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तक़दीर मोहताज़ तदवीर की
आज मंदिर के सामने से गुज़रते हुए जैसे ही राजू की नज़र मंदिर के अंदर गई उसे उसका पुराना पड़ोसी और दोस्त कमल मंदिर में भिक्षा देते हुए दिखाई दिया। कहने को तो कमल और उसका परिवार पुश्तों से राजू के घर नौकरी करता आ रहा था पर आज कमल को देख कर कोई ये नहीं बोल सकता कि आज गाँव का सबसे अमीर इंसान कल तक खुद किसी और के घर नौकरी करता फिरता था। कमल को इस तरह देख कर राजू नज़र बचाते हुए आगे बढ़ गया और रास्ते में चलते चलते अपने कर्मों को याद करने लगा।

पुरखों का नाम शान शोहरत इज़्जत ऐसा कुछ नहीं था जो राजू को विरासत में नहीं मिला हो। यूँ तो राजू के पुरख़े ही पीढ़ियों से मधुवन गाँव में ज़मीदारी करते आए थे पर उनके ठाठ बाट भी किसी रियासत के राजा से कम न थे। ठाठ बाट होते भी क्यों न उनके अच्छे आचरण के चर्चें आस पास के सभी गाँव में हुआ करते थे। बोलने का सलीका तो ऐसा था कि...