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चिट्ठियां
अटपटा लगा कुछ? नहीं ना,जाना पहचाना शब्द ही तो है, संदेशे आते हैं, चिट्ठी आयी है आदि गीतों में गीतकार ने इन चिट्ठियों का महत्व कितनी सुंदरता से बताया हैं।
महत्व तो आम लोगों की ज़िंदगी में भी बहुत था इन चिठ्ठियों का। कहीं किसी के इंतजार के नाम संदेश, कहीं इजहार के नाम तो कहीं इकरार के नाम। कुछ गम भरी तो कुछ हंसती मुस्कुराती कुछ ना जाने कितने राज़ कह जाती।
लिखने वाला ऐसे लिखता था कि पड़ने वाले को लगे कि लिखने वाला उसके करीब ही बैठा है।कोई अपना दर्द बांट रहा हैं कोई खुशियां।कोई समेटे हुए हैं किसी के लिए अपनी ज़िन्दगी की हसीन यादें।
अब तो ज़माना बहुत बदल गया है साहब फोन से ही सात समुंदर पार किसी को भी कैसा भी संदेश भेज दो वीडियो भेज दो अपनी फोटो भेज दो यहां तक की दूर दराज रहने वाली से आमने सामने बात कर लो। सहूलियत तो है बहुत पर आजकल ये सहूलियत ही लोगों की जान की दुश्मन बनी है। अरे यार फिर आ गया इसका मेसेज अब ये दिमाग खाएगा होता है ना कभी कभी।
तो सुविधाएं तो मिल गई बस जो चिट्ठियों को पढ़कर सुकून मिलता था ना शायद वो रोज़ किसी के मेसेज पढ़कर नहीं मिलता।
लोगो की लोगो के प्रति एहमियत बदल गई है शायद!
किसी के दूर जाने पर उनकी चिट्ठियों का इंतजार रहता था और उन्हें हमारी चिठ्ठियों का।
अब तो किसी के मेसेज में उसका नाम देखकर ही हम देखना भी पसंद नहीं करते बस सब अपने आप में ही मस्त है अपने लिए तो क्या दूसरो को देने के लिए भी कम पढ़ रहा वक़्त है।