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एक खत शकुन्तला के नाम
एक ख़त शकुन्तला के नाम





        प्रिय शकुन ..... हाँ इसी नाम से बुलाता था मैं तुम्हें शादी के शुरुआती दिनों में । पर धीरे धीरे ये सम्बोधन गोलू की मम्मी के पीछे खो गया । आज मैं तुमसे इस चिट्ठी के ज़रिए वो सारी बातें कहना चाहता हूँ जो कभी कह न सका , कभी पति होने के दम्भ में , कभी वक़्त की कमी के चलते तो कभी ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबा होने के कारण मानसिक तनाव के कारण ।

             याद है मुझे जब तुम मेरे साथ ब्याह कर आई तो कैसी नाज़ुक सी , प्यारी सी लगती थीं । जैसे किसी लचीली शाख पर ताज़ा फूल खिला हो । तुम्हारी पायल की रुनझुन और चूड़ियों की खनक घर में संगीत की तरह गूंजती रहती । तुम्हारे रंगीन आँचल की  इन्द्रधनुषी छटा छाई रहती ।
मेरी छोटी से छोटी ज़रूरत और आदत तुम इतना जानती थीं जितना कि मैं भी खुद के बारे में नहीं जानता था ।   मेरे जागने पर बिन मांगे वो गुनगुने पानी का गिलास , चश्मा और अखबार लेकर तुम जादूगर की तरह उपस्थित हो जाती थीं ।
         
                 मेरे चेहरे की बारीक से बारीक लकीर पढ़ने में तुम माहिर थीं । मेरे शब्दों से ज़्यादा तुम मेरी ख़ामोशी को समझती थीं । मेरी खुशी , मेरी उदासी सब तुम समझती थीं । 

          तुम मेरे घर में रमती चली गईं । कब तुम इस घर की हुईं और ये घर तुम्हारा हो गया पता ही न चला । जैसे दो रंग एक दूसरे में घुलमिल जाते हैं , उसी प्रकार तुमने यहाँ के रीति - रिवाजों , तीज - त्यौहार और परम्पराओं को आत्मसात कर लिया ।

                   बच्चों की परवरिश , मेरे भाई बहनों के विवाह और बूढ़े माता पिता की सेवा सारे कर्तव्यों को तुमने बड़ी कुशलता से निभाया । कैसे मेरी सीमित सी आमदनी में से भी तुमने बचत करके अच्छी खासी रकम जमा कर लेती थी यह मेरे लिए अचरज का विषय है ।
   
            घर में कोई भी बड़ी चीज लानी होती थी तो उसमें तुम्हारी बचत राशि में से योगदान अवश्य होता था । मैं तो हँस कर कहा करता था भई तुम्हारा कुबेर का खजाना हमेशा ही भरा रहता है क्या ? तब तुम मीठी मुस्कान के साथ बस यही कहतीं  -" जी " ।  कहने को तो ये सारे फ़र्ज़ हर स्त्री निभाती है परन्तु इनमें से यदि किसी भी कार्य में व्यवधान आए तो गृहस्थी की गाड़ी चरमरा जाती है ।

         मुझे आज भी याद है वह दिन शकुन ..... जब मैं अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए एक दुकान खरीदने की सोच रहा था , परन्तु पैसों की कमी के कारण मेरी योजना खटाई में पड़ती नज़र आ रही थी । इस बार भी तुमने हमेशा की तरह मेरा साथ दिया ।
          
                 मेरे माथे पर शिकन देखकर चुपचाप उठीं और अलमारी से एक लाल रंग की मखमल की पोटली निकाल कर मेरे हाथों में थमा दी । मैंने कहा ये तो तुम्हारे गहने हैं ....... इन्हें मैं नहीं ले सकता । मैं बैंक से क़र्ज़ ले लूँगा ।  तब तुमने उसी मोहिनी मुस्कान के साथ कहा था -" मेरा गहना तो आप हैं आप इन्हें बेचकर दुकान के लिए रकम पूरी कर लीजिए   सर पर कर्ज़ा लेने की ज़रूरत नहीं । उससे आप तनाव में आ जाएंगे । "
  
