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#भूलेपाठ
#भूलेपाठ
आज टीईटी का परिणाम घोषित हुआ है, शैलेंद्र भी पास हुए है। घर में खुशी का माहौल है।

वो क्या है पांडेयपुर मोहल्ले में जनरल कास्ट का लडका एक ही बार में वो भी बिना किसी घूंस के पास हुआ है, कोई कम बात थोड़े ना है जी! शैलेंद्र खुश है की अब वो अपने तरीके से बच्चों को इतिहास की सैर करवाएंगे।

हमेशा से उसकी यही इच्छा रही है कि शिक्षा को बोझ की तरह बच्चों पर लादा ना जाये बल्कि उसे  मनोरंजक तरीके से बच्चों को हँसी खेल के साथ सिखाया जाना चाहिए ।

आज अपने उस सपने को पूरा करने की शुरुआत हो गयी है। दिनभर बधाइयों का ताँता लगा रहा था। शाम को कुछ देर फ्री हुआ तो थोड़ी देर को वह बाहर आकर बैठ गया, मौसम आज बहुत अच्छा है और अपनी सफलता से उसके मन का मौसम भी सुहावना हो चला था।

दूर गगन में निहारते निहारते अचानक कुछ स्मृतियाँ एक एक करके उसके सामने आने लगी थीं.....

"बच्चों बीस तक पहाड़े दिए थे... कौन याद करके आया है और कौन नहीं?" मास्टरजी ने अपनी बेंत हिलाते हुए बच्चों को डराया

"मास्टर जी, माँ की तबीयत खराब हो गयी थी। इस कारण मैं पहाड़े याद नहीं कर पाया।" शैलेन्द्र ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा

"ये देखो.... आओ शैल बाबु आओ.. पहाड़े तुमको याद करने थे माँ को नहीं।बहुत बहाने हैं तुम लोगों के.. हम सब जानते हैं इसीलिए ये मजबूत ज्ञानदेई हमेशा अपने पास रखते हैं। चलो शाबाश हाथ आगे करो। "मास्टरजी बगैर सच जाने उसे अपराधी घोषित कर चुके थे

एक.. दो.. तीन.. चार.. पाँच... पूरे पाँच बार ज्ञान देई ने नन्हें शैल के हाथ पर कहर बरसाया था। यह कहर और मास्टरजी का गर्व से प्रफुल्लित चेहरा दूसरे सहपाठियों को भी डरा गया था।

" मास्टरजी मैं सारा दिन बुखार में तपती अपनी माँ के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रख रहा था" शैलेन्द्र बुदबुदाया आँखों में नमी की लहर उतर आयी थी। माँ की आवाज़ ने उसे अतीत की यादों से बाहर निकाल लिया

"शैल..कहाँ खोये हुए हो बेटा.. चाय ठंडी हो रही है" माँ ने प्यार से शैलेन्द्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा

" जी.. कही नहीं माँ.. बस यही सोच रहा हूँ कि अपने काम से नन्हें मासूम छात्रों से मित्रता करके शिक्षक और शिक्षा का भय समाप्त करना है।जिससे वह सभी अपने सुनहरे भविष्य के सपने खुलकर
मुस्कराते हुए बुन सकें।"
NOOR EY ISHAL
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