उम्मीद
एक भिखारी था वैसे तो वह किसी से मांग कर नही खाता था परन्तु कुछ मजबूरियों की वजह से उसकी ऐसी हालत हुई थी पर एक घर के बाहर वह अक्सर जा कर बैठ जाता पता नही क्यों उसे उस घर से एक अपनापन महसूस होता था, वह उस घर के दरवाजे बैठ कर उस घर के मालिक को ढेरो दुआएं देता प्रेम जताता मानो उस घर से उसका कोई रिश्ता हो ,उस घर के बाहर बैठ कर वो अपने सारे तकलीफ भूल जाता था न जाने क्यों उसे ऐसा लगता था कि उस घर का मालिक बहुत अच्छा है वह उसकी उसकी परेशानी को समझेगा और वह भिखारी उस घर के दरवाजे दिन रात बैठ के कुछ मिलने की उम्मीद करता रहता,
शुरू के कुछ दिन तो उसे उस घर से कुछ रुखा सूखा खाना मिला पर धीरे धीरे ये सिलसिला भी बंद होने लगा ,और जैसे ही वो भिखारी उस घर के दरवाजे आकर बैठता उस घर के दरवाजे बंद कर दिए जाते,पर उस भिखारी को
लगता कि शायद आज मेरे लिए कुछ बचा नही होगा,और वो इंतज़ार करता कि जब भी
उसके लिए कुछ होगा उसके लिए दरवाज़ा ज़रूर खुलेगा,पर हुआ इसका उल्टा कई बार तो दरवाज़े पर ताला लगा दिया जाता ताकि वह भिखारी वहाँ बैठना बंद कर दे।
पर उस भिखारी को उस घर से इतना लगाव हो गया था कि वह चाह कर भी उस घर के अलावा किसी और के दरवाजे नही जाता था।
वह भिखारी भूखा रह जाता पर किसी और से कुछ न लेता, कई बार उसने ये सोचा की अब वह उस घर के दरवाजे नही खटखटाएगा न ही कुछ मांगेगा पर जब भी वह यह सोचता उस दिन उस घर से कुछ ना कुछ खाने का समान बाहर डाल दिया जाता और वह भिखारी खुश हो जाता कि सोचता कि वह खाना उसके लिए रक्खा गया है,और फिर वापस वह अगले दिन से उस घर के दरवाजे बैठने लगता।
पर जब हर बार ऐसा होने लगा तो भिखारी बहुत दुखी जो गया और उसने मालिक से बोला या तो आप बोल दो यह न आया कर या तो आप रोज मेरे लिए खाना रख दिया करो ,और फिर उसके बाद इस घर जे दरवाज़े हमेशा केलिए उस भिखारी के लिए बंद गए जहाँ बैठ कर उसने अपना दिन रात सुबह शाम सर्दी गर्मी बरसात इस उम्मीद में बिताए थे की वो घर का मालिक भी उसको अपना मानता है।
इसके बाद तो वह भिखारी जो कि पहले से ही बहुत बिखरा हुआ था, और मायूस हो गया
उसने उस घर के दरवाजे जाना बंद कर दिया
पर कहीं दिल मे एक उम्मीद थी कि कभी तो उस घर के दरवाजे वापस उसके लिए खुलेंगे
और उसको कोई तो आवाज़ देगा वापस आजाओ, इस उम्मीद में उस भिखारी 3 साल बीत दिए इन तीन सालों में भिखारी बहुत दुखी रहने लगा और उसकी उम्मीद धीरे धीरे दम तोड़ने लगी वह खुद उस घर से दूर जाने के लिए मनाने लगा और मन न होते हुये भी वह उस घर से दूर जाता रहा,एक दिन उस घर का दरवाज़ा खुला,
भिखारी ने पलट कर देखा तो उसे दरवजा खुला दिखा पर तब तक भिखारी बहुत नाउम्मीद हो चुका और उस घर से बहुत दूर आ चुका था
उसके पास कोई कारण भी नही था वापस उस घर जाने का,और न जी किसी ने उस घर से उसे आवाज़ दी की वह वापस आ जाये,
न ही उसमे हिम्मत थी कि वह वापस जाकर एक उम्मीद कायम करे और फिर से न उम्मीद हो....उम्मीद टूटने का दर्द उसको अंदर तक खत्म कर चुका था वह भरी हुई आंखों से बस दूर से खड़ा यह सोचता रहा कि उस घर का दरवाज़ा उसके लिए खोला गया है या उसके उस घर से दूर जाने की खुशी में...
