अनंत - एक कहानी समय से परे
#TheWritingProject #sci-fi #historical
विजयद्वीप साम्राज्य के मध्य में स्थित आलीशान महल के कक्ष में एक योद्धा परेशान बैठा था। कक्ष में अग्नि स्तंभों में जलती आग और आकाश से ओझल होते सूर्य देवता वातावर्ण में छाई उदासीनता को प्रगट कर रहे थे।
"क्या हुआ, बद्री? वो कौनसी बात है जो तुम्हें इतना व्याकुल कर रही है?" वज्रसेन ने कक्ष में प्रवेश लेते ही भारी आवाज़ में प्रश्न किया। जो विजयद्वीप साम्राज्य के श्रेष्ठतम सेनापति थे।
"मामा... तुम तो... जानते ही हो कि विजयद्वीप के एक हिस्से में घातक रोग फैला है । धीरे-धीरे लोग तड़प-तड़पकर मर रहे हैं । और पीछले सात दिनों में हम कुछ नहीं कर पाए हैं ।" बद्रीनाथ अपने राज्य में अचानक फैले अंजान रोग को लेकर गहरी चिंता में डूबा था ।
"मैं तुम्हारी चिंता का कारण जानता हूं, बद्री। किंतु तुम चिंता मत करो। हमारे राजवैद्य इसका उपचार अवश्य खोज निकालेंगे।" वज्रसेन ने बद्री के कंधे पर हाथ रखते ही कहा।
"ठीक कहा, मामा । परंतु हमारे राजवैद्य के अनुसार, ये असामान्य रोग प्राकृतिक नहीं है। ये जानलेवा रोग किसी कारणवश उत्पन्न हुआ है। और मां ने इस मसले की ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी है। अब हमें ही इस मसले की छानबीन करनी होगी। हमें कल सुबह निकलना होगा।" बद्री ने अपनी चिंता से जुड़ी पुरी बात बताई।
अगली सुबह सूर्योदय से पहले ही बद्री और सेनापति वज्रसेन महल से निकल पड़े। अपनी यात्रा के दौरान कई गांवों से गुज़रते समय उन दोनों ने बहुत सारे लोगों को उस अनभिज्ञ रोग से तड़पते देखा। अपनी आंखों के सामने उन्हें तड़प-तड़पकर मरते हुए देखा। किंतु इसके पश्चात भी अपना दिल मज़बूत करते हुए वो दोनों विज्ञान शाला की ओर बढ़ गए।
उनकी यात्रा काफ़ी कठिन और लंबी थी। किंतु सभी मुश्किलों को मात देकर अंततः वो दोनों अपनी मंज़िल तक जा पहुंचे। रात-दिन बीना रुके, बीना सोए लगातार आगे बढ़ते हुए राजकुमार बद्रीनाथ और सेनापति वज्रसेन विज्ञान शाला तक पहुंच गए, जहां कई राजवैद्य और राजवैज्ञानिक एक साथ मिलकर इस असाधारण रोग का कारण पता करने के कार्य में जुटे थे।
इतनी लंबी और थकान भरी यात्रा के पश्चात भी उन दोनों ने एक क्षण भी विश्राम नहीं किया । तथा विज्ञान शाला पहुंचते ही बद्री और वज्रसेन अपनी चर्चा में व्यस्त हो गए। वो सीघ्र अति सीघ्र इस समस्या का समाधान चाहते थे।
सभी राजवैद्य और राजवैज्ञानिको से इस विषय पर मंत्रणा कर बद्री और वज्रसेन ने पता लगाया कि, 'गांव में फैले इस अज्ञात रोग का कारण विजयद्वीप के जंगल में गुप्त रूप से बना ख़तरनाक रासायनिक पदार्थों का कारखाना है। जहां कई ख़तरनाक रसायनों पर परीक्षण कर विध्वंसकारी हथियार बनाए जाते हैं।'
जब बद्रीनाथ को इस रोग के कारण का पता चला तो ये जानकर अति क्रोधित हो गया और तुंरत वहां से निकल पड़ा। लेकिन राजवैज्ञानिक ने बद्री को जाने से रोका और पहले इस अप्राकृतिक रोग से ग्रस्त लोगों के उपचार हेतु समझाया।
"मामा, शीघ्र गुप्तचर भेजकर कारखाने का पता करवाए ।" वज्रसेन से कहते ही, "हां, राजवैज्ञानिक जी, अब बताईए ।" बद्री राजवैज्ञानिक की ओर मुड़ा ।
"ये एक अति गंभीर रोग है, राजकुमार -- जो हवा और पानी में घुले रसायन के कारण हुआ है। और अब ये रोग एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल रहा है । हमारा अनुमान है कि इसका उपचार केवल समुद्र में पनपने वाले एक खास शैवाल से ही संभव है ।" राजवैज्ञानिक ने कहा ।
"ठीक है, वैज्ञानिक जी । आप जो सही समझे ...
