उपहार
*कहानी: उपहार*
*आज उसका जन्म दिन था। बच्चे व पत्नी स्वागत में व्यस्त थे। कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे ।टेबल सजाई जा रही थी। रंग बिरंगे गुब्बारे देख कर बच्चे चहक रहे थे।उपहारों के रंग बिरंगे पैकेट्स थे।सभी तैयारियों में लगे थे।बड़ा सा केक टेबल पर सजाया हुआ था।*
*और यह न जाने कहाँ खो गया। उसको स्मृति उसे कई साल पीछे ले आई.. जब मात्र 12-13 साल का था । शहर में एक पेड़ के नीचे बैठा रहता। आने-जाने वालों के सामने हाथ फैलाकर भीख मांगता। शाम तक इतना हो जाता कि उसका व उसकी मां का पेट भर जाता। एक दिन वहां से एक साहब गुजरे। वे शहर में नए आए थे। अपने ऑफिस पैदल ही जाते थे। वह दौड़ कर उनके पास गया। हाथ जोड़कर नमस्ते करके हाथ फैला दिया। उसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी कि साहब है, तो बीस का नोट तो हाथ में आएगा ही।...
*आज उसका जन्म दिन था। बच्चे व पत्नी स्वागत में व्यस्त थे। कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे ।टेबल सजाई जा रही थी। रंग बिरंगे गुब्बारे देख कर बच्चे चहक रहे थे।उपहारों के रंग बिरंगे पैकेट्स थे।सभी तैयारियों में लगे थे।बड़ा सा केक टेबल पर सजाया हुआ था।*
*और यह न जाने कहाँ खो गया। उसको स्मृति उसे कई साल पीछे ले आई.. जब मात्र 12-13 साल का था । शहर में एक पेड़ के नीचे बैठा रहता। आने-जाने वालों के सामने हाथ फैलाकर भीख मांगता। शाम तक इतना हो जाता कि उसका व उसकी मां का पेट भर जाता। एक दिन वहां से एक साहब गुजरे। वे शहर में नए आए थे। अपने ऑफिस पैदल ही जाते थे। वह दौड़ कर उनके पास गया। हाथ जोड़कर नमस्ते करके हाथ फैला दिया। उसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी कि साहब है, तो बीस का नोट तो हाथ में आएगा ही।...