                 तुम्हारा प्रेम देखकर मेरी आँखें भीग गईं थीं शकुन । मैंने तुमसे तुम्हारे गहने जल्द ही दोबारा बनवाने का वादा करके , उन्हें ले लिया ।

                   दुकान खरीद ली गई और अच्छी चल निकली । पर न तो मैं तुम्हारे गहने फिर से बनवा पाया और न ही तुमने कभी उनकी माँग की । सच शकुन ! तुम्हारा वह मूक सहयोग कितना बड़ा सम्बल था मेरे व्यापार के लिए ।

                     गृहस्थी में आई और भी कई उलझनों को तुमने अपनी सूझ बूझ से कितनी सरलता से सुलझाया ये मैं आज महसूस करता हूँ । छोटी बहन आरती अपनी शादी के महज़ एक साल बाद ससुराल में हुए मनमुटाव के कारण यहाँ अपने मायके लौट आई थी । वो अपने पति के साथ अलग रहना चाहती थी ।

                       तुमने माँ को अपने पक्ष में लेकर उसे उसकी गलती का एहसास कराया कि यदि मैं भी यही सोच रखती तो तुम्हारे माता पिता का ध्यान कौन रखता ।और अलग रह कर हम भी इनके प्यार से वंचित हो जाएंगे

             आरती को समझा बुझा कर फिर तुमने उसके ससुराल वालों से मिलकर उसकी गलती के लिए क्षमा माँगी व कुछ सुझाव भी दिये । इस तरह उसके घर को उजड़ने से बचाया तुमने शकुन । आरती आज अपने ससुराल में बहुत खुश है व  सबकी आँख का तारा बनी हुई है ।

            और जीवन के सबसे बड़े भँवर में से तुमने मुझे जिस साहस से निकाला वह तो मेरे लिए अकल्पनीय था ।  मुझे याद है ज़िन्दगी का वो सबसे बुरा दौर जब मेरे पड़ोसी दुकानदार ने मेरी तरक्की से जल कर मुझे झूठे केस में फंसा दिया था । उसने सोचा  कि मैं पुलिस थाने और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटता रहूँगा और मेरी दुकानदारी ठप्प हो जायेगी ।

                   परन्तु जिस व्यक्ति की सहधर्मिणी तन मन धन से उसका साथ दे , उसे भला कौन हरा सकता है । तुम बिल्कुल किसी फ़िल्मी नायिका की तरह मेरे साथ पुलिस थाने में गईं । अपने छोटे छोटे बच्चों को घर में छोड़कर घण्टों वहाँ अधिकारियों से मुलाकात का इंतज़ार करतीं ।

                           वे अकेले में तुमसे क्रॉस क्वेश्चन करते , जिसका तुम बिना घबराए  और बिना डरे जवाब देतीं । यह किसी साधारण सी गृहिणी के लिए असाधारण बात है । उन्होंने तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए तुम्हें झूठ बोलने के लिए उकसाया , कि तुम एक बार उस पड़ोसी दुकानदार पर कोई झूठा आरोप लगा दो । फिर वह कानूनी शिकंजे में फंस जायेगा । लेकिन तुमने झूठ बोलने से साफ़ साफ़ इनकार कर दिया शकुन ।

                        तुम्हारी इस साफ़ दिली और सच्चाई से वे बड़े पुलिस ऑफिसर प्रभावित हुए और जब उन्होंने उस पड़ोसी दुकानदार से कड़ाई से पूछताछ की तो उसने सारी सच्चाई उगल दी , कि उसने किस तरह कुछ और लोगों के साथ मिलकर मुझे फंसाने का षडयंत्र रचा था ।