विजयद्वीप साम्राज्य के मध्य में स्थित आलीशान महल के कक्ष में एक योद्धा परेशान बैठा था। कक्ष में अग्नि स्तंभों में जलती आग और आकाश से ओझल होते सूर्य देवता वातावर्ण में छाई उदासीनता को प्रगट कर रहे थे।
"क्या हुआ, बद्री? वो कौनसी बात है जो तुम्हें इतना व्याकुल कर रही है?" वज्रसेन ने कक्ष में प्रवेश लेते ही भारी आवाज़ में प्रश्न किया। जो विजयद्वीप साम्राज्य के श्रेष्ठतम सेनापति थे।
"मामा... तुम तो... जानते ही हो कि विजयद्वीप के एक हिस्से में घातक रोग फैला है । धीरे-धीरे लोग तड़प-तड़पकर मर रहे हैं । और पीछले सात दिनों में हम कुछ नहीं कर पाए हैं ।" बद्रीनाथ अपने राज्य में अचानक फैले अंजान रोग को लेकर गहरी चिंता में डूबा था ।
"मैं तुम्हारी चिंता का कारण जानता हूं, बद्री। किंतु तुम चिंता मत करो। हमारे राजवैद्य इसका उपचार अवश्य खोज निकालेंगे।" वज्रसेन ने बद्री के कंधे पर हाथ रखते ही कहा।
"ठीक कहा, मामा । परंतु हमारे राजवैद्य के अनुसार, ये असामान्य रोग प्राकृतिक नहीं है। ये जानलेवा रोग किसी कारणवश उत्पन्न हुआ है। और मां ने इस मसले की ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी है। अब हमें ही इस मसले की छानबीन करनी होगी। हमें कल सुबह निकलना होगा।" बद्री ने अपनी चिंता से जुड़ी पुरी बात बताई।
अगली सुबह सूर्योदय से पहले ही बद्री और सेनापति वज्रसेन महल से निकल पड़े। अपनी यात्रा के दौरान कई गांवों से गुज़रते समय उन दोनों ने बहुत सारे लोगों को उस अनभिज्ञ रोग से तड़पते देखा। अपनी आंखों के सामने उन्हें तड़प-तड़पकर मरते हुए देखा। किंतु इसके पश्चात भी अपना दिल मज़बूत करते हुए वो दोनों विज्ञान शाला की ओर बढ़ गए।
उनकी यात्रा काफ़ी कठिन और लंबी थी। किंतु सभी मुश्किलों को मात देकर अंततः वो दोनों अपनी मंज़िल तक जा पहुंचे। रात-दिन बीना रुके, बीना सोए लगातार आगे बढ़ते हुए राजकुमार बद्रीनाथ और सेनापति वज्रसेन विज्ञान शाला तक पहुंच गए, जहां कई राजवैद्य और राजवैज्ञानिक एक साथ मिलकर इस असाधारण रोग का कारण पता करने के कार्य में जुटे थे।
इतनी लंबी और थकान भरी यात्रा के पश्चात भी उन दोनों ने एक क्षण भी विश्राम नहीं किया । तथा विज्ञान शाला पहुंचते ही बद्री और वज्रसेन अपनी चर्चा में व्यस्त हो गए। वो सीघ्र अति सीघ्र इस समस्या का समाधान चाहते थे।
सभी राजवैद्य और राजवैज्ञानिको से इस विषय पर मंत्रणा कर बद्री और वज्रसेन ने पता लगाया कि, 'गांव में फैले इस अज्ञात रोग का कारण विजयद्वीप के जंगल में गुप्त रूप से बना ख़तरनाक रासायनिक पदार्थों का कारखाना है। जहां कई ख़तरनाक रसायनों पर परीक्षण कर विध्वंसकारी हथियार बनाए जाते हैं।'
जब बद्रीनाथ को इस रोग के कारण का पता चला तो ये जानकर अति क्रोधित हो गया और तुंरत वहां से निकल पड़ा। लेकिन राजवैज्ञानिक ने बद्री को जाने से रोका और पहले इस अप्राकृतिक रोग से ग्रस्त लोगों के उपचार हेतु समझाया।
"मामा, शीघ्र गुप्तचर भेजकर कारखाने का पता करवाए ।" वज्रसेन से कहते ही, "हां, राजवैज्ञानिक जी, अब बताईए ।" बद्री राजवैज्ञानिक की ओर मुड़ा ।
"ये एक अति गंभीर रोग है, राजकुमार -- जो हवा और पानी में घुले रसायन के कारण हुआ है। और अब ये रोग एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल रहा है । हमारा अनुमान है कि इसका उपचार केवल समुद्र में पनपने वाले एक खास शैवाल से ही संभव है ।" राजवैज्ञानिक ने कहा ।
"ठीक है, वैज्ञानिक जी । आप जो सही समझे ...