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मिस रॉन्ग नंबर - 4
#रॉन्गनंबर

~~~~ पार्ट 4 ~~~~

(जीत फोन आए लड़की की मदद के लिए निकलता है~~~~)

आखरी पल ~~~~

मैंने बगल की खिड़कियों से झांकना शुरू किया बड़े चुपके से... धीरे से... क्योंकि मेरे होने का एहसास मुझे नहीं कराना था । मैंने अंदर का कुछ नजारा देखा अंदर वैसे तो अंधेरा था पर मोमबत्तीयोंका प्रकाश फैला था।

अब आगे ~~~~

काफी सारी मोमबत्तियां लगी थी ऐसे तो सामान्यतः कैंडल लाइट डिनर में देखा है । पर यहां कैंडल लाइट डिनर नहीं लग रहा है । क्योंकि लोग नहीं थे और अजीब सी आवाज घूम रही थी... कोई था... जो शायद.. कराह रहा हो... या अंदर ही अंदर तड़प रहा हो... कोई था..! शायद मुंह ही मुंह में कोई मंत्र उच्चारण कर रहा है....! क्या था समझ में नहीं आ रहा था ।
मैं घूमता हुआ बंगले को एक चक्कर मार आया । कहीं से मुझे अंदर जाने की जगह मिलती है क्या देख आया । धीरे से एक खिड़की को टटोला पता चला खिड़की अपने आप खुल गई है । कहीं मेरे लिए खुली है.. या खुली छूट गई थी ?? पता नहीं... जानने की कोशिश भी नहीं कर रहा था दिमाग...। तुरंत दिल के अंदर से आवाज आयी ~~ जी...त, !! चले आओ.... जल्दी चले आओ...!!!
मैं वैसे ही आवाज न करते हुए तुरंत खिड़की से अंदर कूद गया, अब सिर्फ मुझे अंदर की आवाज पर ही विश्वास रखना था अंदर की आवाज कहती जा रही थी चले आओ.... चले आओ.. मैं अंदर अंदर जाता गया जिस तरफ मेरे पैर ले जाते... उस तरफ जाता गया । एक बड़ा सा हॉल था हॉल के बीचो बीच कुछ अजीब सा आकृतियां बनाई थी उसमें कुछ मोमबत्तियां सजाई थी..... उन्ही आकृतियों के अनुसार ही.... बड़े अजीब ढंग से सजाई थी.... ! वो.... वो वहां .... वह कौन है ??
शायद वही सुरीली आवाज वाली...?? पर ऐसे क्यों लग रहा है जैसे लगभग इसके प्राण पखेरू उड़ चुके हैं....। या शायद मर ही गई है... ।
क्या करूं??? और ये... यहाँ..... इन आकृतियों के बीच में क्या कर रही है ?? क्या ये बंगला उसका है ?? या... ये कहीं और से... मतलब कोई इसे उठा लाया है ??
मुझे अब क्या करना चाहिए ?? यदि ये मर गई है तो बेवजह मैं फंस जाऊंगा....! मेरी मदद कौन करेगा ???
फिर वही आवाज दुहरायी.... जी...त सोचो नहीं.... जल्दी करो.... मुझे इस घेरे से बाहर निकालो......, जल्दी... वरना ... शायद.. "वो".... आजायेगा..., फिर तुम्हारी भी जान.... जोखिम में आजाएगी....!!!!
हां..!!!! वैसे ऐसे लग तो रहा था... की इस घर में कोई और भी है पर अब तक दिखा नहीं....!
हां..... हां... !!!! मुझे तुरंत कुछ करना होगा इससे पहले की कुछ और सामने आजाएं।
मैं नहीं जानता इतनी फुर्ती मुझ में अचानक कहां से आ गई थी ।
मैने उन आकृतियोंको पैर से पोंछना शुरू करते हुए आगे बढ़ता गया, वो शायद किसी पाउडर या आटे से बनाई गई थी । साथ ही उन मोमबत्तियां को भी धकेलता हुआ उस कोमलांगी के पास गया, उसकी सांसे बड़ी मंद चल रही थी। मैने उसे झट से उठाया... और.... किस ताकद से दौड़ पड़ा.... मुझे भी पता नहीं....! ये भी न जानता की कितना तेज दौड़ा.... बस इतना पता है उसे लेकर.... मैं.. अब अपने घर के दरवाजे के सामने खड़ा था ।

( क्रमशः ~~~~ )

(आगे की कहानी की प्रतीक्षा करिए... अगले अंक में हम फिर जल्द ही मिलेंगे आगे क्या हुआ जानने के लिए...)
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© Devideep3612