                 बस दूध का दूध और पानी का पानी हो गया । उस दुकानदार ने सबके सामने मुझसे माफ़ी माँगी और अपने किये पर शर्मिंदा हुआ । पुलिस अधिकारियों ने तुम्हारे हिम्मत और हौसले की बहुत प्रशंसा की ।

               जब उन्होंने तुमसे पूछा कि आप एक औरत होने के बावजूद डरी नहीं तो तुम्हारा जवाब था  - " सच बोलने में कैसा डर ? सच की राह पर चलकर जीत निश्चित है सर " । वहाँ मौजूद लोगों की नज़रों में तुम्हारे लिए प्रशंसा के भाव देख कर मेरा सर गर्व से ऊँचा हो गया था शकुन ।
     
              उस समय मुझे तुम फिल्म दामिनी की नायिका की भाँति प्रतीत हो रही थीं । वास्तव में मेरी ज़िन्दगी की नायिका ही तो रहीं तुम ! और तुम जैसी कितनी ही स्त्रियां अपने जीवनसाथी और परिवार को संवारने , सम्भालने में नायिका की भूमिका ही निभाती हैं । परन्तु हम लोग उन्हें धन्यवाद के चन्द शब्द कहने में भी कंजूसी बरतते हैं ।

                       आज इस पत्र के द्वारा मैं तुम्हें तहेदिल से धन्यवाद कहना चाहता हूँ । मेरी इच्छा है कि तुम इस ख़त को पढ़कर मेरी उन भावनाओं को जान सको जो मैं कभी व्यक्त नहीं कर सका ।
                          
                        परन्तु शकुन ...........मैं ये पत्र तुम्हें किस पते पर भेजूँ ? तुमअब  जिस दुनिया में हो वहाँ कोई चिट्ठी कोई सन्देश नहीं पहुँच सकता प्रिये ......  ।
तुम हम सबको छोड़कर बिना कुछ कहे एक दिन चुपचाप अनन्त यात्रा पर निकल गईं ।

                  मेरी शकुन हमेशा कहती थी -  " सुनिये जी मेरी यही कामना है कि मैं इस दुनिया से जाऊँ तो बस काम करते करते ही जाऊँ । और तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण हुई । रसोईघर मे खाना बनाते बनाते बस तुम्हें चक्कर आए और तुम फ़र्श पर गिर पड़ीं । सभी घरवालों ने सोचा थकान से ये हुआ है ।

                        पर गोलू ( अविनाश ) बेटे ने उसी वक़्त गाड़ी निकाली । आनन फानन में तुम्हें अस्पताल ले जाया गया और वहाँ डॉक्टर ने तुम्हें मृत घोषित कर दिया । वजह थी कार्डिक अरेस्ट यानि अचानक हार्ट फेल्योर ।
भला ऐसा भी कहीं होता है कि घरवालों को कोई इस तरह एकदम छोड़कर दुनिया से विदा हो जाए ।

                      हमें तो क्या किसी  जानकार और रिश्तेदारों को भी तुम्हारे यूँ  अचानक जाने का यकीन नहीं हुआ था । घर बिखर सा गया और मैं ....... अन्दर ही अन्दर बहुत टूट गया , अकेला हो गया शकुन ! मेरे जीवन की नायिका जो चली गई थी मुझे तनहा छोड़कर ।

             देखो मेरी आँखों से टपके आँसुओं से इस ख़त की लिखावट कई जगह से फैल गई है । तो प्रिये ! भगवान से इस प्रार्थना के साथ कि अगले जन्म में भी तुम ही मेरे जीवन की कहानी की नायिका बनो , मैं ये पत्र समाप्त करता हूँ ।
                       तुमसे दूर रह कर भी
                           हमेशा तुम्हारा
                                सन्तोष
                              ..............

                     पूनम अग्रवाल



                     

                         
               


                       


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