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नवरात्रि का प्रथम दिन - मां शैलपुत्री
मां दुर्गा को सर्वप्रथम मां शैलपुत्री के
रूप में पूजा जाता है
हिमालय के वहां पुत्री के रूप
में जन्म लेने के कारण
इनका नामकरण हुआ शैलपुत्री।
इनका वाहन वृषभ है,
इसीलिए यह देवी वृषभ रूढ़ा के
नाम से भी जानी जाती हैं
इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल
धारण कर रखा है और बांये हाथ
में कमल सुशोभित है
यही देवी प्रथम दुर्गा हैं
ये ही सती के नाम से जानी जाती हैं
इनकी एक कहानी है जो इस प्रकार है -

एक बार जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ
किया , तो इसमें सारे देवताओं
को निमंत्रित किया, परन्तु भगवान
शिव कोई नहीं ।
सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल
हो उठीं
शंकर जी ने कहा - सारे देवताओं
को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं।
ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है
सती का प्रबल आग्रह देखकर
शंकर जी ने उन्हें यज्ञ में जाने की
अनुमति दे दी।
सती जब घर पहुंची तो मां ने ही
सिर्फ उन्हें स्नेह दिया ।
बहनों की बातों में व्यंग और उपहास
के भाव थे।
प्रजापति दक्ष ने भी भगवान शंकर को
अपमान जनक शब्द कहे ।
वे अपने पति का यह अपमान
सह न सकीं।
और योगाग्नि द्वारा अपने आप को
भस्म कर लिया।
इस दारुण दुःख से व्यथित होकर
उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया।
यही सती अगले जनम में शैलराज
हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और
शैल पुत्री कहलाईं।
पार्वती और हेमवती भी
इसी देवी के अन्य नाम हैं।
शैलपुत्री का विवाह भी शंकर से हुआ।
शैलपुत्री शिव जी की अर्धांगिनी बनी
उनकी महिमा अनंत और अपार है।

🙏प्रेम से बोलो जय माता दी🙏



© Shaayar Satya