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भारत की तलाश
पुस्तकों, प्राचीन स्मारकों और विगत सांस्कृतिक उपलब्धियों ने मुझमें एक हद तक भारत की समझ तो पैदा की लेकिन मुझे उससे संतोष नहीं हुआ, न ही मुझे वह उत्तर मिला जिसकी मैं तलाश कर रहा था। वर्तमान मेरे लिए और मुझ जैसे बहुत से और लोगों के लिए मध्ययुगीनता, भयंकर गरीबी एवं दुर्गति और मध्य वर्ग की कुछ-कुछ सतही आधुनिकता का विचित्र मिश्रण है। मैं अपने वर्ग और अपनी किस्म के लोगों का प्रशंसक नहीं था, फिर भी भारतीय संघर्ष में नेतृत्व के लिए मैं निश्चित रूप से मध्य वर्ग की ओर देखता था। यह मध्य वर्ग स्वयं को बंदी और सीमाओं में जकड़ा हुआ महसूस करता था और खुद तरक्की और विकास करना चाहता था। अंग्रेजी शासन के ढाँचे के भीतर ऐसा न कर पाने के कारण उसके भीतर विद्रोह की चेतना पनपी। लेकिन यह चेतना उस ढाँचे के खिलाफ़ नहीं जाती थी जिसने हमें रौंद दिया था। ये उस ढाँचे को बनाए रखना चाहते थे और अंग्रेजों को हटाकर उसका संचालन करना चाहते थे। ये मध्य वर्ग के लोग इस हद तक इस ढाँचे की पैदाइश थे कि उसे चुनौती देना या उसे उखाड़ फेंकने का प्रयास करना इनके बस की बात नहीं थी।

नयी ताकतों ने सिर उठाया और वे हमें ग्रामीण जनता की ओर ले गईं। पहली बार एक नया और दूसरे ढंग का भारत उन युवा बुद्धिजीवियों के सामने आया जो इसके अस्तित्व को लगभग भूल ही गए थे या उसे बहुतकम अहमियत देते थे। यह दृश्य बेचैन कर देने वाला था इसलिए कि उसने हमारे कुछ मूल्यों और निष्कर्षों में संदेह उत्पन्न कर दिया था। तब हमने भारत के वास्तविक रूप की तलाश शुरू की और इससे हमारे भीतर इसकी समझ और द्वंद्व दोनों ही पैदा हुए। कुछ लोग इस ग्रामीण समुदाय से पहले से परिचित थे, इसलिए उन्हें कोई नया उत्तेजक अनुभव नहीं हुआ। पर मेरे लिए यह सही अथों में नयी तलाश के लिए यात्रा थी। गोया कि मुझे बराबर अपने लोगों की असफलताओं और कमजोरियों का दर्द भरा अहसास रहता था, पर भारत की ग्रामीण जनता में कुछ ऐसा था जिसे परिभाषित करना कठिन है पर उसने मुझे बराबर आकर्षित किया। उनमें कुछ ऐसी बात थी जो मध्य वर्ग में अनुपस्थित थी।

मैं आम जनता की अवधारणा को काल्पनिक नहीं बनाना चाहता। मेरे लिए भारत के लोगों का अपनी सारी विविधता के साथ वास्तविक अस्तित्व है। उनकी विशाल संख्या के बावजूद मैं उनके बारे में अनिश्चित समुदायों के नहीं, व्यक्तियों के रूप में सोचने की कोशिश करता हूँ। चूँकि मैंने उनसे बहुत अपेक्षाएँ नहीं रखी, शायद इसीलिए मुझे निराशा भी नहीं हुई। मैंने जितनी उम्मीद की थी उससे कहीं अधिक पाया। मुझे सूझा कि इसका कारण और इसके साथ ही उनमें जो एक प्रकार की दृढ़ता और अंत: शक्ति है उसका कारण भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा है जिसे उन्होंने कुछ अंशों में अब भी बचाए रखा है। पिछले दो सौ वर्षों में उन्होंने जो अत्याचार झेला है बहुत कुछ तो उसी के कारण समाप्त हो गया। फिर भी कुछ तो ऐसा बच रहा है जो सार्थक है और उसके साथ बहुत कुछ ऐसा है जो निरर्थक और अनिष्टकर है।