माँ के आँसू....
सूना है कि दुनिया की सबसे डिफिकल्ट जोब एक माँ की होती हैं । जो हर रोज बिना छुट्टी लिए नोन-स्टोप हार्ड-वर्क सिर्फ अपने बच्चों के लिए करतीं हैं । वो भी संपूर्ण मेहनत-मशक्कत के साथ अपने बच्चों की परवरिश करतीं हैं । अपनी पूरी लाइफ बेझिझक होकर बच्चों को संवारने न्योछावर कर देती हैं,वो भी जरूरत से ज्यादा फिक्रमंद होकर, क्योंकि माँ बिना सेलेरी, पेंशन लिए बगैर अपना मातृत्व का फ़र्ज़ निस्वार्थ निभाती हैं । चाहें बच्चे कितने भी बड़े क्यूं न हो जाए, लेकिन माँ की नज़रों में वो हमेशा नन्हा-सा बच्चा ही रहता है । क्योंकि माँ का प्यार वाकई में महान और अद्भुत होता है, जिसकी तुलना किसी से करना मेरे लिए नामुमकिन के बराबर हैं ।
लेकिन आज वक़्त और हालात के सामने माँ की परिभाषा साफ़ तौर पर बदल चुकी है । क्योंकि जो कल बेटा माँ का था, वो आज पत्नी का बन चुका हैं । लेकिन यह कैसे वह भूल जाता है कि माँ ने उम्र के हर पड़ाव पर अपनी इच्छाओं और अभिलाषाओं को मारकर अपने बच्चों का लालन-पालन सदैव अमीरों जैसा किया है तथा ज्ञान रूपी संस्कारों से पोषित किया है । वो माँ आज ढ़लती उम्र-ए-दराज पर वृद्धा आश्रम में जीवन व्यतीत कर रहीं हैं । वो भी अत्यंत अशक्त और लाचार बनकर, फिर भी बेटे को कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि वो पत्नी के प्रेम रूपी मोहपाश में कैद बन चुका हैं । अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर यथार्थ भूल जाता हैं । जैसे माँ काम करने में असर्मथ हो गई तो अपने पर बोझ समझ लिया, लेकिन हम यह कैसे भूल जाते हैं की जिसने अपने गर्भ में नव माह तक धारण किया और विकट से विकट स्थिति में भी अच्छी तरह देखभाल किया वो माँ आज निकम्मा.. बुढ़िया हो गई । जिसके बिना हमारा अस्तित्व इस धरा पर कभी संभव ही नहीं था ।
यह कहानी रमा और अपने पारिवारिक जीवन में संघर्ष दर्शाती हुई इर्द-गिर्द घूमती है । जिसमें रमा ने कठिन से कठिन हालातों के आगे हारे बिना जिम्मेदारी का फ़र्ज़ बखूबी...
लेकिन आज वक़्त और हालात के सामने माँ की परिभाषा साफ़ तौर पर बदल चुकी है । क्योंकि जो कल बेटा माँ का था, वो आज पत्नी का बन चुका हैं । लेकिन यह कैसे वह भूल जाता है कि माँ ने उम्र के हर पड़ाव पर अपनी इच्छाओं और अभिलाषाओं को मारकर अपने बच्चों का लालन-पालन सदैव अमीरों जैसा किया है तथा ज्ञान रूपी संस्कारों से पोषित किया है । वो माँ आज ढ़लती उम्र-ए-दराज पर वृद्धा आश्रम में जीवन व्यतीत कर रहीं हैं । वो भी अत्यंत अशक्त और लाचार बनकर, फिर भी बेटे को कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि वो पत्नी के प्रेम रूपी मोहपाश में कैद बन चुका हैं । अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर यथार्थ भूल जाता हैं । जैसे माँ काम करने में असर्मथ हो गई तो अपने पर बोझ समझ लिया, लेकिन हम यह कैसे भूल जाते हैं की जिसने अपने गर्भ में नव माह तक धारण किया और विकट से विकट स्थिति में भी अच्छी तरह देखभाल किया वो माँ आज निकम्मा.. बुढ़िया हो गई । जिसके बिना हमारा अस्तित्व इस धरा पर कभी संभव ही नहीं था ।
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