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"जलती जवानी चलता भिखारी" उपन्यास-भाग-4 (32)
                            (32)
       मन्जू ने रास्ते में रवि से कोई खास बातचीत नहीं की। उसकी माँ ने भी रवि और चम्पा को केवल औपचारिकता वश उनका हाल-चाल ही पूछा। विजयादशमी के दिन शाम को हरिद्वार से सभी सकुशल अपने गाँव पहुँच गए। धनीराम और रधुली ने तुलसी और मन्जू को धन्यवाद कहते हुए उन्हें उनके गाँव के बस स्टाप पर उतार दिया। तुलसी ने धनीराम से पूछा,"अब आगे कुछ पूजा पाठ तो नहीं बताई है पुच्छयरा ने"?
       धनीराम ने कहा,"नहीं-नहीं मन्जू के लिए तो इतना ही बताया था। बाकी इन लोगों को जो कुछ बताया है वह तो यही पूरा करेंगे। अब आप लोग आराम से घर जाओ। भगवान आपकी बेटी का भला करें"। यह कहकर धनीराम परिवार सहित अपने गॉंव की ओर चला आया।
         रास्ते में धनीराम ने रधुली से पूछा,
"आज अच्छा दिन है,क्या सत्यनारायण भगवान की पूजा भी कर दें"?
          रधुली बोली,"हाँ-हाँ, बाजार से पूजा का जरूरी सामान रख लो। तीर्थ से आए हैं तो इस काम को भी लगे हाथ कर ही देते हैं। तुम पण्डित जी को बोल कर आ जाओ। मैं थोड़ी देर में गाँव वालों को कथा सुनने का न्यौता देकर आ जाऊँगी। रवि और बहू तब तक घर का काम सम्भाल लेंगे"।
         शाम को बड़े हर्षोउल्लास से धनीराम के घर भगवान सत्यनारायण की कथा सम्पन्न हुई।
कथा सुनने वालों को भोजन करवाने के बाद धनीराम के परिवार ने भी भोजन किया। आज धनीराम बहुत खुश था। रवि की शादी के बहुत दिनों बाद आज पूजा का यह मौका मिला था। रधुली ने रवि और चम्पा को समझाते हुए कहा,"भगवान की कृपा से सब काम ठीक हो गया है। अब आगे तुम दोनों अपने संकल्प को पूरा करना तभी इस पूजा का फ़ल हमें मिलेगा"।
         चम्पा भी समझदार थी उसने अपनी सास से कहा अब मैं एक वर्ष तक आपके साथ गाँव में ही रहूँगी। अब मैं अगले वर्ष यह संकल्प पूरा होने पर ही मुम्बई जाऊँगी। इसी बहाने बुढ़ापे में आप लोगों की सेवा भी कर पाऊँगी। यद्यपि रवि को यह बात कुछ अटपटी सी लगी,लेकिन रधुली ने चम्पा की बात का समर्थन करते हुए उस पर पक्की मुहर लगा दी।
         रवि की छुट्टी पूरी होने वाली थी। इसलिए उसने चम्पा को समझाते हुए कहा,"अब एक वर्ष बाद ही हमारी मुलाकात होगी। तब तक तुम इजा-बाज्यू के साथ-साथ अपना भी ख्याल रखना"।
         चम्पा ने रवि को कहा,'आप भी इस संकल्प को अच्छी तरह से निभाना। एक वर्ष तक अपनी ओर से भी माँस-मदिरा का सेवन बन्द कर सको तो और भी अच्छी बात होगी"।चम्पा को इस बात का आश्वासन देकर अगले सप्ताह रवि ने माता-पिता का आशीर्वाद लिया और मुम्बई लौट आया।
       तुलसी ने घर पहुँचकर हीरालाल और दीपू को हरिद्वार का प्रसाद देते हुए कहा,"हम लोग हरिद्वार नहा कर तो आ गए देखते हैं अब आगे मन्जू की तकदीर उसे कहाँ ले जाती है"?
