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बाबूजी का चश्मा
    अभी कुछ दिन पहले की ही बात है. जैसे ही बाबूजी खाट के नीचे पड़ी अपनी पीकदानी उठाने को झुके, कुर्ते की जेब में रखा उनका चश्मा  गिर कर टूट गया . वो कभी टूटे चश्मे  को कभी जेब खर्च में मिले बचे हुए पैसों को देखने लगे.  इतने पैसों में तो चश्मा बन नहीं सकता इसलिए किसे बोले यही सोचने लगे.बाबूजी के आंखों के सामने एक के बाद एक सारे बेटों का चेहरा घूम गया. बाबूजी काफी साल पहले रिटायर हो चुके हैं. अब घर बेटों के कमाई के चंदे से चलती है. चंदा यानी...