...

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Pandemic: The Inner Voice
न मैं मर पा रहा हूँ न जी पा रहा हूँ
न बदली हुई चीजों, को बदल पा रहा हूँ
जो हालात बनायीं है मैंने खुद की, न ही मैं उसे बदल पा रहा हूँ
जो करना चाह रहा हूँ, वो कर नहीं पा रहा हूँ
ना ही खुद पर भरोसा, मैं रख पा रहा हूँ
बदलती जा रहीं हैं चीजें खुद से, न मैं उन पर काबू कर पा रहा हूँ
लोग पूछते हैं अक्सर क्या हुआ है, न मैं उन्हें ये समझा पा रहा हूँ
चीजें बदलती हैं एक दो दिन को, लेकिन फिर मैं उसी मैं फँसे जा रहा हूँ
मैं खुद, खुद से बहुत दूर चला गया हूँ, अब बस एक दिखावे की जिंदगी जी रहा हूँ,
मैंने तो खो दिया है बहुत पहेली ही खुद को, अब पता नहीं मैं किसे जिए जा रहा हूँ
मैं नहीं हूँ ये ,ये मालूम है, फिर भी मैं खुद को नहीं ढूंढ पा रहा हूँ,
क्या करूँ मैं, ये समझ नहीं पा रहा हूँ
आ गया हूं मैं बहुत दूर उनसे , करीब था मैं कभी जिनके,
बस एक कदम और दूर उनसे, आऊंगा फिर यादों में उनके।
© Rohi