        हीरालाल ने कहा,"यह प्रसाद सारे गाँव में बाँट दो। कहते हैं प्रसाद जितने अधिक लोगों तक पहुँचे उतना गुना उसका पुण्य मिलता है"।
         तुलसी बोली,"ठीक है,मैं अभी दीपू को गाँव में प्रसाद बाँटने भेज देती हूँ"। यह कहकर उसने दीपू को प्रसाद बाँटने गाँव में भेज दिया। लोगों ने दीपू से प्रसाद के बारे में तरह-तरह की बातें पूछी। लेकिन उसे सिर्फ़ इतना ही पता था कि आज गङ्गा स्नान का अच्छा दिन है इसलिए उसकी माँ और बड़ी बहिन हरिद्वार गङ्गा जी में नहाकर आए हैं।
        सूरत राम ने किसी तरह रवि की बुवाई का काम तो निपटा दिया था। अब उसे घर के रोजमर्रा के तमाम कार्यो के साथ-साथ खेती-बाड़ी,डंगरों की चारा-पानी व बच्चों की देखभाल में समय का पता ही नहीं चलता था। वह हर दिन भोर में जल्दी उठता और सारा काम निपटाते-निपटाते फिर भी रात के दस-ग्यारह बज ही जाते थे। इतना सब करने के बाद भी बच्चों के चेहरे पर माँ की कमी का असर भी दिखने लगा था। एक माह में ही उनके गोल-मटोल चेहरे मुरझाने से लगे थे। सूरत राम की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह पूर्वा के बगैर तीन-तीन बच्चों की देखभाल जो करे या खेती-बाड़ी का काम जो सम्भाले।
      दशहरा के बाद दिवाली का त्यौहार आने वाला था। कुमकुम के स्कूल से उसे स्कूल भेजने के लिए बार-बार सन्देश आ रहे थे। सूरत राम ने उन्हें बताया कि मेरे घर में दो छोटे बच्चे भी हैं। इसलिए दिवाली के बाद ही वह कुमकुम को स्कूल भेजने के बारे में सोचेगा। सूरत राम की  परेशानी को देखकर स्कूल की हेड मास्टर ने कुमकुम को सप्ताह में एक दिन ही स्कूल भेजने की बात मान ली। दिवाली से दो तीन दिन पहले से गाँव के बच्चे तरह-तरह की फुलझड़ियाँ एवं पटाखे जला रहे थे। कुमकुम के साथ-साथ उसके दोनों भाई भी पिताजी से यह सब चीज़ माँगते तो वह उनको कहता इस बार तुम्हारी इजा घर पर नहीं है इसलिए पटाखे लेने कौन जाएगा? जब तुम्हारी इजा वापस आएगी तो तब मैं तुम्हारे लिए पटाखे लाऊँगा। बच्चे तो बच्चे ठहरे वे रोते हुए सूरत राम से कहते,"बाज्यू तुम हमारी इजा को वापस क्यों नहीं ले आते? या तो हमें पटाखे चाहिए या फिर हमारी इजा को वापस लाओ"। सूरत राम उतनी बार अपना सिर पकड़ कर रह जाता।
        पिछले माह कचहरी में विनोद और मन्जू के तलाक़ के मामले की सुनवाई की तारीख थी। लेकिन भोला सिंह की अकस्मात मृत्यु की खबर सुनकर मन्जू ने भी पेशी पर जाना उचित न समझा। यद्यपि पातीराम पेशी की तारीख़ पर  कचहरी पहुँचा था। लेकिन विनोद और मन्जू दोनों की अनुपस्थिति के कारण जज ने मामले की सुनवाई ही नहीं की। मन्जू जब से गङ्गा नहाकर आयी थी उसके व्यवहार में तुलसी को कई परिवर्तन दिखाई देने लगे थे। अब वह माँ-बाप का खूब ख़्याल रखती। यही नहीं,अब वह दीपू को भी पढ़ाई-लिखाई में ध्यान देने को कहती। यह देखकर हीरालाल ने तुलसी से कहा,"मुझे लगता है कि मन्जू के ग्रह दशा अब कुछ शान्त हो चुकी है। हम लोगों ने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं हो सकता था कि पहले इस बारे में सोचते तो आज मन्जू के साथ यह सब कुछ होता ही नहीं"।
