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नई किताब की खुशबू
"नई किताब की खुशबू"
परीक्षाओं के दिन खत्म होते है,परिणाम चाहें प्रथम श्रेणी की हो या द्वितीय श्रेणी की हो जाते तो सब अगली कक्षाओं में ये तो फिलहाल पुरानी कक्षाओं से नई कक्षाएं पहुंचने की
एक अनोखी यात्रा है, आइए इस यात्राओं के नए सिरे से शुरुआत करते है।

ये बात उन दिनों की है जब हम प्राथमिक कक्षाओं में थे और हाथों में स्लेट और तस्वीरों से भरा किताब हुआ करता था,और अब तो नोटबुक में task भी मिलने लग गए थे और अल्फाबेट आदि भी सीखने का दौर शुरू होने लगा अब हम धीरे धीरे शब्दों से वाक्य की ओर वाक्य से पंक्ति और पंक्ति से कहानी कविताओं की ओर बढ़ने लगे थे,इसी बीच हमारी कक्षाएं भी बदलती थी ये हम लोग तब तक नहीं बदल जाती थी जब तक की वो क्लासरूम ही न बदल जाए क्योंकि पहली व दूसरी कक्षाओं में परीक्षाएं नही होती थी,उनके बाद हुई होगी हम लोग pre nursery nursery जैसी कक्षाएं होकर पढ़े थे और जो सरकारी विद्यालयों में पढ़ते थे वो या तो आंगनवाड़ी में कुछ दिन गुजार कर सरकारी विद्यालय तक पहुंचे थे हालांकि मैंने भी आंगनवाड़ी में कुछ बिताए है और फिर अचानक मेरे माता पिता ने पास के private school में मेरा नामांकन कराया गया और तब जाकर मैं यहां पहुंचा हालांकि मुझे याद है जब सरकारी विद्यालय कभी दीदी के साथ जाया करता था लेकिन ठीक से याद नही क्योंकि मैं बस यूंही जाया करता था मेरा नामांकन नही हुआ होगा, लेकिन सरकारी विद्यालय की खिचड़ी आज भी याद है मुझे हां तो मैं अपने प्राथमिक विद्यालय के बारे में बता रहा था जो की एक private विद्यालय था, अब मैं लगभग Lkg में जा चुका था और परीक्षा भी देने लग गया था, तब तक कुछ नई और कुछ पुरानी किताबों से पढ़ रहा था और नई किताबे अच्छी तो लग रही थी पर अभी इसकी खुशबू महसूस नही कर पाया था क्योंकि मैं अभी ये किताब कुछ नई और पुरानी किताबें पढ़ रहा था हमारी अगली कक्षाओं की किताब पुराने विद्यार्थी द्वारा आधे कीमत में बेच दिए जाते थे लेकिन कभी कभी किताब ही बदल दी जाती थी जिससे पुराने किताब किसी काम का नहीं रह जाता था सच पूछे तो उसी समय से नई किताबों की जरूरत पड़ने लगी आप तो जानते ही होंगे की निजी विद्यालयों की किताबें कितनी महंगी होती है फिर भी मैं जिद करता और पिताजी उस किताबों को खरीदकर ले आते थे, वो इस शर्त पर किताबें खरीद लाते थे की मैं उसे पढूंगा हालांकि शुरुआत में जरूर पढ़ता था, आइए विस्तार से जानते है।

