धन और ऋण
तुम और मैं.. धन और ऋण की तरह हैं।
कुछ जुड़ गया है इस बंधन में, तो कुछ घट गया है। तुम 'शून्य' और मैं 'एक' हूँ। जैसे ही तुम मुझसे जुड़ते हो मेरा मान बढ़ जाता है, मेरा कद ऊँचा हो जाता है।
हाँ, मगर तुम्हारे और मेरे मध्य कुछ भी समानार्थी नहीं सब विपरीत है। तुम मेरे पर्यायवाची नहीं विलोम हो।
तुम...
कुछ जुड़ गया है इस बंधन में, तो कुछ घट गया है। तुम 'शून्य' और मैं 'एक' हूँ। जैसे ही तुम मुझसे जुड़ते हो मेरा मान बढ़ जाता है, मेरा कद ऊँचा हो जाता है।
हाँ, मगर तुम्हारे और मेरे मध्य कुछ भी समानार्थी नहीं सब विपरीत है। तुम मेरे पर्यायवाची नहीं विलोम हो।
तुम...