       तुलसी ने कहा,"क़ुदरत के लेख को भला कौन मिटा सकता है। मैं तो अभी भी भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ कि वह इसे सद्बुद्धि दे"।
       मन्जू जब भी बाज़ार जाती सूरत राम के
गाँव का कोई न कोई व्यक्ति उसे जरूर मिल जाता। मन्जू उनसे अपनी बेटी औऱ पूर्वा के बच्चों का हालचाल पूछती। बच्चों की कष्ट भरी बातें सुनकर उसके हृदय में वात्सल्य का प्रेम उमड़ पड़ता। उसे इस बात का डर भी लगता कि कहीं सूरत राम पूर्वा की मौत के लिए मुझे दोषी न समझ रहा हो। इसी कसमकश में दो माह का समय बीत गया। एक दिन मन्जू ने अपनी माँ से पूछा,"माँ,जब से मैंने सूरत राम की पत्नी की मौत की बात सुनी,मैं अपनी बेटी कुमकुम के लिए बहुत चिन्तित हूँ। सूरत राम की पत्नी तो बहुत दयालु थी। उसके रहते हुए मुझे अपनी बेटी की कोई चिन्ता नहीं थी। लेकिन उसकी मृत्यु के बाद अब उस घर में कौन उसकी देखभाल कर रहा होगा। इसलिए मैं सोच रही हूँ कि एक बार मैं अपनी बेटी को देख कर आ जाऊँ"।
      तुलसी भी मन्जू की बात सुनकर बहुत दुःखी थी। उसने मन्जू से कहा,पहले मैं इस विषय में तेरे पिता से बात कर लेती हूँ। यदि वे तुझे वहाँ जाने की इजाज़त देंगे तभी तेरा वहाँ जाना ठीक रहेगा। रात को मौका मिलते ही तुलसी ने हीरालाल से मन्जू की बेटी के बारे में बताया। वह बोली,"मन्जू का इच्छा है कि वह एक बार अपनी बेटी को देख कर आ जाए। माँ की ममता है,सोच रही होगी कि सूरत राम पत्नी की मौत के बाद न जाने उसकी बेटी के साथ कैसा बर्ताव कर रहा होगा। अगर आप की इजाज़त हो तो मैं खुद उसके साथ जाकर उस लड़की को यहीं ले आती हूँ। कम से कम इसी बहाने मन्जू का दिल भी लगा रहेगा"।
       हीरालाल ने तुलसी को समझाते हुए धीरे से कहा,"मन्जू की तरह तेरी भी मति ख़राब हो गयी है क्या? तू जानती ही है कि हमअपने जीते जी इसका रिश्ता कहीं करवाने की फ़िराक में हैं। ऐसे मामलों में पहले ही रिश्ता ढूँढना मुश्किल होता है। लड़की के साथ रहने पर तो यह काम और भी टेढ़ा हो जाएगा। ख़बरदार जो उसे यहाँ लाए तो ! उसके दादा-दादी मर गए हैं क्या? जो उन्होंने अपने जीते जी उसे सूरत राम को गोद दे दिया। अब उस लड़की के भविष्य के बारे में या तो सूरत राम जाने या पातीराम का परिवार"।
        तुलसी बोली,"चलो ठीक है,आपकी यही इच्छा है तो वह उसे अपने साथ यहाँ नहीं लाएगी। लेकिन एक बार उसे अपनी लड़की से मिलने के लिए जाने दो। हम कल सुबह वहाँ जाकर उसके हालचाल पूछकर आ जाएँगे"।
        हीरालाल ने कहा,"अच्छा ठीक है,लेकिन पातीराम के परिवार वाले कुछ कहेंगे तो तुम दोनों उनका क्या कर लोगे। गाँव में उल्टी बेइज्जती अलग होगी"।
       तुलसी बोली,"बड़ी बेइज्जती हो रही है हमारी। उन्होंने कौन सा भला काम किया है जो वे हमारी बेइज्जती करेंगे। तुम इस बात की फ़िकर मत करो,मैं सब सम्भाल लूँगी"।
         हीरालाल ने कहा,"तो ठीक है,कल सुबह चले जाना। लेकिन एक बात का ध्यान रखना! वहाँ ज्यादा देर मत रुकना,वरना वह तुम्हारे साथ घुल-मिल जाएगी। बच्चे जब किसी से घुल मिल जाते हैं तो फ़िर उनका साथ छूटने पर और दुःखी होते हैं"।
          तुलसी ने बोली,"ठीक है,हम दिन में ही वापस लौट आएँगे। हमारा वहाँ ज़्यादा क्या काम है"?