अब हम नई कक्षाओं में जा चुके होते है नई किताबों के बारे मे सोचकर अच्छा लग रहा था की कौन सी किताबे पढ़ने को मिलेंगी,कौन सी कहानियां होंगी चित्र कला बनाने को मिलेगा और भी बहुत कुछ,मैने भी जिदकर किताबों को मंगवा लिया है, उन किताबों में जो poem लिखा था वो तो याद नही है लेकिन उनकी खुशबू याद है नई किताबों की तस्वीरें कहानियां और उनकी दिव्य सुगन्ध मन मोह लेती थी और हम दोस्तों को चिढ़ाते की तुम्हारी किताबे तो पुरानी है और ये कहकर उस किताब के खुसबू का आनन्द लिया करता था,और जब तक कहानियां नई और खुशबू बरकरार रहती थी तब तक हम खुद से किताबों को पढ़ा करते थे और फिर धीरे धीरे हम परीक्षाओं के करीब भी आ जाया करते थे इसी बहाने हम self study भी कर लिया करते थे और मुझे पता भी नही चलता था और साथ ही मुझे अलग से पढ़ने की कोई खास जरूरत नहीं पड़ती थी, इसी बीच मेरा नामांकन कक्षा 4 में किसी सरकारी विद्यालय मे कराया गया उससे पहले एक सरकारी विद्यालय पसंद आया लेकिन पिताजी ने वो विद्यालय में नामांकन नही जो मुझे पसंद आया करता था,फिर मैने पास के सरकारी स्कूल में जाने लगा कुछ दिन निजी विद्यालय और कुछ दिन सरकारी विद्यालय घर वालों के तरफ से ये सुझाव था की सरकारी विद्यालय सिर्फ हाजरी के लिए जाना है, अब शुरू हुई वहां की पुस्तक यात्रा वहां किताबें सरकार की ओर से मिलती थी कहानियां भी अच्छी अच्छी मगर उस किताब मे कोई खुशबू नही लेकिन फिर भी कहानियां उसमे भी अच्छी अच्छी थी, वैसे भी अगर खुशबू से किसी चीज को जोड़ा जाए तो वो मस्तिष्क में लंबे समय तक याद रहती है और ये मैं किताबो के खुसबु के साथ जाने अंजाने में करता रहा जो आगे चलकर लाभप्रद साबित हुआ,निजी विद्यालय में मार भी पड़ती थी तो कभी कभी डर से सरकारी विद्यालय जानें लगा हमारी स्कूली जीवन थोड़ा बदल गया था सरकारी विद्यालय के विद्यार्थी का व्यवहार का कुछ मुझे पसंद नही आया इसके लिए पिताजी से बात की और साथ ही निजी विद्यालय की पढ़ाई खत्म हुई है और साथ ही मेरा नामांकन उस सरकारी विद्यालय में कराया गया जिसमे मैं पढ़ना चाहता था फिर वहां भी मुझे पुस्तक मिले लेकिन उनका सुगंध थोड़ा अजीब था कुछ साबुन की तरह मुझे तो उस से मानो एलर्जी ही थी सरकारी पुस्तकों का सफर इंटर तक चला फिर जाकर महाविद्यालय की पुस्तकों में रुचि आई महाविद्यालयों के पुस्तक के बारे में सोचकर लगा के उसमे तस्वीर तो होंगी ही नही सादी होगी बिलकुल चिट्ठी की तरह लेकिन ऐसा भी नही था वहां की मोटी मोटी पुस्तकें तस्वीरों से भरी चमचमाती हुई किताबें बिलकुल वैसी जो निजी स्कूल की किताबे थी क्योंकि यहां राइटर की किताबें चलती थी जयादरतर विदेशी किताबें तस्वीर वाली हुआ करती थी और भारतीय पुस्तकें भी और मैं ऐसे किताबों को पढ़ना पसन्द करता हूं जिसमें तस्वीर रंगीन और सपष्ट है समझ में भी अच्छी आती थी मगर इन किताबों में नई और पुरानी खुशबू लाइब्रेरी की दीवारों जैसी थी मानो ये किताबे कह रही हो की ये किताबे पढ़ने से समझ में आयेंगे सूंघने से नही मगर,फिर भी ये किताबों की सुगंध मुझे उस किताबो में छपे लाइने को स्मृति चिन्ह बनकर मन मस्तिक में अमिट छाप छोड़ती है, पिताजी जो निजी विद्यालयों पुस्तकें लाकर देते थे उनकी खुशबू बहुत भी भीनी हुआ करती थीं ये खुशबू पिताजी के मेहनत और एक उम्मीद की था की हमारे बच्चे इसे पढ़ेंगे, अब से कोई भी पुस्तक आदि लेता हूं तो उस किताब की खुशबू से ये अंदाजा लग जाता है की इस किताब को पढ़ने में कितना आनंद आएगा ये खुशबू सिर्फ किताबों की ही नही बल्कि लेखकों की मेहनत स्मृतियां और और कितने यादों को सहेजने का दर्पण है ये पुरानी दीवारों में पुरानी खुशबू और नई किताब के बीच रहकर अपनी वास्तविक खुशबू सहेजती है ये किताबें कोई प्रेमी अगर यादें भी रखता है तो किताबों से बेहतर फूल को छुपाने का स्थान किताब वो स्मृतियों का संदूक है जिसमे न केवल महाभारत,रामायण,आदि कितने काव्य महाकाव्य और धर्मग्रंध सहेजा गया और एक खुशबू जो स्मृति चिन्ह की भांति हर पुस्तक में रहती हो वो पुस्तक अपनी सुगंध से यह बता देती है की मिट्टी के तेल सहारे छापा गया है या फूलों में इसे संजो कर रखा गया था,आज पुस्तकों भी पुस्तकों को महत्व कम नही हुई है बस इसे महत्व देने वालों की कमी है। आपके कोई पुस्तक हो उसे सुगंध के साथ जोड़कर आनंद लें मैं यह कह सकता हूं वो सुगंध आपको आपके पुस्तकों में छपी पंक्तियों आदि को याद दिलाता रहेगा और पुस्तक तो पढ़ने की वस्तु है इसे बिना पढ़े ,सुने इसे आत्मसात् भी नही किया जा सकता है । धन्यवाद ☺️🙏🏻♥️🎉
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All Right Reserved © Copyright -अन्वित कुमार ✍️ -

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© Anvit Kumar