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उपन्यास- अध्याय १
ए‌क समय था जब धरती पर विनाश कि छाया मंडरा रही थीं। जब दुनिया की सारी नस्ले अपने अस्तित्व को लेकर संकट में थीं। यह एक ऐसा समय था जब वसुधा पर अराजकता फैली हुईं थीं और देवताओं ने धरती को अकेला छोड़ दिया। इस अराजक काल में धरा पर अन्य ताकतवर नस्ले जो मनुष्यों की धन-धान्य से भरी बस्तियां लूटने पर आतुर थीं,उन्होंने मनुष्यों कि नगरियों पर हमला कर दिया।
अधिकांश मानव मैदानों में बनी बस्तियों में रहते थें। उनकी कुछ बस्तियां तो हमारे वक्त के नगरों से भी बड़ी थीं। मैदान जो सीधे-सपाट थे, उनके लिए खतरा बन गए। सभी मनुष्य जो अपनी बौद्धिक संपदा के लिए जाने जाते थे, उन्हें अपने घरों को छोड़कर पहाड़ों और जंगलों में छिपना पड़ा। मैदान जो किसी वक्त अपनी आसान भौगोलिक स्थितियों के कारण उनका घर बने , वहीं आज उनकी जाति के लिए खतरा बन गए। मानव जाति अपनी बुद्धि के बल पर सभी जातियों-नस्लों में अग्रणी थी। उनके बनाए गए अजूबों कि पूरी दुनियां कायल थीं। अपनी कीमियागिरी (कौशल जिससे जीवों और वस्तुओं की प्राकृतिक बनावट को समझकर उनमें परिवर्तन/बेहतर बनाना) की बदौलत वे काफ़ी अमीर और प्रभावशाली बन गए ।इस दुनिया में मानव और अन्य नस्लों में यह मूलभूत अंतर हैं। मनुष्य जाति में हुए mutation के बाद वे बौद्धिक तौर पर अग्रिम होते चले गए लेकिन यही पर कमजोरियां भी उभरकर सामने आई।
मनुष्यों ने ये सोचा की वे अपनी बुद्धि को अपनी ताकत बनाकर इस संसार में वे हमेशा फलते-फूलते रहेंगे। उन्होंने अधिकांश जातियों और नस्लों से सहज संबंध बनाएं और वक्त आने पर उनकी मदद भी की ताकि उनमें घनिष्ठता बढें। इस प्रकार उनका यह तरीका काम कर गया। साथ ही उन नस्लों ने भी बुरे समय में उनका हाथ बटाया और मनुष्य जाति अब तक अपने आशियाने सुरक्षित रखनें में कामयाब रही लेकिन वक्त फिरने में कितनी ही देर लगती है , धीरे- धीरे मनुष्यों से पीछे रह जाने के कारण अन्य जातियां उनसे ईर्ष्या करने लगी और मौका मिलने पर मनुष्यों की प्रतिष्ठा धूमिल करने लगी। मनुष्यों की मदद से जिन नस्लों ने प्रगति कि उनके प्रतिद्वंदियों का रोष भी उन्हें झेलना पड़ा और दोस्तों के साथ दुश्मनों की फेहरिस्त भी बढने लगी।

it is my first adventure as novel.
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