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तरु की छांव याद आता है गांव
तरू की छांव याद आता है गांव"
रेणुका आज अपने गांव को बहुत याद कर रही थी।
पता नहीं क्या हो गया था उसे कि वो बार बार एक ही बात दुहराएं जा रही थी। मुझे गांव जाना है ।मुझे गांव जाना है। बिल्कुल बच्चों की तरह ज़िद कर रही थी। पहले जब रेणुका के बच्चे छोटे छोटे थे। तब तो साल में दो बार गांव की सैर कर आती थी।पर अब बच्चे बड़े हो गए हैं पढ़ने लिखने लगे हैं ।तो छुट्टियां कम ही मिलती है।
तो उसका गांव जाना भी कम हो गया है। अभी तो लगभग तीन साल के ऊपर हो गये हैं।पर ये गांव जा नहीं पाई है। कोशिश तो इसने बहुत की पर संभव ना हुआ।
यहां अपने घर में इतनी डिसीप्लिन रखने वाली वहां अपने गांव जाते ही सब भूल जाती हैं और खूब मस्ती करती है।कहती हैं अभी तो मेरी दादी भी जिंदा है तो...