           अगले दिन सुबह नाश्ता करके तुलसी और मन्जू कुमकुम से मिलने सूरत राम के गाँव चले आए। मन्जू ने रास्ते में अपनी माँ को यह बात भी बता दी कि दो-ढाई माह पूर्व जब सूरत राम की पत्नी जीवित थी तो एक दिन मन्जू पहले भी कुमकुम से मुलाकात करने उसके स्कूल आयी थी। दिल्लू के मुख से जब उसने सुना था कि कुमकुम के सिर में चोट लगी है तो उससे रहा न गया और वह उससे मिलने कुमकुम के स्कूल चली आयी। इत्तफाक से उसी दिन रात को दिल्लू ने न जाने सूरत राम की पत्नी से ऐसा क्या कहा कि उसी सदमे के कारण उसका हार्ट फ़ेल हो गया।
       तुलसी बोली,"तूने यह बात हमसे क्यों छिपाई? तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। वह भी उस दिल्लू के कहने पर। वह तो एक मुझे बड़ा अजीब आदमी लगता है"।  
       मन्जू बोली,"सुना है कि सूरत राम की पत्नी की मौत के बाद गाँव वालों ने उसे अच्छा सबक सिखाया। उस दुष्ट ने न जाने ऐसा क्या कहा कि एक भोली-भाली औरत का हार्ट फैल हो गया"।
       तुलसी बोली,"कहीं सूरत राम इस बात के लिए तुझसे भी नाराज़ न हो? पर चल अब तो घर से आ ही गए हैं जो कुछ भी होगा वहीं जाकर देखेंगे"। ऐसी बातचीत करते-करते वे थोड़ी देर बाद सूरत राम के गाँव पहुँच गए।
         अभी सुबह के नौ बज रहे थे। सूरत राम बच्चों को नाश्ता करवाकर कुमकुम को स्कूल भेजने की तैयारी कर रहा था। तभी अचानक मन्जू अपनी माँ के साथ सूरत राम के घर पहुँच गयी। आज मन्जू को अपनी माँ के साथ इस तरह अचानक अपने घर में देख कर सूरत राम को बड़ा आश्चर्य हुआ। कुमकुम ने जैसे ही मन्जू को देखा वह भाग कर उसके पास चली आयी। उसने अपने दोनों भाइयों को आवाज़ देकर कहा,"देखो इजा आ गयी,हमारी इजा हमारे घर आ गयी। आओ-आओ तुम दोनों भी इधर आओ ये हमारी ही इजा है"।
       मन्जू ने बड़े प्यार से कुमकुम के साथ-साथ दोनों बच्चों को गले लगाया। इसके बाद उसने कुमकुम से कहा,"ये तुम्हारी नानी हैं,चलो इनके पैर छुओ"। यह सुनकर तीनों बच्चों ने तुलसी के पैर छुवे। तुलसी नन्हें बच्चों को इस हाल में देखकर अपने आँसू न रोक पायी। उसे रोता देख मन्जू और सूरत राम के आँखें भी नम हो गयी। कुछ देर बाद तुलसी ने सूरत राम से पूछा,"इनकी माँ को अचानक क्या हो गया"?
     सूरत राम ने अफ़सोस के साथ कहा,"क्या कहूँ,बस यह समझों कि उसका और मेरा साथ इतने ही दिनों का था। शाम तक तो अच्छी-खासी थी। फ़िर हमारे गाँव के ही एक दुष्ट ने न जाने ऐसा क्या कह दिया कि उससे जाते-जाते मुलाक़ात भी न हो पायी। वह भागवान तो सुहागन की तरह मुझसे पहले चली गयी। लेकिन इन बच्चों का क्या होगा उसे यह सोचने का भी मौका न मिला। ये छोटे बच्चे न होते तो मैं खुद भी अपने प्राण दे देता। लेकिन इनके मासूम चेहरों को देखता हूँ तो सच कह रहा हूँ न तो मैं अब मर सकता हूँ और न उनके दुःख देखकर जी सकता हूँ"।
         मन्जू ने सूरत राम को हाथ जोड़कर उससे अपनी गलती के लिए क्षमा माँगते हुए कहा,"मैंने जिस दिन से यह बात सुनी,मैं यह सुनकर खुद बहुत दुःखी हूँ। कई बार आपसे मुलाक़ात करने की सोची लेकिन फ़िर मेरी एक भूल के कारण मेरे पैर यहाँ आने से मुझे रोक लेते थे। आख़िर जब मुझसे रहा न गया तो आज मैं आपसे माफ़ी माँगने आपके पास आयी हूँ"।
      यह सुनकर सूरत राम ने कहा,"ऐसा मत कहो,आप क्यों मुझसे माफ़ी माँगोगी। आप का इसमें क्या दोष"?
