...

2 views

एक डर, बिजुका
हरिहरपूर पहुँच कर मैं अपने दोस्त के खेतों को देखने चला गया। दोस्त के बहुत जिद्द के बाद उसके गाँव गया था। गाँव अब गाँव कहाँ रहे आधुनिक चीजों ने गाँव को भी शहर जैसा कर दिया। परंतु शुद्ध वातावरण ही है जो गाँव को गाँव बनाये रखे हुए है।
दूर दूर तक बस खेत और खेतों में भरपूर अनाज उगे हुए। मेरे दोस्त ने कहा चलो तुम्हे अपना खेत दिखा दूँ! मैं भी उसके साथ चला गया। वहाँ उसके खेत में मजदूर किसान लगे हुए थे जो खेत की देख रेख कर रहे थे। मेरे दोस्त को घर वालों ने बुलाया तो वो मुझे खेत देखता छोड़ घर की ओर चला गया। मैं उसके किसानों से बात करने लग गया। खेत में अनाज अच्छी मात्रा में उगे थे। किसान खुश थे। पर मेरी नज़र वहाँ पर मौजूद एक पेड़ पर बैठे बहुत सी चिड़ियाँ पर पड़ी वो बस अनाज की तरफ देख रहे थे परंतु कोई भी पंछी खेत में आने का हिम्मत नहीं कर रहे थे। ये सब देख मेरे अंदर एक जिज्ञासा हुई की ऐसा क्या खाश बात है की ये पंछी खेत में रखे अनाज को देख कर भी खा नही रहे। और बस दूर से देख रहे।
मैंने जब किसानों से ये बात पूछी तो वहाँ मौजूद एक बूढ़े रमेश चाचा ने मुझे देख कहा ये सब भी तुम्हारे जैसे विदेशी बाबू है, बाबू साहब! मैंने कहा मतलब? रमेश चाचा ने अपनी बात जारी रखी कहा ये पंछी का समूह इसी महीने इस इलाके में आते है। परंतु इस वर्ष ये थोड़ा लेट आये। तो हमें लगा ये अब नही आयेंगे तो हमने खाशा तैयारी नही की तो इन पंछीयों ने जम कर अनाज खाया पहले दिन। जब हमने देखा तो हमने भी अपनी तैयारी कर दी। लगा दिया ये बिजुका को। बिजुका मतलब? अरे बाबू साहब ये मटका का सर वाला दिख रहा। हाँ चाचा! वही बिजुका है। उससे इन पंछीयों को लगता है कोई इंसान खड़ा है तो वो नही आते। वो इंसानो से इतना डरते है चाचा! नहीं बाबू उन्हे हमलोग डराते है पहले जोड़ जोड़ से अवाज कर, डंडो को घुमा कर जब वो आये, तब कहीं उनके अंदर डर आता है। देखो अब बस बिजुका को देख कर ही नही आ रहे।
मेरी नज़र अब उन पंछियों पर चली गई। मैं उन्हे अब ध्यान से देखने लग गया। उनमें से एक पंछी ने तो मेरा पुरा ध्यान अपनी ओर कर लिया। वो थोड़ी देर खेत की तरफ उड़ता फिर दूसरे पंछी उसके साथ आते और उसे दूसरी तरफ ले जाते। शुरुआत में मुझे लगा ये कोई पंछीयों की क्रीड़ा है। परंतु थोड़ी देर बाद पता चला की सिर्फ एक पंछी ही है जो खेत की तरफ आ रहा बाकी पंछी उसके साथ जुड़ उसकी दिशा बदल रहे। ये बार बार हो रहा था। मैं चकित था कि ये हो क्या रहा। मेरी समझ में वो पंछी अब बगावत कर रहा था बिजुका के खिलाफ की वो इंसानों से नही डरेगा या उसे ये भनक लग गई थी की वो इंसान नहीं बल्कि इंसानों द्वारा बनाया गया कुछ इंसान की आकृति का है अथार्थ बिजुका है। परंतु उसके साथी उसका साथ नही दे रहे थे जो उसे बार बार दूसरी दिशा की ओर ले जा रहे थे। वो पंछी या तो भूख से व्याकुल था या अपने बच्चों को खिलाने की इच्छा ये मैं नही जानता। परंतु वो बिजुका के पास आना चाह रहा था, परंतु पंछीयों का समूह उसे दूसरी दिशा में ले जा रहे थे। और आधे घंटे से ये लगातार हो रहा था। वो उड़ कर बिजुका के पास जाने खोजता, दूसरे पंछी उसे वो पेड़ की ओर ले जाते।
मैं सब को छोड़ उन पंछीयों की ये प्रक्रिया जो बहुत देर से हो रही थी वो देख रहा था। और ना जाने क्यों मुझे लग रहा था कि अब मैं उनकी भाषा समझ रहा हूँ। मानो वो पंछी बोल रही हो कि मैं अब अनाज ले कर रहूँगी ये इंसान नही जाने वाला, और सारी पंछिया बोल रही हो नहीं वो तुम्हे मार सकता है। आपस की लडाई जारी थी। एका एक वो पंछी बिजुका के सिर पर बैठ गई। और सारे पंछी उसके चारो तरफ उड़ने लगे। वो पंछी उछल उछल कर कभी सिर, तो कभी उसके बाजू पर बैठ रही थी, मानो कह रही हो देखा ये कुछ नही करने वाला मैंने कहा था न, आधे घंटे से अधिक प्रक्रिया थी वो और वो पंछी अब किसी विजयी खिलाड़ी जैसे उत्सव कर रही थी। और दूसरे पंछी उसके इस विजय में उसके चारों और उड़ कर उसका साथ दे रही थे। कुछ ही देर में पंछीयों का कुछ समूह बिजुका पर बैठ गया और कुछ पंछी अनाज खाने लगे परंतु वो पंछी ने अनाज खाया नहीं बल्कि वो कूद कूद कर अनाज अपने चोंच में भरने लगी और उन्हे अपनी चोंच में लेकर पेड़ की और उड़ गई मानो वो अनाज अपने बच्चे के लिए ले गई हो। ये संगर्ष शायद इसलिए थी। ये देख मेरे मुख पर एक चमक आगई। और न जाने क्यों मैं मुस्कुराने लगा जैसे ये मेरी जीत हो। पर किसानो को ये बात शायद अच्छी नहीं लगी उन्होंने उस पंछी की संगर्ष कहाँ देखा था देखते तो शायद एक खेत वो सिर्फ पंछीयों के लिए छोड़ देते परंतु अभी वो जोड़ से चिलाते हुए बिजुका की और भागे।
मेरी नज़र तो उस पेड़ पर थी जिसमें घोसला तो दूर मुझे उसकी शाखाएँ भी नही दिख रही थी परंतु मेरे अंदर एक दृश्य चल रहा था जिसमें वो अनाज अपने बच्चों को खिला रही थी। तब तक एक आवाज दस्तक देती है, अकेले अकेले क्यों मुस्कुरा रहे कहीं भाभी की याद आ गई क्या? मैं उसे देखा वो मेरा मित्र था, मैं बस मुस्कुरा कर न मैं सिर हिलाया और उसके साथ उसके घर चला गया।

© A.K.Verma