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पॉपकॉर्न
हम स्त्री 2 मूवी देखने दोस्तों के साथ गये, अब दोस्त ठहरे पैदाइसी अमीर,पहुंचते ही कहा कुछ स्नैक्स वगैरह लें लेते हैँ, मिडिल क्लास होने के नाते हमारी नज़र पहले प्राइज पे जाती हैँ,! बड़े से कार्डबोर्ड पे सुनहरे अक्षरों में लिखा था एक समोसा -100₹, बर्गर -250₹ हम आगे देख नहीं पाए |दोस्तों को खींचते हुए हॉल के अंदर लें गये और कहा खाने के चक्कर में फ़िल्म ना छूट जाये, इंटरवल में कुछ लें लेंगे पॉपकॉर्न वगैरह...
दोस्तों ने सबसे पिछली सीट बुक की थी, महंगी वाली उनके चक्कर में अलग जेब ढीली करनी पडती ह,ैँ वरना हमको कोई फर्क नहीं पड़ता |
बन्दे को फिल्म देखने से मतलब होना चाहिए सीट चाहे कोई भी हो!
फिल्म बहुत बढ़िया लगी फर्स्ट हॉफ कब खत्म हो गया पता ही नहीं चला |
इंटरवल होते ही सब पीछे पड़ गये इतनी अच्छी मूवी बिना पॉपकॉर्न के देख ही नहीं सकते थे |
खैर हम स्नैक्स लेने फिर से पहुंच गये थे,
सबने पॉपकॉर्न लिया, मुझे भी लेना पड़ा 250₹
बटर फ्लेवर वाला लिया मैंने,इससे सस्ता नहीं था |
सोचा काश पहले ही एक समोसा लें लिया होता
हम अपनी सीट पे पहुंच गये| फिल्म अभी स्टार्ट नहीं हुई थी सब पॉपकॉर्न का लुत्फ़ उठा रहे थे और हम अपनी बचपन की यादों में पहुंच गये!
इस पॉपकॉर्न को हम लावा कहते थे, मक्के का सत्तू बनाने के लिए मकई को बालू के साथ भूनते थे |
जो दाने ज्यादा खिल जाते थे,उनको उचीला के दादी हम भाई -बहनों को देती थी |
हम थोड़ा खाते, थोड़ा फैलाते या छोड़ छाड़ कर खेलने निकल जाते थे |
तब हमें इसकी कीमत का पता नहीं था |
मक्के की खूब खेती होती थी हर तरफ मक्का ही मक्का, बहुत सी चीजे बनाई जाती थी, तब पता नहीं था की निकट भविष्य में बेबी कॉर्न इतना महंगा मिलेगा? और मक्के से बनी चीज़े खरीद कर खानी पड़ेगी |
मेरे दोस्तों को नहीं पता था कि मेरे मन में क्या चल रहा हैँ
सबने अपना आधा डोंगा ख़तम कर लिया था |
पिक्चर भी स्टार्ट हो गयी थी, हमने अपनी गांव कि मिट्टी को, मन ही मन प्रणाम कर पॉपकॉर्न खाना शुरू किया |
यें खरीदा हुआ मकई का लावा ( पॉपकॉर्न ) कैसे बेकार जाने देती..|