिला नहीं मुझे कभी
मिला कभी तो न बन सका
मेरा वहां जहां इश्क़ कभी
मेरी ज़िंदगी....

थकी हुई सी ज़िंदगी
बीमार सी लगने लगी
शायद यही से इश्क़ की
ख़ुमारी मुझमें लग गई
मेरी ज़िंदगी.....

कहीं किसी रोज़ में
निगाह उनसे मिल गई
मिली मगर मैं बेख़बर
हर बार उनसे हो गई
..मेरी ज़िंदगी.....
...
फिर मिले कभी यूँ ही
कुछ बात उनसे हो गई
अंजान बनकर थोड़ी सी
पहचान उनसे हो गई
.मेरी ज़िंदगी....

पसंद से पसन्द तक
वो राज़ मेरे दिल में था
न चाहती थी बोलना
न बोलकर मैं इश्क़ इकतरफ़ा ही था
मेरी ज़िंदगी.....

गुज़रे कई अर्ज़े मगर
दीदार से मैं खुश हुई
न चाहती ज़्यादा कुछ
बस इस तरह ख़ुश हो गई
..मेरी ज़िंदगी....

फिर कहीं इक रोज़ पे
वो खुद किये हैरान मुझे
मेरे दर पर दस्तक दी मगर
मेरे दिल में बेहिसाब हुए
..मेरी ज़िंदगी......

न हुआ यकीन वक़्त पर
न किस्मत न मेरे यार पर
पर फिर हुआ यकीन मुझे
कभी दुआ में मांग कर
..मेरी ज़िंदगी...

शायद कोई दुआ मेरी
कुबूल थी उस रात पर
जिस रात मिली सौगात मुझे
मेरे इश्क़ पर मेरे प्यार पर
मेरी ज़िंदगी......

मेरी बेचैन रूह को चैन मिला
जैसे चांद को रैन मिला
अब सुकून है वो ज़िंदगी
अब हमराह है वही शक़्स कोई
मेरी ज़िंदगी.....

प्यार क्या सुना था बस
किया है मिला है जैसे जन्नत कोई
मेरा इश्क़ बेशुमार सा
उनका बेहिसाब सा
मेरी ज़िंदगी....




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