       मन्जू बोली,"दरअसल मेरी भी मति मारी गयी थी जो उस दिल्लू के कहने पर इस घटना वाले दिन मैं भी कुमकुम से मिलने उसके स्कूल चली आयी थी। उसने हमारे गाँव आकर बताया था कि कुमकुम के सिर पर बहुत चोट लगी है। इसलिए मेरा दिल न माना और मैं अपने माँ-बाप को बताए बिना ही इससे मिलने स्कूल पहुँच गयी। पर मेरा यक़ीन मानिए,इससे मिलने का मेरा कोई दूसरा मकसत न था। चाहो तो कुमकुम से पूछ भी लो। इन बच्चों की माँ को मैं अच्छी तरह जानती थी पर मेरी ममता मुझे इससे मिलाने यहाँ तक ले आयी। बस इसी बात का मलाल मेरे दिल में है कि कहीं मेरे कारण उन्हें कोई सदमा न लगा हो"।
        सूरत राम ने कहा,"उसे सदमा तो शायद इस कारण से लगा कि उस दुष्ट दिल्लू ने इसे कहा कि अगले दिन तुम अपनी बेटी कुमकुम को अपने साथ ले जाने वाली हो। तुम्हें तो मालूम है कि वह इसे अपने बच्चों से भी ज़्यादा प्यार करती थी। जब से उसने यह बात सुनी वह परेशान सी रहने लगी थी। क्या तुम्हारी ऐसी कोई योजना थी"?
       मन्जू ने कहा,"वह कमीना झूठ बोल रहा था। हमारी ऐसी कोई बातचीत नहीं हुयी थी। अगर मुझे इसे अपने साथ ले जाना होता तो मैं आपको इसे गोद देने के लिए ही मन्जूर न होती। मुझे इसी बात का शक था कि आप लोग न जाने मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे। लेकिन मेरा यकीन मानो न मानो,मैंने उसे ऐसा कुछ भी नहीं कहा था"।
          सूरत राम बोला,"मुझे यह मालूम है,उस कमीने ने मेरी जिन्दगी तो बर्बाद की ही साथ में इन बच्चों को भी अनाथ कर दिया। माँ जीवित हो तो वह किसी भी तरह अपने बच्चों को पाल-पोष लेती है। बाप कितनी भी कोशिश क्यों न करे वह माँ जैसा प्यार बच्चों को कभी दे ही नहीं सकता। मैं तो भगवान से यही कहता हूँ कि यदि उसे प्राण ही लेने थे तो मेरे प्राण लेता। कम से कम इन बच्चों को इनकी माँ का प्यार तो मिलता"।
        तुलसी ने सूरत राम को समझाते हुए कहा,"यह किसी के हाथ की बात नहीं है। इस मुसीबत में आप धैर्य से काम लें। अब इनके माँ और बाप दोनों आप ही हैं। मैं खुद भी मन्जू के पिता की ओर से आपसे माफ़ी माँगती हूँ। उस दिन उन्होंने घर पर आपको बहुत बुरा-भला कह दिया। क्या करें,बेटी की वजह से वह पहले से ही बहुत परेशान थे। जब उन्हें मालूम हुआ कि रामधन तो टी बी का मरीज़ है तो वे खुद का गुस्सा रोक न पाए। आप कौन सा हमारी बेटी का बुरा करने के लिए इतनी दौड़-भाग में लगे थे। यह बात तो उस आदमी को ही बतानी चाहिए थी"।
       सूरत राम ने कहा,"कोई बात नहीं,वे उम्र में मेरे से बड़े हैं। टेंशन में आदमी ऐसा कह ही देता है। मैं तो उस दिन खुद यही बात बताने आपके पास आया था कि रामधन की ऐसी-ऐसी स्थिति है। पर शायद आपको पहले ही मालूम हो गया था"।
        तुलसी ने कहा,"हाँ,मुझे उस वकील ने ही यह बात बता दी थी। उसे भी अचानक न जाने क्या हुआ? मुझे तो वह बेचारा भी अच्छा आदमी लग रहा था । पर ऊपरवाला अच्छे इन्सान को धरती पर ज़्यादा दिन कहाँ रहने देता है"।
