...

17 views

yes I am graduate
मैं कोई कमाऊ पति की पत्नी नहीं जो शाम होते ही शौल ओढ़ कर टीवी देखने बैठ जाऊं। मैं एक किसान हूं,और इसलिए मुझे रात दिन खेतों में काम करना पड़ता है। कहानी सच्ची पर कई वर्षों पुरानी है बिहार के एक गांव की समान घराने की महिला की। उन दिनों मै मीडिया में बहुत ही तन्मयता से काम कर रही थी। संध्या जब घर लौट रही थी, शाम धुंधली या यूं कहें कि गोधूलि बेला ठंड की रात और पगडंडियों से मेरी गाड़ी गुजर रही थी मैंने देखा कि एक महिला खेतों में खुरपी चला रही है। मैंने अपनी ड्राइवर से कहा था कि रुको एक बार तो उसने ना नुकर किया रास्ता खराब है,वीराना भी। सुनसान जगह में शाम हो गई है गाड़ी रोक ना ठीक नहीं। फिर भी मेरे बोलने पर उसने है गाड़ी रोका। मैं गाड़ी से उतर कर उस महिला के पीछे जाकर खड़ी हो गई। कई मिनटों तक वह महिला मुझे देखी नहीं फिर मैंने आवाज लगाई। वह पलट कर मुझे देखी और खड़ी हो गई। फिर मैंने उससे पूछा की इस वक्त आप खेतों में काम कर रहे हैं शाम का टाइम है और ठंड का मौसम भी। जवाब तुरंत ही हां कोई मैं मजदूर नहीं जो इस वक्त काम कर रही हूं तो हर टाइम हो जाएगा मैं एक किसान हूं और किसान तो रात दिन अपने खेतों में मेहनत करते हैं सो मैं कर रही हूं। साथियों उसने एक लाइन और भी कर दिया मैं कोई कमाओ पति की पत्नी नहीं की शौल ओढ़ कर टीवी देखने बैठी रहूं।
सच मानिए उसने मुझे झकझोर दिया था और मैं उस महिला से बिना बात किए हुए आने की स्थिति में नहीं रह गई थी यही हुआ मैं उससे बातें करने लगी और फिर वह अपनी खेती मुझे दिखाने लगी ओल के खेत, केले का बगीचा आम के बगीचे गेहूं हल्दी वर्मी बहुत सारी चीजें की खेती वह थोड़े से ही खेत में कर रही थी और फिर जब दरवाजे पर लाई तो कई गाय मैं देखकर दंग रह गई सब कुछ वह खुद ही तो कर रही थी। फिर मुझे एहसास हुआ कि हमारी जैसी महिलाएं बहुतों है जो पड़ती है नौकरी करती हैं और फिर आराम की जिंदगी जीती है पर आज मैं जिस से मिल नहीं हूं वह कुछ खास है उस जैसी सब नहीं होती। बातों बातों में पता चला कि जब शादी करके आई थी तो घर में खेत के सिवा कुछ भी नहीं थाऔर खाने को भी लाले पड़े थे।पति कुछ नहीं करते थे फिर कमान संभाल ली महिला ने और खुरपी उठा कर अपने ही खेतों में काम करने लगी तो खेती फसल लहलहा उठे।तीन बेटों की मां बनकर मातृत्व का भी मजा लिया।तीनों बेटे बहु अच्छी पोस्ट पर नौकरी कर रहे थे। उस वक्त भी उनके साथ नहीं थे। वह आज भी किसान है। अचानक एक दिन उसकी याद आई।हमने नंबर ढूंढा और कॉल की ।हमने कहा क्या आप पहचानी उसने कहा नहीं मैंने कहा एक शाम को खेतों एक महिला जो आपको अचानक मिली थी और सब कुछ जान गई थी आपके साथ बैठकर आपका ।वही हूं पत्रकार अमृता। उसने मुझे हंसते हुए पहचाना। यह कहानी हर उस महिला की है जिसके पति कमाऊ नहीं या फिर कमाऊ है भी तो इतना नहीं कमतर जिससे खर्च चले। घर चल सके उस हर पत्नी को कमाऊ बनना पड़ता है।वो भी पढ़ी लिखी थी।पूछने पर झट से कहा था यस आई एम ग्रेजुएट। पर हरी कहा थी घर में।
हां बेटियां हारती हैं आज भी अपने ही घर हूं।
#डर अमृता

© All Rights Reserved