...

110 views

कैसी हो तुम?
कैसी हो तुम?
तुम्हे पता है सबसे कठिन काम क्या है सबसे छुपकर अंदर ही अंदर खुद को रोते देखना। जो तुम्हारी जिंदगी है उसे बेब्स होकर किसी और का होते देखना। कुछ ऐसी ही बेबसी मेरी भी है और अजीब बात ये है कि तुम्हे ये पता भी नहीं।

बहुत कुछ है मेरे अंदर जो तुमसे छुपा रखा है।
तुम तो सिर्फ इतना जानती हो कि मै तुम्हे पसंद करता हूं पर ये पसंद दीवानगी और पागलपन बन चुकी है।

तुम्हे पता है मै रोज कॉलेज सिर्फ तुम्हारे लिए आता था और जब भी कॉलेज के गेट पर पहुंचता सबसे पहली मेरी नज़रे तुम्हारी गाड़ी को ढूंढती थी और एक बार वो दिख जाए तो फिर शुरू होती थी मेरी तुम्हारी तलाश। मेरी आंखे पूरे कॉलेज को स्कैन किया करती थी लाईब्रेरी , कैंटीन , लैब्स तुम्हारी क्लास और वो पुल जहां तुम अक्सर बैठा करती थी। मै हर उस जगह जाता ताकि एकबार तुम्हे देख लूं , और अगर नहीं दिखती थी तो घंटो उस पुल पर इंतजार करता जहां से पूरा कॉलेज दिखता था ताकि जब तुम आओ तो तुम्हारी मुस्कुराहट से मेरी तृष्णा मिट
सके।

मै दीवानगी मे घंटो पड़े तुम्हारे डीपी देखता , कुछ नज़्में सुनता और फिर तुम्हारी तस्वीर को अपने सीने से लगाकर सोने की कोशिश करता। घंटो एक अपनी अलग दुनिया बना लेता जिसमे वो सारे किरदार होते जो तुमसे जुड़े होते और उन किरदारों क साथ अलग अलग कहानी बुनता जिसमे अक्सर मै तुम्हे अपने दिल की बात बता दिया करता। बारिश होती तो बारिश को बूंदों को छूता ये सोच कर कि इन बूंदों ने तुम्हारे गालो को भी छुआ होगा। हवाएं चलती तो आंखे बंद करके तुम्हारे जुल्फो को अपने चहरे पर महसूस करता। हर रात चांद को घंटो निहारता उससे बात किया करता की चांद तू ही मेरे दिल का हाल बता दे। जहां कहीं मंदिर दिखता मन्नत मांग लेता की तुम्हारे साथ आऊंगा एक दिन।

मै तुम्हारा हीरो बनना चाहता, हर काम तुम्हारे लिए करता कभी कभी तो ये चाहत इतनी बढ़ जाती की मै तुम्हे खोने क खयाल से ही टूटने लगता। हद से अधिक कुछ अच्छा नहीं होता मेरी चाहत हदो को पार करने लगी थी। तुम्हारा आकर्षण इतना हो गया था कि वो तकलीफ देने लगी थी कभी कभी तो लगता था सब खत्म कर दी और फिर तुम्हारा खयाल आता था।

अगर मै अपनी चाहत को तुम्हारे लिए खतम नहीं कर सकता अगर मेरी भावनाएं मेरे बस में नहीं मै कैसे तुमसे उम्मीद करलू की तुम अपनी भावनाओं पर बस चलाओ मेरे लिए प्रेम जगाओ।
बेहतर यही था कि तुमसे दूर हो जाता मैंने कोशिश भी की। प्रकृति की गोद में जा बैठा , कभी लहलहाते शांत खेतो मे गया तो कभी , हवाओं के शोर से भरी पहाड़ों पर, तो कभी समुंदर की गहराइयों में अपने मन को सुनने कि कोशिश कि पर हर जगह तुमहरा खयाल साथ थी। जब भी मेरी सांसे कम होने लगती बस एक दर लगता कि कहीं गुमनामी में ना मर जाऊ ताकि कमसे काम मेरे आखरी लम्हों में तो तुम मेरे करीब हो।

पहले तो मुझे लगता था कि सिर्फ आकर्षण है बस तुम्हे पाना चाहता हूं पर धीरे धीरे एहसास हुआ कि तुम उससे कई जायदा हो तुम मेरा प्रेम हो। प्रेम का एहसास जैसे जैसे होने लगा तुम उतनी अपनी सी लगने लगी, मै उतना खुद को संवारता रहा। मन में छुपे प्रश्नों के जवाब मिलने लगे। मैंने प्रेम तो राधा और मीरा मां से सीखा और अपने प्रेम को उनके प्रेम की तरह पवित्रता के बंधन म बांधने लगा। जैसे जैसे प्रेम के इस स्वरूप को जानने लगे आनंद मे जीन लगा मैं भरी कुंठित चाहत आनंद स्वरूप होने लगी।

मै अब भी चांद से बात करता हूं मै अभी हर सांस म तुम्हे याद करता हूं हर मंदिर में मन्नत मांगता हूं पर अब तुम्हारे लिए। मेरे अंदर का मै अब तुम हो गए हो और जब मै ही नहीं रहा तो दुख कैसा ?

मै तो अच्छा हूं , तुम बताओ कैसी हो तुम ?


© @bhaskar