      सूरत राम ने कहा,"हाँ,आप सही कह रही हैं। पहले तो मुझे इस बात पर यक़ीन नहीं होता था लेकिन अब तो ऊपर वाले ने मुझे यकीन करने को मजबूर कर दिया। मेरी पूर्वा ने तो कभी किसी दुश्मन के लिए भी बुरा न सोचा था। शायद उसके इसी भलेपन के कारण भगवान ने उसे धरती पर रखना ठीक नहीं समझा"। यह कहते-कहते सूरत राम की आँखें एक बार फ़िर नम हो गयी।
       कुमकुम अपने दोनों छोटे भाइयों से अपनी माँ की जान-पहचान करने में इतनी व्यस्त थी कि इस कारण वह स्कूल जाना भी भूल गयी। राम चरण और देवदत्त मन्जू को देखकर कहते,"इजा,पहले तो आप बूढ़ी सी लगती थी,लेकिन अब आप अच्छी लग रही हो। क्या भगवान जी के पास जाकर सभी जवान हो जाते हैं? कुमकुम उन्हें समझाते हुए कहती,"अरे बुद्धू कहीं के,"अपनी इजा से ऐसे नहीं कहते। देखो,इजा को परेशान करोगे तो वह अभी वापस चली जाएगी। यह सुनकर दोनों चुप हो जाते लेकिन अगले पल ही वह मन्जू से फ़िर कोई ऐसा ही सवाल पूछ बैठते।
          मन्जू को देखकर बहुत दिनों के बाद बच्चों के चेहरे ख़ुशी लौटी थी। इसलिए सूरत राम ने कुमकुम को आज छुट्टी करने को कह दिया। थोड़ी ही देर में पूर्वा के दोनों जुड़ुवा बच्चे भी कुमकुम के साथ-साथ मन्जू को ही इजा-इजा कहने लगे। बालपन की मासूमियत के साथ वे मन्जू से पूछते,"इजा,आप हमें अकेला छोड़कर भगवान जी के पास क्यों गयी थी? अब आप हमें छोड़कर दुबारा भगवान जी के पास तो नहीं  जाओगी। इस बार अगर आप वहाँ गयी तो हम भी आपके साथ चलेंगे। ठीक है इजा"।
        बच्चों के मुख से ऐसी बातें सुनकर मन्जू और तुलसी का हृदय बहुत व्यथित हुआ। सूरत राम उनको जैसे ही समझाने की कोशिश करता  दोनों बच्चे मन्जू से उसकी शिक़ायत लगाना शुरू कर देते कि आपके भगवान जी के पास जाने के बाद बाज्यू ने उन्हें कितना मारा-पीटा है। सूरत राम का दुःख-दर्द एवं बच्चों की मासूमियत भरी बातों में समय कब बीता किसी को यह पता ही न चला। आख़िर सूरत राम को समझा-बुझाकर जैसे ही तुलसी और मन्जू ने अपने घर की ओर लौटना चाहा तीनों बच्चे बड़े उदास हो गए। रोते-रोते उन्होंने मन्जू का आँचल थाम लिया और खुद भी उसके साथ चलने की ज़िद करने लगे।
         समय भी ज्यादा हो रहा था। तुलसी को हीरालाल की कही बात याद आ गयी। इसलिए उसने बच्चों के वात्सल्य मोह को त्यागकर मन्जू को जल्दी से घर वापस लौटने को कहा। मन्जू ने बच्चों को समझाते हुए कहा,"देखो मैं अभी भगवान जी को बताए बगैर ही तुमसे मिलने यहाँ आयी हूँ। यदि उनको पता चल जाएगा तो वे नाराज़ हो जाएंगे और फिर मुझे कभी भी तुमसे मिलने नहीं भेजेंगे। अगली बार मैं उनको बता कर आऊँगी"।
        सूरत राम बच्चों को अन्दर कमरे में ले गया। इसके बाद उसने उनको किसी तरह खेल में लगाकर मन्जू और तुलसी को हाथ जोड़कर दुःखी मन से अपने घर से विदा किया। इस तरह तुलसी और मन्जू सूरत राम को बच्चों और स्वयं का ध्यान रखने की बात कहकर अपने गाँव लौट आए।

भूपेन्द्र डोंगरियाल
17/09/2020
  
     इस उपन्यास के चार भाग हैं प्रत्येक भाग में कई कड़ियाँ हैं । उपन्यास पढ़ने वाले पाठक इस उपन्यास के लिए मुझे Pratilipi.com app पर फॉलो कर सकते हैं।🙏🙏
       
    
     

      
       
        
       


© भूपेन्द्र डोंगरियाल