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"मीठे आँसू"❤️🥀
सुबह उठने पर सर भारी था।देर रात तक जगना तो मेरी आदत है पर कल बेवक़्त आये आंसुओं ने नींद को भगा दिया था।इन आँसुओं की भी न अपनी ही वजह होती है।हमलोग समझौते कर लेते हैं परिस्थितियों से,मान लेते हैं कि अब सब ठीक है ।सोच लेते हैं कि अब किसी से भी कोई उम्मीद नहीं करेंगे पर अंतर्मन शायद नहीं छोड़ता उम्मीदें करना। तभी तो वक़्त बेवक़्त आँखों से उतर पड़ते हैं दर्द की रेखाओं के सहारे।लुढ़कते हुए चुपचाप।ये नमकीन मोती भी तन्हाई ढूंढते हैं।खुलकर बहने के लिए।इन्हें भी डऱ होता है कहीं भीड़ में बाहर निकल पड़े तो सैकड़ों सवालों के जवाब कौन देगा।
काफ़ी का मग लेकर बालकनी में खड़ी हो गयी।सामने की छत पर शर्मा अंकल आंटी के सफेद बालों में कलर कर रहे थे।आंटी लगातार उन्हें डाँट रही थी ,ऐसे करो वैसे...