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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है।।
इस गाथा में आत्मा को सर्वश्रेष्ठ वेशया घोषित का तात्पर्य है कि हमारे यानी किसी भी योनि के कर्म के लिए ना तो उसका नपुंसक शरीर जिम्मेदार है ताकि उसका वो माटी का पुतला जिम्मेदार है अगर कोई जिम्मेदार है, तो उसकी मजबूरी जो अर्थ के लिए हैं इसलिए हमें उस वैशया का सम्मान करना चाहिए क्योंकि कल को हम भी वो वैश्य हो सकते हैं, वह प्रत्येक में भटकर वह बंटकर शून्य हो जाती क्योंकि कालश्रोथ विभकितश्रोत लिगश्रोथ व जातिश्रोत जब सब नष्ट हो जाए तो वह प्रेम से सृजित हुई वेशयाए परमात्मिका के रूपांतरण में परिवर्तित व प्रस्तुत होकर आत्मा के रूपांतरण में समस्त श्रोत कालचकृ में सून्यमय
परिवर्तित कर इस गाथा को सिद्ध मय करके बैकुंठ में गाऊ-"एक गाऊ के रूपांतरण चित्रांक में जाकर सिद्ध स्मारक में जाकर परिवर्तित होकर स्थापित हो चुकी है।।की स्मारक बनकर उसी रूप रूपांत्रित कर चित्रांक कर इस गाथा को एक असंभव वैश्य अन्त व अनन्त तथा संभव व असंभव गाथा घोषित कर देती है।। वह अपनी सभी योनियों की लोकुतियो जैसे -नपुंसकीयिआहुतिका , शून्यनिका हिनका आदि सभी लोक्तियो सून्यनिका से स्वागिंनी नाट्यिका में परिवर्तित होकर कालचकृवी सिद्धका गोखिका सिधिका स्मारगीय कहलाकर संबोधित हुती है।।
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