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एक मुलाकात (पार्ट 3)
अगली सुबह हुई, तो विपिन बच्चों को पढ़ाने लगा। रह रह कर उसको सुरुचि का चेहरा याद आ रहा था। कई सारे प्रश्न उसके मन में उठ रहे थे। खेर, रात हुई तो विपिन फिर लाइब्रेरी में चला गया। 2 घंटे तक वो वहीं किताब पढ़ता था। थोड़ी देर बाद सुरुचि भी उसके पास आकर बैठ गयी।

वहांँ छाई चुप्पी को तोड़ते हुए विपिन बोल पड़ा, "तो मिस सुरुचि जी, आप रोज रात को यहाँ किताब पढ़ने आती हो?"सुरुचि ने पहले उसे घूर के देखा फिर एक ह्मम् करके वापस अपनी किताब पढ़ने लगी।

"मुझे इस स्कूल में 2 महीने होने वाले हैं, पर मैंने आपको कल पहली बार देखा। और ये कमरा तो बन्द रहता है चाबी मेरे पास रहती है तो आप अंदर कैसे आती जाती हैं?" विपिन ने फ़िर से प्रश्न किया।

"ये स्कूल मेरे बाबा का है, यहांँ के हर कमरे की दो चाबियां हैं।" सुरुचि ने अपनी पुस्तक को डेस्क पर पटकते हुए उत्तर दिया और वहां से दूसरी ओर जाने लगी फिर कुछ सोचकर जरा रुकी और बोली " किसी से कहना नहीं कि तुमने मुझे यहांँ देखा, और अगर कहा तो अच्छा नहीं होगा।" फ़िर गुस्से मेे लाइब्रेरी के बाहर चली आती।विपिन ने भी लाइब्रेरी बन्द करी और अपने कमरे मेे चला गया।

विपिन अब रोज राज को लाइब्रेरी जाने लगा, कुछ दिनों तक सुरुचि ने उससे बात ही नहीं की, फ़िर धीरे धीरे सब सामान्य होने लगा। दोनों में पहले पढ़ाई के सिलसिले में ही बातें होती थी फ़िर धीरे धीरे यहांँ वहाँ की बातें भी होने लगी।

विपिन अभी भी इस बार से परेशान सा था कि वो कमरे मेें आती जाती कैसे है, और वो रहती कहाँ है। जब भी वो इन बातो का जिक्र करता सुरुचि गुस्से में वहाँ से बिना कुछ कहे ही चली जाती, सो आखि़र में फ़िर विपिन ने ये सवाल करना ही बन्द कर दिया।

जैसे जैसे दिन बीतते जाते विपिन सुरुचि की ओर आकर्षित होता जाता। सुरुचि अक्सर थोड़ी दूरी बनाए रखती थी दोनों के दरमियान ये कहकर कि वो प्रिंसिपल की बेटी है।

करीब दो महीने बाद विपिन ने अपने मन की बात साफ़ साफ़ सुरुचि से कह दी। सुरुचि ने उसका प्रेम प्रस्ताव ये कहकर ठुकरा दिया कि तुम मुझे नहीं जानते, मैं तुम्हारे लिए सही नहीं हूंँ। उस रात के बाद वो लाइब्रेरी मेे कुछ दिनों तक आयी ही नहीं।
© pooja gaur