© ख्यालों का शहर
शुरू के कुछ दिन तो उसे उस घर से कुछ रुखा सूखा खाना मिला पर धीरे धीरे ये सिलसिला भी बंद होने लगा ,और जैसे ही वो भिखारी उस घर के दरवाजे आकर बैठता उस घर के दरवाजे बंद कर दिए जाते,पर उस भिखारी को
लगता कि शायद आज मेरे लिए कुछ बचा नही होगा,और वो इंतज़ार करता कि जब भी
उसके लिए कुछ होगा उसके लिए दरवाज़ा ज़रूर खुलेगा,पर हुआ इसका उल्टा कई बार तो दरवाज़े पर ताला लगा दिया जाता ताकि वह भिखारी वहाँ बैठना बंद कर दे।
पर उस भिखारी को उस घर से इतना लगाव हो गया था कि वह चाह कर भी उस घर के अलावा किसी और के दरवाजे नही जाता था।
वह भिखारी भूखा रह जाता पर किसी और से कुछ न लेता, कई बार उसने ये सोचा की अब वह उस घर के दरवाजे नही खटखटाएगा न ही कुछ मांगेगा पर जब भी वह यह सोचता उस दिन उस घर से कुछ ना कुछ खाने का समान बाहर डाल दिया जाता और वह भिखारी खुश हो जाता कि सोचता कि वह खाना उसके लिए रक्खा गया है,और फिर वापस वह अगले दिन से उस घर के दरवाजे बैठने लगता।
पर जब हर बार ऐसा होने लगा तो भिखारी बहुत दुखी जो गया और उसने मालिक से बोला या तो आप बोल दो यह न आया कर या तो आप रोज मेरे लिए खाना रख दिया करो ,और फिर उसके बाद इस घर जे दरवाज़े हमेशा केलिए उस भिखारी के लिए बंद गए जहाँ बैठ कर उसने अपना दिन रात सुबह शाम सर्दी गर्मी बरसात इस उम्मीद में बिताए थे की वो घर का मालिक भी उसको अपना मानता है।
इसके बाद तो वह भिखारी जो कि पहले से ही बहुत बिखरा हुआ था, और मायूस हो गया
उसने उस घर के दरवाजे जाना बंद कर दिया
पर कहीं दिल मे एक उम्मीद थी कि कभी तो उस घर के दरवाजे वापस उसके लिए खुलेंगे
और उसको कोई तो आवाज़ देगा वापस आजाओ, इस उम्मीद में उस भिखारी 3 साल बीत दिए इन तीन सालों में भिखारी बहुत दुखी रहने लगा और उसकी उम्मीद धीरे धीरे दम तोड़ने लगी वह खुद उस घर से दूर जाने के लिए मनाने लगा और मन न होते हुये भी वह उस घर से दूर जाता रहा,एक दिन उस घर का दरवाज़ा खुला,
भिखारी ने पलट कर देखा तो उसे दरवजा खुला दिखा पर तब तक भिखारी बहुत नाउम्मीद हो चुका और उस घर से बहुत दूर आ चुका था
उसके पास कोई कारण भी नही था वापस उस घर जाने का,और न जी किसी ने उस घर से उसे आवाज़ दी की वह वापस आ जाये,
न ही उसमे हिम्मत थी कि वह वापस जाकर एक उम्मीद कायम करे और फिर से न उम्मीद हो....उम्मीद टूटने का दर्द उसको अंदर तक खत्म कर चुका था वह भरी हुई आंखों से बस दूर से खड़ा यह सोचता रहा कि उस घर का दरवाज़ा उसके लिए खोला गया है या उसके उस घर से दूर जाने की खुशी में...
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