बस ऐसे ही।
आजकल की भागदौड़ की दुनिया में प्रकृति को निहारने का वक्त नहीं मिलता और वैसे भी बड़ी-बड़ी अट्टलिकाओं के बीच सूरज, चांद, तारे ,कहीं गुम हो जाते हैं। ऐसा शायद ही हो पाता है कि हम इन्हें सही ढंग से, प्रतिदिन देख पाते हो। बड़ी-बड़ी मिनारें आसमान को भी घेर लेती है। इन सबके दर्शन के लिए मैं ,शायद ही कभी छुटती हो, इन नजारों के लिए छत पर जातीं हूं। पक्षियों की घर वापसी ,अस्त होता सूरज, मध्यम से तेज होती चांद की रोशनी, थोड़ी मोड़े तारों की टिम टिमाहट, कुछ एक दो घंटे हल्की धूप से शाम तक, या कहे हल्की रात तक, जहां मैं होती हूं और यह कायनात होती है। प्रकृति की मनोहर छटा कितनी सुखद है, सुंदर है देख पाती हूं।जब...