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घिसी चप्पल
पूरी तरह घिसी हुई चप्पल जिसके भीतर के परतों का रंग भी अंगुलियों की लगातार घर्षना से बाहर आने को शेष न बची हो । इस पूरी तरह घिसी चप्पल ने अपनी परत दर परत को उधेरकर मानो अपना वक्ष फाड़कर सबकुछ दिखा देने का निश्चय कर रखा था । कुछ शेष न बचा था अब छिपाने को । वक़्त के थपेड़ों ने उस चप्पल को जर्जर से जर्जरतम अवस्था में लाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी थी । कई तरफ़ से फैल चुकी...