...

11 views

आओ तुम्हे देवदास की नहीं एक असली दिल के मरीज़ की कहानी सुनाऊं।
वो शाम बड़ी बेजान थी.. आखिर बादलों ने उसे ढक रखा था।🌥️
मैं बस इंतजार मे थी, उनमें से एक आया और मेरे हाथों मे तारें जोड़ दी।
फिर वो वक्त आया "पेशेंट नेम: नेहा कुमारी, उम्र:१९"
जी...
चलिए... आज आपसे शुरुवात होगी।
मैने अपनी मां कि आखों को देखा,
ओहो.. लगता है तुम फिर पिछली रात रोई थी, क्या मां तुम भी ना।
वो लोग मेरा हाथ थाम कर उस कमरे तक लेकर गए।
अंदर जाने से पहले मैंने मुड़ कर मां को दूर से हाथ दिखाकर अलविदा बोला था।
वो कमरा बहुत ठंडा था, बड़ी बड़ी स्क्रीन लगी हुई थी, अलग अलग तरह के सर्जिकल ओजार सजाए हुऐ थे, वो ऑपरेशन थिएटर था।
उनमें से एक ने पूछा, दर तो नहीं लग रहा ,( मैंने देहलते हुए दिल के साथ बोला "नहीं" )
आखिर वो मेरे दिल का दूसरा ऑपरेशन था।
मुझे लेटाते ही एनेस्थीसिया देदिया गया, बेहोसी की आने की कोई चिट्ठी भी नही मिली।
लेकिन हा सायद ही जीवन में कभी इतनी गहरी नींद मिली थीं।
उस नींद मे ना जाने मैने क्या देखा था, शायद स्वर्ग का द्वार देखा था।
अधबेहोशी कि हाल मे मैंने पहला शब्द मां बोला था।
आंखें नहीं खुल रही थी, लेकिन कुछ था जो मेरे कानों मे गूंज रहा था
बीप.. बीप.. बीप..
अच्छा वो मेरे बगल मे रखी मशीन से आराही थी, जो मेरे दिल की धड़कने नाप रही थी।
होश खुली तो समझ आया, पूरा शरीर तारों से जकड़ा हुआ था,कुछ सीने से ,कुछ हाथ और कुछ पैर से जुड़े हुए थे।
उन तारों से लिपटे हाथों के साथ, मैंने अपना हाथ दिल पे रखा था।
कि शायद अब मैं ठीक होजाऊंगी लेकिन वो शायद... शायद सच नही था।
हां ..वो पल गजब का था.. शुकून भी थी और दर्द भी था।
लेकिन कठोर तपस्या तो अब शुरू होनी थी।
मुझे 24 घंटे बेड पे जिंदा लाश की तरह पड़े रहना था, ना करवट ले सकती थी और ना घुटने मोड़ना था।
मुझे नहीं पता था कि तड़पना अभी बाकी है।
रात बीतने के साथ दर्द का असली मतलब समझ आया,
रात जितनी गहराती गई ,मेरा दर्द गहराता गया।
तीन बजे रात के मैं रोने लगी.. कोई मुझे जरा सा उठा दो... जरा सा घस्का दो... शरीर सुन पड़ते जा रहा है।
एक जिंदा लाश रो रहा था .. कि उसकी आत्मा उस शरीर मे कैद हो, बिलकुल वैसे जैसे अहिल्या के प्राण उन पथरों में कैद थे।
उस रात अहिल्या की तड़प समझ आई ,उसका दुख समझ आया।
उस वक्त सिर्फ एक चीज़ के सहारे मैं दर्द बर्दास्त कर रही थी।
"तू हौसला रख मेरी जान, कल एक पल आएगा जब तुझे इस बेड से उठाया जाएगा, उसके साथ तेरा दर्द खत्म हो जाएगा... सिर्फ यादें रह जाएंगी।
आह!... जिंदगी भी बिलकुल ऐसी ही है।
हम गिरते है... हमे चोट लगती है, हम सब शारीरिक अथवा मानसिक रूप से टूट जाते है बिखर जाते है, रोते है ,बिलखते है, चिल्लाते है , चीखते है, लेकिन एक पल आता है जिसके बाद ये दर्द सिर्फ यादें बन जती है।
वो याद कि हमे "इतना दर्द हुआ था"।
लेकिन उस याद के दौरान हमारा शरीर या मन उस दर्द को महसूस नहीं करता।
अगले 10 साल बाद भी मुझे याद रहेगा मुझे इतना जादा दर्द हुआ था, लेकिन मेरा शरीर उस दर्द को महसूस करेगा क्या?
नहीं!
उस हौसले के बाद वो पल आया मुझे उठाया गया ... उस लाश में जान आई और मैंने अपना कदम धरती मां कि गोद मे रखा।... मैं चली.... जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी।


सच्ची कहानी

© Neha's diary