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वोट और समाज
#वोट
चाय की टपरी में आज काफी गहमा गहमी है। बनवारी लाल हाथ में अख़बार लिए पढ़ रहे और हर एक ख़बर पर चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा हो रही। जैसे चुनाव के दल वैसे ही चाय की दुकान भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई थी।सब अपने अपने दल के पक्ष में तर्क वितर्क करने में मशगूल थे गर्मा गरम चाय की चुस्कियों के साथ माहौल भी गरमता जा रहा था। सब अपना अपना नजरिया और तर्क के आधार पर अपने पक्ष के दल की जीत के दावे कर रहे थे और उनके द्वारा किये कार्यो का बखान कर रहे थे।यह बहस अब चीखने चिल्लाने में तबदीली हो चुकी थी और एक दूसरे को चुनौती देने लगे थे। इसी बीच एक सज्जन जो पेशे से अध्यापक हैं चाय की दुकान पर तशरीफ़ लाते हैं और एक चाय आर्डर करते हैं और उस बहस में शामिल होते हुये कहते हैं भाई चुनाव हैं वोट भी करना है पर हमें आपसी सौहार्द को खराब नहीं करना है सब राजनैतिक दल एक हैं हम क्यों आपस में संबंधो को खराब करे।हमें चाहिये कि व्यक्तिगत हितों को छोड़कर देश और समाज हित को ध्यान में रखकर वोट करना है ताकि पूरे समाज का भला हो और आपसी भाईचारा भी बना रहे । अध्यापक महोदय की इस बात पर सब सहमति जताते हुये हाँ में हाँ मिलाते दिखे और तीखी बहस एक सार्थक रूप लेकर समाप्त हो गई।
© ख़ामोश दर्द (L.Singh)