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मैनिक्वीन
इन गुज़रते भीड़ में, इतने सजे धजे कपड़ों के मेले में.....मुझे एक मैनिक्वीन दिखा, कपड़े तो बेहद खूबसूरत! बस कमी इतनी की चहरे की भंगीमा नहीं थी।
और मैं न जाने कब उसीको देखते देखते उसी में खो गयी....इतने में अचानक वो पास आया। इस बार आँखे दिखे, नाक दिखा और एक हिलता हुआ होंठ और फिर सांस लेता हुआ उसका जिस्म। अपने हाथों से मेरे गालो को उसने छूकर कहा- "हेल्लो मिस, मैं मैन हूँ, तुम क्वीन बनोगी मेरी?"
मुझे कुछ समझ नहीं आया उसने बस हाथ थामा, मुझे खड़ा किया
और एक बार घुमा दिया। घूमकर जब रुकी, तो मानो सारा वक़्त ठहर गया जो जहां था वहीं रुक गया, मानो किसीने वक़्त की सुइयां रोक दी हो। फ़िर मेरे आँखों में आँखे डाल वो बोला "वक़्त ज़्यादा नहीं है, जितना मुझे देखकर तुम चकित हो रही हो, उससे बेहतर होगा हम ये वक़्त सबसे खास बना दे, की हम साथ थोड़ा वक़्त हसले और बाकी वक़्त यादें बना ले। क्या कहती हो जिओगी ये एक लम्हा मेरे साथ?" मै कुछ बोल नहीं सकी, बस इतना की अपना सिर न जाने क्यों हां में हिला दी। उसके बाद तो मानो उसके खुशी का ठिकाना न रहा, उसकी उम्र होगी कुछ २५ से ३० के बीच। उस लम्हें मानो हम दोनो ही थे बचपना भी हमारा, रुका हुआ वक़्त भी हमारा.... दुसरों की तरह हमने कपड़े नहीं बल्कि स्ट्रीट फ़ूड पर ज़्यादा ध्यान था....कुछ एक या डेढ़ घंटे बाद वो बोला, "मेरी क्वीन चले वहीं जहाँ हम मिले थे? मै बोली चलो चलते है.... वहां आई, जहां खोई थी वहीं खड़ी हुई, पर इस बार कुछ अलग हुआ, मैं जाने वाली थी.... पर यह क्या मैं तो ठहर गयी उसीके साथ खड़ी रही और उसने हाथ मेरा छोड़ा नहीं! बोला "क्वीन हो तुम मेरी तुम खोई थी ना मुझमें तो समझो ये कि मैं भी अब तुम में खो गया की तुम्हारा हो गया, अब तुम मेरी हो। किसी का तुम पर अब कोई हक नहीं।" मैं कुछ बोल पाती की उससे पहले ही मेरे होंठ एक सादा परत तले गायब हो गये, मैं जमती चली गयी और वही रह गई.... आज वक़्त चलता है, लोग हमें देखते है लेकिन कोई हम दोनो में खो नहीं जाता, वक़्त अब रुक नहीं जाता। उसी कपड़ों के मेले में हमें कोई अलग नहीं रखता। अब मैं भी मैनिक्वीन हूँ, या यूँ कहूं की मैन की क्वीन हूँ।।

© KALAMKIDIWANI