बाल- विद्यापीठ
बाल - विद्यापीठ
सफेद इस्तरी की हुई धोती, हल्के हरे रंग का खादी का कुर्ता और ऊपर से काले रंग का हाफ नेहरू जैकेट और लंबी और तीखी नाक पर मोटे फ्रेम वाला चश्मा पहने गौर वर्ण का दुबले-पतले आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी जिनकी आवाज में इतनी टनक होती कि पूरे स्कूल को सुनाई पड़ जाती । उस शानदार व्यक्तित्व का नाम था - सच्चिदानंद दास, बाल विद्यापीठ का प्रधानाध्यापक । विद्यालय ही उनका घर था । पांचवी कक्षा का लकड़ी से घिरा कमरा और एक कुर्सी - टेबल और कुछ किताबों - स्टेशनरी के बोझ से दम तोड़ती लाचार अलमारी, बस यही थी उसकी जीवन भर की कमाई और जमापूंजी । चने के सत्तू का एक डब्बा और हॉर्लिक्स की बोतल यही था उनका किचन का सामान । स्कूल का चापाकल और शौच - घर ही उनके लिए पर्याप्त था । एक रस्सी पर सूखती सफेद रंग की धोती की दिव्य सफेदी मानस पटल पर आज भी तरोताजा है । प्रधानाध्यापक के साथ साथ वे पांचवी कक्षा के प्राचार्य भी थे । पतले बांस की करची से न जाने कितने लोगों का भविष्य रच डाला था उस असाधारण व्यक्ति ने ।
उस जमाने में भी उस विद्यालय में लड़के लड़कियों में विभेद नहीं था । सब साथ - साथ पढ़ते थे । कक्षा 1- बी के टीचर थे श्रीवास्तव सर, 1- ए के महेंद्र सर 1 के राजेंद्र सर , दो के राय सर , 3 के शर्मा सर , 4 के कमलू सर और पांच के स्वयं सच्चिदानंद सर ।
श्रीवास्तव सर सूखे पेट की भी चमड़ी पकड़कर सजा देने में माहिर थे, तो राजेंद्र सर के पहाड़े की क्लास में शायद ही कोई उनकी बेंत की मार से बचा हो । राय सर का नाम ही खौफ के लिए काफी था और वो सेकेंड सर के...
सफेद इस्तरी की हुई धोती, हल्के हरे रंग का खादी का कुर्ता और ऊपर से काले रंग का हाफ नेहरू जैकेट और लंबी और तीखी नाक पर मोटे फ्रेम वाला चश्मा पहने गौर वर्ण का दुबले-पतले आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी जिनकी आवाज में इतनी टनक होती कि पूरे स्कूल को सुनाई पड़ जाती । उस शानदार व्यक्तित्व का नाम था - सच्चिदानंद दास, बाल विद्यापीठ का प्रधानाध्यापक । विद्यालय ही उनका घर था । पांचवी कक्षा का लकड़ी से घिरा कमरा और एक कुर्सी - टेबल और कुछ किताबों - स्टेशनरी के बोझ से दम तोड़ती लाचार अलमारी, बस यही थी उसकी जीवन भर की कमाई और जमापूंजी । चने के सत्तू का एक डब्बा और हॉर्लिक्स की बोतल यही था उनका किचन का सामान । स्कूल का चापाकल और शौच - घर ही उनके लिए पर्याप्त था । एक रस्सी पर सूखती सफेद रंग की धोती की दिव्य सफेदी मानस पटल पर आज भी तरोताजा है । प्रधानाध्यापक के साथ साथ वे पांचवी कक्षा के प्राचार्य भी थे । पतले बांस की करची से न जाने कितने लोगों का भविष्य रच डाला था उस असाधारण व्यक्ति ने ।
उस जमाने में भी उस विद्यालय में लड़के लड़कियों में विभेद नहीं था । सब साथ - साथ पढ़ते थे । कक्षा 1- बी के टीचर थे श्रीवास्तव सर, 1- ए के महेंद्र सर 1 के राजेंद्र सर , दो के राय सर , 3 के शर्मा सर , 4 के कमलू सर और पांच के स्वयं सच्चिदानंद सर ।
श्रीवास्तव सर सूखे पेट की भी चमड़ी पकड़कर सजा देने में माहिर थे, तो राजेंद्र सर के पहाड़े की क्लास में शायद ही कोई उनकी बेंत की मार से बचा हो । राय सर का नाम ही खौफ के लिए काफी था और वो सेकेंड सर के...